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________________ १०. आदर्श व्यवहार १४९ सत्संग में से हम घर समय पर जाते हैं। यदि रात को बाहर बजे दरवाज़ा खटखटाएँ तो वह कैसा दिखेगा? घरवाले मुँह पर बोलेंगे कि 'चाहे जब आओगे तो चलेगा।' पर उनका मन तो छोड़ता नहीं है न? वह तो तरह-तरह का दिखाएगा। अपने से उन्हें ज़रा सा भी दुःख कैसे दिया जाए? यह तो नियम कहलाता है और नियम के आधीन तो रहना ही पड़ता है। इसी तरह दो बजे उठकर 'रियल' की भक्ति करें तो कोई कुछ बोलता है? ना, कोई नहीं पूछता। शुद्ध व्यवहार : सद्व्यवहार प्रश्नकर्ता : शुद्ध व्यवहार किसे कहना चाहिए? सद्व्यवहार किसे कहना चाहिए? दादाश्री : 'स्वरूप' का ज्ञान प्राप्त होने के बाद ही शुद्ध व्यवहार शुरू होता है, तब तक सद्व्यवहार होता है। प्रश्नकर्ता: शुद्ध व्यवहार और सद्व्यवहार में फर्क क्या है? दादाश्री : सद्व्यवहार अहंकार सहित होता है और शुद्ध व्यवहार निरहंकारी होता है। शुद्ध व्यवहार संपूर्ण धर्मध्यान देता है और सद्व्यवहार अल्प अंश में धर्मध्यान देता है। जितना शुद्ध व्यवहार होता है, उतना शुद्ध उपयोग रहता है। शुद्ध उपयोग मतलब 'खुद' ज्ञाता दृष्टा होता है, पर देखे क्या? तब कहे, शुद्ध व्यवहार को देखो। शुद्ध व्यवहार में निश्चय, शुद्ध उपयोग होता है। कृपालुदेव ने कहा है: ' गच्छमत नी जे कल्पना ते नहीं सद्व्यवहार। सभी संप्रदाय, वे कल्पित बातें हैं। उनमें सद्व्यवहार भी नहीं है तो फिर वहाँ शुद्ध व्यवहार की बात क्या करनी? शुद्ध व्यवहार, वह निरहंकारी पद है, शुद्ध व्यवहार स्पर्धा रहित है। हम यदि स्पर्धा में उतरें तो रागद्वेष होते हैं। हम तो सभी से कहते हैं कि आप जहाँ हो वहीं ठीक हो । और आपको कोई कमी हो तो यहाँ हमारे पास आओ। हमारे यहाँ तो प्रेम की ही बरसात होती है। कोई द्वेष करता हुआ आए फिर भी प्रेम देना । क्लेश रहित जीवन क्रमिक मार्ग मतलब शुद्ध व्यवहारवाले होकर शुद्धात्मा बनो और अक्रम मार्ग मतलब पहले शुद्धात्मा बनकर फिर शुद्ध व्यवहार करो। शुद्ध व्यवहार में व्यवहार सभी होता है, पर उसमें वीतरागता होती है। एक-दो जन्मों में मोक्ष जानेवाले हों, वहाँ से शुद्ध व्यवहार की शुरूआत होती है। १५० शुद्ध व्यवहार स्पर्श नहीं करे, उसका नाम 'निश्चय' । व्यवहार उतना पूरा करना कि निश्चय को स्पर्श नहीं करे, फिर व्यवहार चाहे जिस प्रकार का हो । चोखा व्यवहार और शुद्ध व्यवहार में फर्क है। व्यवहार चोखा रखे वह मानवधर्म कहलाता है और शुद्ध व्यवहार तो मोक्ष में ले जाता है। बाहर या घर में लड़ाई-झगड़ा न करे वह चोखा व्यवहार कहलाता है। और आदर्श व्यवहार किसे कहा जाता है? खुद की सुगंधी फैलाए वह । आदर्श व्यवहार और निर्विकल्प पद वे दोनों प्राप्त हो जाएँ फिर बचा क्या? इतना तो पूरे ब्रह्मांड को बदलकर रख दे। आदर्श व्यवहार से मोक्षार्थ सधे दादाश्री : तेरा व्यवहार कैसा करना चाहता है? प्रश्नकर्ता: संपूर्ण आदर्श । दादाश्री : बूढ़ा होने के बाद आदर्श व्यवहार हो, वह किस काम का? आदर्श व्यवहार तो जीवन की शुरूआत से होना चाहिए । 'वर्ल्ड' में एक ही मनुष्य आदर्श व्यवहारवाला हो तो उससे पूरा 'वर्ल्ड' बदल जाए ऐसा है। प्रश्नकर्ता: आदर्श व्यवहार किस तरह होता है? दादाश्री : आपको (महात्माओं को) जो निर्विकल्प पद प्राप्त हुआ है तो उसमें रहने से आदर्श व्यवहार अपने आप आएगा। निर्विकल्प पद प्राप्त होने के बाद कोई दख़ल होती नहीं है, फिर भी आपसे दखल हो जाए तो आप मेरी आज्ञा में नहीं हैं, हमारी पाँच आज्ञा आपको भगवान महावीर जैसी
SR No.009589
Book TitleKlesh Rahit Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size51 KB
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