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पैसों का व्यवहार
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पैसों का व्यवहार
ये लड़के-लड़कियों के, सभी के अपने पैसे है जिसे हम जोडकर रखते है और उसका कारोबार ही हमारे हाथों में रहता है, बस उतना ही
बाकी भक्ति करने की वजह से ही इन लोगों के पास बंगले हैं। अर्थात् भगवान की भक्ति करते-करते मनुष्य दुःखी हो ऐसा होगा नहीं, पर यह दुःख तो उसका पिछला हिसाब है। और अभी भक्ति कर रहा है यह नया हिसाब है। उसका तो जब फल आयेगा तब। आपकी समझ में आया? जो पीछे जमा किया था उसका फल आज आया है। अब आज जो यह करता है, जो अच्छा करता है, उसका फल अभी आनेवाला है (आना बाकी है)। समझ में आया? यह बात आपकी समझ में आती है? समझ नहीं आती हो तो निकाल दें इस बात को।
प्रश्नकर्ता : मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए मनुष्य, किसी गरीब-अशक्त की सेवा करें या फिर भगवान की भजना करें? या किसी को दान करें? क्या करें?
दादाश्री : मानसिक शांति चाहिए तो अपनी चीज़ दूसरों को खिला देना। कल आइसक्रीम का डिब्बा भरकर लाना और इन सभी को खिलाना। उस समय कितना आनंद होता है यह तू मुझे बताना। इन कबूतरों को तू दाना डालेगा उससे पहले तो वे उछलकूद करने लगेंगे। और तूने डाला, तेरी अपनी वस्तु तूने दूसरों को दी कि भीतर आनंद शुरू हो जाये। अभी रास्ते में कोई मनुष्य गिर गया, उसकी टाँग टूट गई और लह बहता हो वहाँ तू अपनी धोती फाड़कर पट्टी बाँधेगा तो उस वक्त तुझे आनंद होगा।
ये लड़कियाँ, लड़के किस तरह ब्याहते होंगे? ऐसा है न, लड़कियों के लिए पैसों का ज्यादा खर्च होता है। लड़कियाँ अपना लेकर आई है। उसे बैंक में जमा कराये। लड़कियों के पैसे बैंक में जमा हो और बाप खुश हो कि देखिये मैंने सत्तर हजार खर्च करके ब्याही, उस जमाने में। उस जमाने की बात करता हूँ। अरे, तूने क्या किया? उसके पैसे बैंक में थे। तू तो वही का वही है, पावर ऑफ एटर्नी है। तुझे उसमें क्या? पर वह रौब जमाता है। और कोई लड़की (अपने भाग्य में) तीन हजार लेकर आई हो, तो उस समय उसके बाप का धंधा-पानी सब ठंडा पड़ गया हो। तब तीन हजार में ही ब्याहेगी, क्योंकि वह जितना लाई है उतना खर्च होगा।
हमारे लोग कहें कि हमें दूधों धोकर देने हैं। अरे, दूधों धोकर देनेवाले, यह गलत अहंकार है। मुझे पैसे लौटाने है ऐसा भाव रखना, तो लौटा सकेगा! लेते समय, लौटाने है ऐसा जो तय करता है, उसका व्यवहार मैंने बहुत सुंदर देखा है। कुछ तो तय होना चाहिए न! बाद में विपरीत संजोग आ मिले वह अलग बात है, पर डिसीझन (निश्चय) तो होना चाहिए न? यही तो सारा 'पझल' (समस्या) है।
हम पूछे कि 'क्यों साहब, परेशानी में क्यों हो?' तब कहे, 'क्या करें? ये तीन दुकानें, यहाँ संभालना, वहाँ संभालना!' और अर्थी उठे तब चार नारियल ही साथ ले जाना। दुकाने तीन हो, दो हो या एक हो मगर फिर भी नारियल तो चार ही और वे भी बिना पानी के। और ऊपर से कहे की तीन दुकानें संभालनी है मुझे। कहेगा, 'एक फोर्ट में हैं, यहाँ एक कपड़े की है, एक भूलेश्वर में है।' खाते समय भी दुकान, दुकान, दुकान! रात सपने में भी कपड़े के सारे थान नापता रहे!! अर्थात् मरते समय लेखाजोखा आयेगा, इसलिए संभल कर चलना।
धंधे के विचार कहाँ तक करने चाहिए? जहाँ तक बोझा न लगे वहाँ तक करना। बोझा लगे तब बंद कर देना। वरना मारे गये समझना। चार पैर और उपहार में पूँछ मिलेगी। फिर रँभाएगा! चार पैर और पूँछ, समझें आप?
[३] धंधा, सम्यक् समझ से हिन्दुस्तान में मनुष्य जन्म हुआ, वह मोक्ष के लिए ही है। उसी के लिए ही हमारा जीवन है। यदि ऐसा हेतु रखा हो फिर उसमें जीतनी प्राप्ति हो उतनी सही, पर हेतु तो होना ही चाहिए न? यह खाना-पीना सब उसी के लिए है, समझें आप? जीवन किस के लिए जीना है. सिर्फ कमाने के लिए? प्रत्येक जीव सुख खोजता है। सर्व दुःखों से मुक्ति कैसे