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पैसों का व्यवहार
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पैसों का व्यवहार
ब्याज का व्यापार करनेवाला मनुष्य, मनुष्य में से मिटकर क्या हो जाये यह भगवान ही जाने! आप बैंक में रुपया रखे उसमें हर्ज नहीं। अन्य किसी को उधार दें उसमें हर्ज नहीं। पर ब्याजखोरी में पड़ा मनुष्य, दो प्रतिशत, डेढ़ प्रतिशत, सवा प्रतिशत, ढाई प्रतिशत आदि में जो पड़ा है, उसका क्या होगा यह नहीं कहा जाये।
ब्याज लेने में हर्ज नहीं है। पर यह तो ब्याज लेने का व्यापार लगाया, धंधा, ब्याज-दलाली का। आपको क्या करना चाहिए? जिसे उधार दिया हो उसे कहना कि बैंक का ब्याज जो है वह आपको मुझे देना होगा। पर फिर एक मनुष्य के पास ब्याज भी नहीं है, मल धन भी नहीं है तो वहाँ पर मौन रहना। उसे दुःख हो ऐसा वर्तन (बर्ताब) नहीं करना। अर्थात् हमारे पैसे डूब गये हो ऐसा मानकर चला लेना। दरिया में गिर गये हो तब क्या करते?
तो अपने घर इन्डिया चले जाना। बच्चों को अच्छी तरह पढ़ाना।
प्रश्नकर्ता : आपने कहा कि कमा लिया हो तो चले जाना, पर पैसों की कोई लिमिट नहीं होती, इसलिए आप कोई लिमिट बताइये। आप कोई ऐसी लिमिट बताइये कि उतना लेकर हम इन्डिया चले जायें।
दादाश्री : हाँ, हमें हिन्दुस्तान में कोई रोजगार करना हो तो उसके लिए जो रकम चाहिए वह ब्याज पर नहीं उठानी पड़े ऐसा करना। थौड़ाबहुत बैंक से लेना पड़े तो ठीक है। बाकी कोई उधार नहीं देगा, वहाँ तो कोई उधार नहीं देगा। यहाँ (अमरिका में) भी कोई उधार नहीं देता। बैंक ही उधार देगा। इसलिए उतना साथ लाना। बिजनेस तो करना ही होगा न। वहाँ पर खर्च निकालना होगा न? पर वहाँ बच्चे बहुत अच्छे होंगे। यहाँ डॉलर मिले पर बच्चों के संस्कार की परेशानी है न!
अमरिका में हमें स्टोर में ले जायें। कहे, चलिये दादाजी। तब स्टोर बेचारा हमें नमस्कार करता रहे कि धन्य है, जरा भी नज़र नहीं बिगाड़ी हम पर ! सारे स्टोर में दृष्टि बिगाड़ी ही नहीं कहीं पर। हमारी दृष्टि बिगड़े ही नहीं न उस पर। हम नज़र जरूर डालेंगे पर दृष्टि नहीं बिगड़ती। हमें क्या जरूरत किसी चीज़ की! मुझे कोई चीज़ काम नहीं आती। तुम्हारी दृष्टि बिगड़ जाये न?
प्रश्नकर्ता : जरूरत हो वह चीज़ खरीदनी पड़ेगी।
दादाश्री : हमारी दृष्टि बिगड़ती नहीं! स्टोर हमें हाथ जोड़कर नमस्कार किया करे कि ऐसे पुरुष देखे नहीं कभी! और तिरस्कार भी नहीं। फर्स्ट क्लास, राग भी नहीं, द्वेष भी नहीं। वीतराग! आये वीतराग भगवान!
एक महात्मा ने पूछा कि शेयर बाजार का काम मैं जारी रहूं कि बंद कर दूँ? मैंने कहा, बंद कर देना। आज तक जो किया उतना धन वापस खींच लीजिए। अब बंद कर देना चाहिए। वरना अमरिका आये वह, नहीं आये के बराबर हो जायेगा। जैसे थे वैसे! कोरी पाटी लेकर घर जाना पड़ेगा।
प्रश्नकर्ता: यदि सरकार एबव नोर्मल टैक्स डाले तब नोर्मालिटी लाने हेतु, लोग टैक्स की चोरियाँ करें, तो उसमें क्या गलत है?
दादाश्री : लोभी मनुष्य का लोभ कम करने हेतु टैक्स बहुत उमदा चीज़ है।
लोभी मनुष्य मरते दम तक, पाँच करोड पास में हो तो भी वह संतुष्ट नहीं होगा। तब फिर ऐसा दंड मिले न बार-बार तो वह पीछे हटेगा, इसलिए यह तो अच्छी चीज़ है। इन्कमटैक्स तो किसे कहेंगे? पंद्रह हजार से अधिक के ऊपर लगता हो तो। पंद्रह हजार तक तो वे छोड देते हैं बैचारे, तब फिर छोटे परिवारवालों को खाने-पीने में हरकत (दिक्कत) नहीं आती न!
प्रश्नकर्ता : भगवान की भक्ति करनेवाले गरीब क्यों होते हैं और दुःखी क्यों होते हैं?
दादाश्री: भक्ति करनेवाले? ऐसा है न, भक्ति करनेवाले दुःखी होते हैं ऐसा कुछ है नहीं, पर कुछ लोग आपको दुःखी नज़र आते हैं।