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पैसों का व्यवहार
भक्ति करनी चाहिए। संयोग अच्छे नहीं हो तब क्या करना चाहिए? आत्मा संबंधी सत्संग, आदि करते रहे। सब्जी नहीं हो तो ना सही, खीचडी जितना तो होगा न अपना योग हो तो कमायें, वरना मुनाफा नज़र आता हो तो भी घाटा करें और यदि योग हो तो घाटा नज़र आता हो तो भी मुनाफा कमायें। सब योग की बात है।
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घाटा या मुनाफा, कुछ भी अपने बस की बात नहीं। इसलिए नेचरल एडजस्टमेन्ट के आधार पर चलिये। दस लाख कमाने के पश्चात् एकदम से पाँच लाख का घाटा हो तब ? यह तो लाख का घाटा ही नहीं सह सकें न! फिर सारा दिन रोना धोना और चिंता करते रहें! अरे, पागल भी हो जायें ! इस तरह पागल हुए मैंने कई देखे हैं।
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प्रश्नकर्ता: दुकान पर ग्राहक आये इसलिए मैं दुकान जलदी खोलता हूँ और रात देरी से बंद करता हूँ, क्या यह बराबर है?
दादाश्री : आप ग्राहक को आकर्षित करनेवाले कौन ? अन्य लोग जब खोलते हों तब आप दुकान खोलना। लोग सात बजे खोलते हों और हम साढ़े नौ बजे खोलें तो वह गलत कहलाये। लोग जब बंद करें तब हम भी बंद करके घर जायें। व्यवहार क्या कहता है कि लोग क्या करते हैं यह देखिये। लोग सो जायें तो आप भी सो जाइये। रात दो बजे तक अंदर ऊधम मचाते रहें वह किस काम का? भोजन लेने के पश्चात् क्या ऐसा विचार करते हो कि यह कैसे पचेगा? उसका परिणाम तो सुबह निकल ही आये न ! धंधे में भी सब ऐसा ही है।
खाते-पीते समय चित्त कारखाने पर नहीं जाता हो तो कारखाना बराबर है, पर खाते-पीते समय चित्त कारखाने पर रहता हो तो भाड़ में जाये वह कारखाना, क्या करना है उसे? हमारे हार्टफेइल का इंतजाम करवाये वह कारखाना, यह हमारा काम नहीं है। अर्थात् नोर्मालिटी समझनी होगी। फिर ऊपर से, तीन शिफ्ट चलाये। क्या यह ठीक है? नई बहू ब्याहकर लाया है, इसलिए बहू के मन का समाधान रखना चाहिए न ? घर जाने पर बहू फरियाद करे कि, 'आप तो मुझ से मिलते भी नहीं है,
पैसों का व्यवहार
बातचीत भी नहीं करते!' यह उचित नहीं कहलाये न! संसार में उचित लगे ऐसा होना चाहिए।
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घर में फादर के साथ और औरों के धंधे के बारे में मतभेद नहीं हो, इसलिए आप हाँ में हाँ मिलाना, कहना कि 'जो चलता है उसे चलने दीजिए।' पर घर के सभी सदस्यों को साथ बैठकर, ऐसा कुछ तय करना चाहिए कि इतनी रकम जमा करने के पश्चात् हमें ज्यादा नहीं चाहिए। ऐसा तय करना चाहिए।
प्रश्नकर्ता: ऐसे कोई 'एग्री' (संमत) नहीं हो, दादाजी ।
दादाश्री : फिर वह काम का नहीं। सब को तय करना चाहिए। अगर दो सौ साल के आयुष्य का ऍक्स्टेन्शन मिलता हो तब हम चार शिफ्ट चलायें!
प्रश्नकर्ता अब धंधा कितना बढ़ाना चाहिए?
दादाश्री : धंधा उतना बढ़ायें कि चैन से नींद आये, जब हम हटाना चाहें तब हटा सकें, ऐसा होना चाहिए। धंधा बढ़ा-बढ़ा कर मुसीबतों को निमंत्रित नहीं करना ।
यह ग्राहक और व्यापारी के बीच संबंध तो होगा ही न? अगर व्यापारी दुकान बंद कर दें तो क्या वह संबंध छूट जायेगा ? नहीं छूटेगा। ग्राहक तो याद करेगा कि, 'इस व्यापारी ने मेरे साथ ऐसा किया था, ऐसा खराब माल दिया था।' लोग तो बैर याद रखे, तब फिर चाहे इस अवतार में आपने दुकान बंद कर दी हो पर अगले अवतार में वह आपको छोड़ेगा नहीं। बैर लिए बिना चैन नहीं लेगा। इसलिए भगवान ने कहा था कि 'किसी भी राह बैर छोड़िये ।' हमारे एक पहचानवाले हम से रुपये उधार ले गया थे, फिर लौटाने ही नहीं आये। तब हम समझ गये कि इसका कारण, (पिछला ) बैर है। इसलिए भले ले गया, ऊपर से उसे कहा कि, 'तू अब हमें रुपये नहीं लौटाना, तुझे माफ है।' यूँ अपना हक़ छोड़कर भी यदि बैर छूटता हो तो छूड़ाइये। किसी भी राह बैर छूड़ाइये, वरना किसी एक के साथ भी बँधा बैर, हमें भटकायेगा ।