SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मृत्यु समय, पहले और पश्चात्... २८ मृत्यु समय, पहले और पश्चात्... अत्यंत गुह्यतम । इस गुह्यतम के कारण ही यह सब ऐसा पोलम्पोल जगत् चला करता है। जीए-मरे, वह कौन? ये जन्म-मृत्यु आत्मा के नहीं हैं। आत्मा परमानेन्ट वस्तु है। ये जन्म-मृत्यु इगोइजम, अहंकार के हैं। इगोइज़म जन्म पाता है और इगोइजम मरता है। वास्तव में आत्मा खुद मरता ही नहीं। अहंकार ही जन्मता है और अहंकार ही मरता है। मृत्यु समय पहले और पश्चात्... दादाश्री : बेहोश रहे, फिर भी भीतर यदि ज्ञान में हो तो चलेगा। यह ज्ञान लिया हुआ होना चाहिए। फिर बेहोश हो तो भी चलेगा। मृत्यु का भय प्रश्नकर्ता : तो मृत्यु का भय क्यों रहता है सभी को? दादाश्री : मृत्यु का भय तो अहंकार को रहता है, आत्मा को कुछ नहीं। अहंकार को भय रहता है कि मैं मर जाऊँगा, मैं मर जाऊँगा। उस दृष्टि से देखो तो सही ऐसा है न, भगवान की दृष्टि से इस संसार में क्या चल रहा है? तब कहे, उनकी दृष्टि से तो कोई मरता ही नहीं। भगवान की जो दृष्टि है, वह दृष्टि यदि आपको प्राप्त हो, एक दिन के लिए दें वे आपको, तो यहाँ चाहे जितने लोग मर जाएँ, फिर भी आपको असर नहीं होगा, क्योंकि भगवान की दृष्टि में कोई मरता ही नहीं है। जीव, तो मरण-शिव, तो अमर कभी न कभी सोल्यशन तो लाना पड़ेगा न? जीवन-मृत्यु का सोल्युशन नहीं लाना पड़ेगा? वास्तव में खुद मरता भी नहीं है और वास्तव में जीता भी नहीं है। यह तो मान्यता में ही भल है कि स्वयं को जीव मान बैठा है। खुद का स्वरूप शिव है। खुद शिव है, लेकिन यह खुद की समझ में नहीं आता है और खुद को जीवस्वरूप मान बैठा आत्मा की स्थिति जन्म-मरण क्या है? प्रश्नकर्ता : जन्म-मरण क्या है? दादाश्री : जन्म-मृत्यु तो होते हैं, हम देखते हैं कि उसमें क्या है, उसमें पूछने जैसा नहीं है। जन्म-मरण अर्थात् उसके कर्म का हिसाब पूरा हो गया, एक अवतार का जो हिसाब बांधा था, वह पूरा हो गया, इसलिए मरण हो जाता है। मृत्यु क्या है? प्रश्नकर्ता : मृत्यु क्या है? दादाश्री : मृत्यु तो, ऐसा है न, यह क़मीज़ सिलवाई अर्थात् कमीज़ का जन्म हुआ न, और जन्म हुआ, इसलिए मृत्यु हुए बगैर रहती ही नहीं! किसी भी वस्तु का जन्म होता है, उसकी मृत्यु अवश्य होती है। और आत्मा अजन्म-अमर है, उसकी मृत्यु ही नहीं होती। मतलब जितनी वस्तुएँ जन्मती हैं, उनकी मृत्यु अवश्य होती है और मृत्यु है तो प्रश्नकर्ता : ऐसा हर एक जीव को समझ में आता हो, तो यह दुनिया चले नहीं न? दादाश्री : हाँ, चले ही नहीं न! परन्तु तब हर एक व्यक्ति को वह समझ में आए ऐसा भी नहीं है! यह तो पज़ल है सब। अत्यंत गुह्य,
SR No.009594
Book TitleMrutyu Samaya Pahle Aur Pashchat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size226 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy