SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मानव धर्म तो राजा को भी नहीं छोड़ता ! सामने यदि राजा आता हो तो भी भैंस का भाई मस्ती से चल रहा होता है, वहाँ राजा को घूमकर निकल जाना पड़े किन्तु वह नहीं हटता । यह है मानवता से भी बढ़कर गुण फिर मानवता से भी ऊपर, ऐसा 'सुपर ह्युमन' (दैवी मानव) कौन कहलाए ? आप दस बार किसी व्यक्ति का नुकसान करें, फिर भी, जब आपको ज़रूरत हो तो उस समय वह व्यक्ति आपकी मदद करे ! आप फिर उसका नुकसान करें, तब भी आपको काम हो तो उस घड़ी वह आपकी 'हैल्प' (मदद करे। उसका स्वभाव ही हैल्प करने का है। इसलिए हम समझ जाएँ कि यह मनुष्य 'सुपर ह्युमन' है। यह दैवी गुण कहलाता है। ऐसे मनुष्य तो कभी-कभार ही होते हैं। अभी तो ऐसे मनुष्य मिलते ही नहीं न! क्योंकि लाख मनुष्यों में एकाध ऐसा हो, ऐसा इसका प्रमाण हो गया है। 1 मानवता के धर्म से विरुद्ध किसी भी धर्म का आचरण करे, यदि पाशवी धर्म का आचरण करे तो पशु में जाता है, यदि राक्षसी धर्म का आचरण करे तो राक्षस में जाता है अर्थात् नर्कगति में जाता है और यदि सुपर ह्युमन धर्म का आचरण करे तो देवगति में जाता है। ऐसा आपको समझ आया, मैं क्या कहना चाहता हूँ, वह ? जितना जानते हैं, उतना वे धर्म सिखाते हैं यहाँ पर संत पुरुष और ज्ञानी पुरुष जन्म लेते हैं और वे लोगों को लाभ पहुँचाते हैं। वे खुद पार उतरे हैं और औरों को भी पार उतारते हैं। खुद जैसे हुए हों वैसा कर देते हैं। खुद यदि मानव धर्म पालते हों, तो वे मानव धर्म सिखाते हैं। इससे आगे यदि वे दैवी धर्म का पालन करते हों तो वे दैवी धर्म सिखाते हैं। 'अति मानव' (सुपर ह्युमन) का १० मानव धर्म धर्म जानते हों तो अति मानव का धर्म सिखाते हैं। यानी, जो जो धर्म जानते हैं, वही वे सिखाते हैं। यदि सारे अवलंबनों से मुक्तता का ज्ञान जानते हों, वे मुक्त हुए हों, तो वे मुक्तता का ज्ञान भी सिखा देते हैं। ऐसा है पाशवता का धर्म प्रश्नकर्ता: सच्चा धर्म तो मानव धर्म है। अब उसमें खास यह जानना है कि सही मानव धर्म यानी 'हमसे किसी को भी दुःख न हो।' यह उसकी सबसे बड़ी नींव है। लक्ष्मी का, सत्ता का, वैभव का, इन सभी का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए, उनका सदुपयोग करना चाहिए। ये सब मानव धर्म के सिद्धांत हैं ऐसा मेरा मानना है, तो आपसे जानना चाहता हूँ कि यह ठीक है? दादाश्री : सच्चा मानव धर्म यही है कि किसी भी जीव को किंचित् मात्र दुःख नहीं देना चाहिए। कोई हमें दुःख दे तो वह पाशवता करता है किन्तु हमें पाशवता नहीं करनी चाहिए, यदि मानवता रखनी हो तो। और यदि मानव धर्म का अच्छी तरह पालन करें तो फिर मोक्ष प्राप्ति में देर ही नहीं लगती। मानव धर्म ही यदि समझ जाएँ तो बहुत हो गया। दूसरा कोई धर्म समझने जैसा है ही नहीं। मानव धर्म यानी पाशवता नहीं करना, वह मानव धर्म है। यदि हमें कोई गाली दे तो वह पाशवता है, किन्तु हम पाशवता न करें, हम मनुष्य की तरह समता रखें और उससे पूछें कि, 'भाई, मेरा क्या गुनाह है ? तू मुझे बता तो मैं अपना गुनाह सुधार लूँ।' मानव धर्म ऐसा होना चाहिए कि किसी को हमसे किंचित् मात्र दुःख न हो। किसी से हमें दुःख हो तो वह उसका पाशवीधर्म है। तब उसके बदले में हम पाशवीधर्म नहीं कर सकते। पाशवी के सामने पाशवी नहीं होना, यही मानव धर्म आपको समझ में आता है? मानव धर्म में टिट फॉर टेट (जैसे को तैसा) नहीं चलता । कोई हमें गाली दे और हम उसे गाली दें, कोई मनुष्य हमें मारे तो हम 1
SR No.009592
Book TitleManav Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages21
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size213 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy