________________
हैं, उन्हें तो जगत् की वास्तविकताएँ, जैसे कि यह जगत् कौन चलाता है? किस तरह चलाता है? बंधन क्या है? मोक्ष क्या है? कर्म क्या है? इत्यादि जानना अत्यावश्यक है!
अपना ऊपरी वर्ल्ड में कोई है ही नहीं! खद ही परमात्मा है या फिर उसका ऊपरी अन्य कौन हो सकता है? और यह भोगवटावाला व्यवहार आ पड़ा है। उसके मूल में खुद के ही ब्लंडर्स' और 'मिस्टेक्स' हैं!'खद कौन है' वह नहीं जाना और लोगों ने ही कहा कि 'तू चंदूभाई है।' वैसा खुद ने मान लिया कि 'मैं चंदूभाई हूँ', वह उलटी मान्यता ही मूल भूल और उसमें से आगे भूलों की परंपरा का सर्जन होता है।
इस जगत् में कोई स्वतंत्र कर्ता ही नहीं है, नैमित्तिक कर्ता है। अनेक निमित्त इकट्ठे हों, तब एक कार्य होता है। जब कि अपने लोग एकाध दिखाई देनेवाले निमित्त को अपने ही राग-द्वेष के नंबरवाले चश्मे में से देखकर, पकड़कर, उसे ही काटते हैं। उसे ही दोषित देखते हैं। परिणामस्वरूप खुद के ही चश्मे का काँच मोटा होता जाता है। (नंबर बढ़ते जाते हैं।)
इस जगत् में कोई किसीका बिगाड़ नहीं सकता। कोई किसीको परेशान नहीं कर सकता। जो कुछ परेशानी हमें होती है, उसमें मूलत: हमारी ही दी हुई परेशानी के परिणाम होते हैं। जहाँ मूल में 'खुद' की ही भूल है, वहाँ सारा जगत् निर्दोष प्रमाणित नहीं ठहरता है? खुद की भूल मिटे, तो फिर वर्ल्ड में कौन हमारा नाम देनेवाला है?
मिटाए, वह परमात्मा हो सकता है!
ये भूलें किस आधार पर टिकी हुई हैं? भूलों का पक्ष लिया इसलिए। उनका रक्षण किया, इसलिए! क्रोध हो गया, फिर खुद उसका ऐसे पक्ष लेता है, 'यदि उस पर ऐसे क्रोध नहीं किया होता तो वह सीधा होता ही नहीं!' यह बीस साल के आयुष्य का एक्सटेन्शन कर दिया क्रोध का! भूलों का पक्ष लेना बंद हो, तब वे भूलें जाती हैं। भूलों को खुराक देते हैं, इसलिए वे हटती नहीं हैं! घर कर जाती हैं।
ये भूलें किस तरह मिटाएँ? प्रतिक्रमण से-पश्चाताप से! कषायों का अंधापन दोष देखने नहीं देता है।
जगत् सारा भावनिद्रा में सो रहा है, इसलिए ही खुद, खुद का ही अहित कर रहा है ! मैं शुद्धात्मा हूँ' ऐसा भान होने पर भावनिद्रा उड़ती है और जाग्रत होता है।
भलों का रक्षण कौन करता है? बुद्धि! वकील की तरह भूल के फेवर की वकालत करके बुद्धि चढ़ बैठती है, 'अपने' ऊपर ! इसलिए चलन चलता है फिर बुद्धि का। खुद की भूलों का इकरार कर ले, वहाँ भूलों का रक्षण उड़ जाता है और फिर उसे बिदाई लेनी ही पड़ती है!
हमें जो भूलें दिखाएँ वे तो महान उपकारी ! जिन भूलों को देखने के लिए पुरुषार्थ करना पड़ता है, वे सामने से कोई हमें दिखा दे, उससे सरल और क्या है?
यह तो हमने ही निमंत्रित किए, वे ही सामने आए हैं ! जितने आग्रह से निमंत्रित किया उतने ही लगाव के साथ हमसे चिपके हैं !
जो भूल बिना के हैं, उनका तो लुटेरों के गाँव मे भी कोई नाम देनेवाला नहीं है ! उतना अधिक प्रताप है शील का ।
खुद से किसीको दुःख पहुँचे, उसका कारण खुद ही है ! ज्ञानियों से किसीको किंचित् मात्र दु:ख नहीं होता है। उलटे अनेकों को परमसुखी बना देते हैं। ज्ञानी सभी भूलों को मिटाकर बैठे हैं, इसलिए! खुद की एक भूल
ज्ञानी पुरुष ओपन टु स्काय होते हैं। बच्चों जैसे होते हैं। छोटा बच्चा भी उन्हें बिना संकोच भूल बता सकता है! खुद भूल का स्वीकार भी करते हैं।
कोई भी बुरी आदत पड़ गई हो तो उससे छूटें किस तरह? हमेशा के लिए यह आदत गलत है' ऐसा अंदर और बाहर सबके सामने रहना चाहिए। उसका खूब पछतावा हर समय रखना चाहिए और उसका पक्ष एक बार भी नहीं लें, तब वह भूल जाती है। बुरी आदतें निकालने की यह परम पूज्य
12