SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऊपरी कल्प गोठवणी नोंध नियाणां धौल सिलक १०. आदर्श व्यवहार १५१ स्थिति में रखें ऐसी हैं। व्यवहार में हमारी आज्ञा आपको बाधक नहीं है, आदर्श व्यवहार में रखे ऐसी है। 'यह' ज्ञान तो व्यवहार को कम्प्लीट आदर्श बनाए ऐसा है। मोक्ष किसका होगा? आदर्श व्यवहारवाले का। और 'दादा' की आज्ञा वह आदर्श व्यवहार लाती है। जरा-सी भी किसी की भूल आए तो वह आदर्श व्यवहार नहीं है। मोक्ष कोई 'गप्प' नहीं है, वह हक़ीक़त स्वरूप है। मोक्ष कोई वकीलों का खोजा हुआ नहीं है। वकील तो 'गप्प' में से खोजें, वैसा यह नहीं है, यह तो हक़ीक़त स्वरूप है। एक भाई मुझे एक बड़े आश्रम में मिले। मैंने उनसे पूछा कि, 'यहाँ कहाँ से आप?' तब उन्होंने कहा कि, 'मैं इस आश्रम में पिछले दस वर्ष से रह रहा हूँ।' तब मैंने उनसे कहा कि, 'आपके माँ-बाप गाँव में बहुत गरीब हालत में अंतिम अवस्था में दुःखी हो रहे हैं।' तब उन्होंने कहा कि, 'उसमें मैं क्या करूँ? मैं उनका करने जाऊँ तो मेरा धर्म करने का रह जाएगा।' इसे धर्म कैसे कहा जाए? धर्म तो उसका नाम कि जो माँ-बाप को बुलाए, भाई को बुलाए, सबको बुलाए। व्यवहार आदर्श होना चाहिए। जो व्यवहार खद के धर्म को धिक्कारे, माँ-बाप के संबंध को ठुकराए, उसे धर्म कैसे कहा जाए? अरे! मन में दी गई गाली या अँधेरे में किए गए कृत्य, वे सब भयंकर गुनाह हैं! वह समझता है कि, 'मुझे कौन देखनेवाला है, और कौन इसे जाननेवाला है?' अरे, यह नहीं है पोपाबाई का राज! यह तो भयंकर गुनाह है। इन सबको अँधेरे की भूलें ही परेशान करती हैं। व्यवहार आदर्श होना चाहिए। यदि व्यवहार में अत्यधिक सतर्क हुए तो कषायी हो जाते हैं। यह संसार तो नाव है, और नाव में चाय-नाश्ता सब करना है पर समझना है कि इससे किनारे तक जाना है। इसलिए बात को समझो। 'ज्ञानी पुरुष' के पास तो बात को केवल समझनी ही है, करने का कुछ भी नहीं है। और जो समझकर उसमें समा गया तो हो गया वीतराग! जय सच्चिदानंद मूल गुजराती शब्दों के समानार्थी शब्द : बॉस, वरिष्ठ मालिक : कालचक्र : सेटिंग, प्रबंध, व्यवस्था : अत्यंत राग अथवा द्वेष सहित लम्बे समय तक याद रखना, नोट करना अपना सारा पुण्य लगाकर किसी एक वस्तु की कामना करना : हथेली से मारना : राहखर्च, पूँजी : फजीता : सतही, ऊपर ऊपर से, सुपरफ्लुअस : कुढ़न, क्लेश : बेचैनी, अशांति, घबराहट गुरजनों की कृपा और प्रसन्नता : जमापूंजी : मैं हूँ और मेरा है, ऐसा आरोपण, मेरापन : भावुकतावाला प्रेम, लगाव तायफ़ा उपलक कढ़ापा अजंपा राजीपा सिलक पोतापर्यु लागणी
SR No.009589
Book TitleKlesh Rahit Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size51 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy