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निवेदन आत्मज्ञानी श्री अंबालाल मूलजीभाई पटेल, जिन्हें लोग 'दादा भगवान' के नाम से भी जानते हैं, उनके श्रीमुख से आत्मतत्त्व के बारे में जो वाणी निकली, उसको रिकार्ड करके संकलन तथा संपादन करके ग्रंथो में प्रकाशित
की गई है। मैं कौन हूँ?' पुस्तक में आत्मा, आत्मज्ञान तथा जगतकर्ता के बारे में बुनियादी बातें संक्षिप्त में संकलित की गई हैं। सुज्ञ वाचक के अध्ययन करते ही आत्मसाक्षात्कार की भूमिका निश्चित बन जाती है, ऐसा अनेकों का अनुभव है।
'अंबालालभाई' को सब 'दादाजी' कहते थे। 'दादाजी' याने पितामह और 'दादा भगवान' तो वे भीतरवाले परमात्मा को कहते थे। शरीर भगवान नहीं हो सकता है, वह तो विनाशी है। भगवान तो अविनाशी है और उसे वे 'दादा भगवान' कहते थे, जो जीवमात्र के भीतर है।
संपादकीय क्रोध एक कमजोरी है, मगर लोग उसे बहादुरी समझते हैं। क्रोध करने वाले से क्रोध नहीं करने वाले का प्रभाव कुछ ज्यादा ही होता है ।
आम तौर पर जब हमारी धारणा के अनुसार नहीं होता, हमारी बात सामनेवाला समझता नहीं हो, डिफरन्स ऑफ व्युपोईन्ट (दृष्टिबिन्दु का भेद) होता है, तब क्रोध हो जाता है। कई बार हम सही हों पर कोई हमें गलत ठहराये, तब क्रोध हो जाता है। पर हम सही हैं वह हमारे दृष्टिबिंदु से ही न?सामनेवाला भी खुद के दृष्टिबिंदु से खुद को सही ही मानेगा न! कई बार समझ में नहीं आने पर, आगे का नज़र नहीं आता और क्या करना, यह समझ में ही नहीं आता, तब क्रोध हो जाता है।
अपमान होगा वहाँ क्रोध होगा, नुकसान होगा वहाँ क्रोध होगा। इस प्रकार मान के रक्षणार्थ, लोभ के रक्षणार्थ क्रोध हो जाता है। वहाँ मान और लोभ कषाय से मुक्त होने की जागृति में आना जरूरी है। नौकर से चाय के कप टूट जायें, तब क्रोध हो जाता है, मगर जमाई के हाथों टूटे तब? वहाँ क्रोध कैसा कंट्रोल में रहता है! अर्थात बिलिफ (मान्यता) पर ही आधारित है न ?
कोई हमारा नुकसान या अपमान करे तो वह हमारे ही कर्म का फल है, सामने वाला निमित्त है, ऐसी समझ फिट हो गई हो, तभी क्रोध जायेगा।
जहाँ-जहाँ और जब जब क्रोध आता है, तब-तब नोट कर के उस पर जागृति रखें। और हमारे क्रोध की वजह से जिसको दुःख हुआ हो, उसका प्रतिक्रमण करें, पछतावा करें और फिर नहीं करूँगा ऐसा दृढ़ निश्चय करें। क्योंकि जिसके प्रति क्रोध होगा, उसे दुःख होता है और वह फिर बैर बाँधेगा। इसी कारण अगले जन्म में फिर आ मिलेगा।
माँ-बाप अपनी संतानों पर और गुरु अपने शिष्यों पर क्रोध करें तो उससे पुण्य बँधता है, क्योंकि उसके पीछे का उद्देश, तात्पर्य उसके भले के लिए, सुधारने हेतु है। स्वार्थ के खातिर होने पर पाप बँधता है। वीतरागों की समझ की बारीकी तो देखिए !!
प्रस्तुत पुस्तिका में क्रोध, जो कि बहुत परेशान करने वाला खुला कषाय है, उसके संबंधी सारी बातें क्रमश: संकलित कर यहाँ प्रकाशित हुई हैं, जो सुज्ञ पाठक को क्रोध से मुक्त होने में पूर्णतया सहायक हो, यही अभ्यर्थना।
- डॉ. नीरूबहन अमीन
प्रस्तुत अनुवाद में यह विशेष ख्याल रखा गया है कि वाचक को दादाजी की ही वाणी सुनी जा रही है, ऐसा अनुभव हो। उनकी हिन्दी के बारे में उनके ही शब्द में कहें तो "हमारी हिन्दी याने गुजराती, हिन्दी और अंग्रेजी का मिश्चर है, लेकिन जब 'टी' (चाय) बनेगी, तब अच्छी बनेगी।"
ज्ञानी की वाणी को हिन्दी भाषा में यथार्थ रूप से अनुवादित करने का प्रयत्न किया गया है किन्तु दादाश्री के आत्मज्ञान का सही आशय, ज्यों का त्यों तो, आपको गुजराती भाषा में ही अवगत होगा। जिन्हें ज्ञान की गहराई में जाना हो, ज्ञान का सही मर्म समझना हो, वह इस हेतु गुजराती भाषा सीखें, ऐसी हमारा अनुरोध है।
अनुवाद संबंधी कमियों के लिए आप के क्षमाप्रार्थी हैं।