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________________ मानव धर्म उसे मारें, फिर तो हम पशु ही हो गए न ! मानव धर्म रहा ही कहाँ ? अतः धर्म ऐसा होना चाहिए कि किसी को दुःख न हो । ११ अब कहलाता है इन्सान मगर इन्सानियत तो चली गई होती है, तो फिर वह किस काम का? जिन तिल में तेल ही न हो, तो वे तिल किस काम के ? फिर उसे तिल कैसे कहा जाए? उसकी इन्सानियत तो चली गई होती है। इन्सानियत तो पहले चाहिए। तभी सिनेमावाले गाते हैं न, 'कितना बदल गया इन्सान....' तब फिर रहा क्या? इन्सान बदल गया तो पूँजी खो गई सारी ! अब किसका व्यापार करेगा, भाई ? अंडरहैन्ड के साथ कर्तव्य निभाते..... प्रश्नकर्ता: हमारे हाथ नीचे कोई काम करता हो, हमारा लड़का हो या फिर ऑफिस में कोई हो, या कोई भी हो तो वह अपना कर्तव्य चूक गया हो तो उस समय हम उसे सच्ची सलाह देते हैं। अब इससे उसे दुःख होता है तो उस समय विरोधाभास उत्पन्न होता हो ऐसा लगता है। वहाँ क्या करना चाहिए? दादाश्री : उसमें हर्ज नहीं है। आपकी दृष्टि सही है तब तक हर्ज नहीं है। किन्तु उस पर आपका पाशवता का, दुःख देने का इरादा नहीं होना चाहिए। और विरोधाभास उत्पन्न हो तो फिर हमें उनसे माफ़ी माँगनी चाहिए अर्थात् वह भूल स्वीकार कर लो। मानव धर्म पूरा होना चाहिए। नौकर से नुकसान हो, तब .... इन लोगों में मतभेद क्यों होता है? प्रश्नकर्ता : मतभेद होने का कारण स्वार्थ है । दादाश्री : स्वार्थ तो वह कहलाता है कि झगड़ा न करें। स्वार्थ में हमेशा सुख होता है। १२ मानव धर्म प्रश्नकर्ता: किन्तु आध्यात्मिक स्वार्थ हो तो उसमें सुख होता है, भौतिक स्वार्थ हो तो उसमें तो दुःख ही होता है न! दादाश्री : हाँ, मगर भौतिक स्वार्थ भी ठीक होता है। खुद का सुख जो है वह चला नहीं जाए, कम नहीं हो। वह सुख बढ़े, ऐसे बरतते हैं। किन्तु यह क्लेश होने से भौतिक सुख चला जाता है। पत्नी के हाथ में से गिलास गिर पड़े और उसमें बीस रुपये का नुकसान होता हो तो तुरंत ही मन ही मन अकुलाने लगता है कि 'बीस रुपये का नुकसान किया।' अरे मूर्ख, इसे नुकसान नहीं कहते। यह तो उनके हाथ में से गिर पड़े, यदि तेरे हाथ से गिर जाते तो तू क्या न्याय करता? उसी तरह हमें न्याय करना चाहिए। मगर वहाँ हम ऐसा न्याय करते हैं कि 'इसने नुकसान किया।' किन्तु क्या वह कोई बाहरी व्यक्ति है? और यदि बाहरी व्यक्ति हो तो भी, नौकर हो तो भी ऐसा नहीं करना चाहिए। क्योंकि वह किस नियम के आधार पर गिर जाता है, वह गिराता है या गिर जाता है, इसका विचार नहीं करना चाहिए ? नौकर क्या जान-बूझकर गिराता है ? अतः किस धर्म का पालन करना है? कोई भी नुकसान करे, कोई भी हमें बैरी नज़र आए तो वह वास्तव में हमारा बैरी नहीं है। नुकसान कोई कर सके ऐसा है ही नहीं। इसलिए उसके प्रति द्वेष नहीं होना चाहिए। फिर चाहे वे हमारे घर के लोग हों या नौकर से गिलास गिर पड़े, तो भी उन्हें नौकर नहीं गिराता । वह गिरानेवाला कोई और है। इसलिए नौकर पर बहुत क्रोध मत करना। उसे धीरे से कहना, 'भाई, ज़रा धीरे चल, तेरा पाँव तो नहीं जला न?' ऐसे पूछना। हमारे दस-बारह गिलास टूट जाएँ तो भीतर कुढ़न- जलन शुरू हो जाती है। मेहमान बैठे हों तब तक क्रोध नहीं करता किन्तु (भीतर) चिढ़ता रहता है। और मेहमान के जाने पर, फिर तुरंत उसकी खबर ले लेता है। ऐसा करने की ज़रूरत नहीं है। यह सबसे बड़ा अपराध है। कौन करता है यह जानता
SR No.009592
Book TitleManav Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages21
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size213 KB
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