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________________ १४४ ८. कुदरत के वहाँ गेस्ट १४३ दादाश्री : ना, सत्ता नहीं है, पर उल्टा हो वैसा भी नहीं है, पर उसने उल्टे-सुल्टे भाव किए इसलिए यह उल्टा हो गया। खद ने कुदरत के इस संचालन में दखल दिया है, नहीं तो ये कौए. कुत्ते ये जानवर कैसे हैं? अस्पताल नहीं चाहिए. कोर्ट नहीं चाहिए. वे लोग झगडे कैसे सुलझा देते हैं? दो साँड़ लड़ते हैं, बहुत लड़ते हैं, पर अलग होने के बाद वे क्या कोर्ट ढूँढने जाते हैं? दूसरे दिन देखें तो आराम से दोनों घूम रहे होते हैं! और इन मूों के कोर्ट होते हैं, अस्पताल होते हैं, तब भी वे दुःखी, दु:खी और दुःखी! ये लोग रोज़ अपना रोना रोते हैं, इन्हें अकर्मी कहें या सकर्मी कहें? ये चिड़िया, कबूतर, कुत्ते सब कितने सुंदर दिखते हैं ! वे क्या सर्दी में वसाणं (जड़ी-बूटी डालकर बनाई गई मिठाई) खाते होंगे? और ये मूर्ख वसाणुं खाकर भी सुंदर दिखते नहीं हैं, बदसरत दिखते हैं। इस अहंकार के कारण सुंदर व्यक्ति भी बदसूरत दिखता है। इसीलिए कोई भूल रह जाती है, ऐसा विचार नहीं करना चाहिए? __... फिर भी कुदरत, सदा मदद में रही प्रश्नकर्ता : शुभ रास्ते पर जाने के विचार आते हैं, पर वे टिकते नहीं और फिर अशुभ विचार आते हैं, वह क्या हैं? दादाश्री : विचार क्या है? आगे जाना हो, तो भी विचार काम करते हैं और पीछे जाना हो तो भी विचार काम करते हैं। खुदा की तरफ जाने के रास्ते पर आगे जाते हो और वापिस मुड़ते हो उसके जैसा होता है। एक मील आगे जाओ और एक मील पीछे जाओ, एक मील आगे जाओ और वापिस मोड़ो... विचार ही एक तरह के रखना अच्छा। पीछे जाना है मतलब पीछे जाना और आगे जाना है मतलब आगे जाना। आगे जाना हो उसे भी कुदरत 'हेल्प' करती है और पीछे जाना हो उसे भी कुदरत 'हेल्प' करती है। 'नेचर' क्या कहता है? 'आई विल हेल्प यु'। तुझे जो काम करना हो, चोरी करनी हो तो 'आई विल हेल्प यु'। कुदरत की तो बहुत बड़ी 'हेल्प' है, कुदरत की 'हेल्प' से तो यह सब चलता है! पर तू निश्चित नहीं करता कि मुझे क्या करना है? यदि तू निश्चित करे तो कुदरत तुझे 'हेल्प' देने के लिए तैयार ही है। 'फर्स्ट डिसाइड' कि मुझे इतना करना क्लेश रहित जीवन है, फिर उसे निश्चयपूर्वक सुबह में पहले याद करना चाहिए। आपके निश्चय को आपको 'सिन्सियर' रहना चाहिए, तो कुदरत आपके पक्ष में 'हेल्प' करेगी। आप कुदरत के 'गेस्ट' हो। इसलिए बात को समझो। कुदरत तो 'आई विल हेल्प यू' कहती है। भगवान कुछ आपकी 'हेल्प' करते नहीं हैं। भगवान बेकार नहीं बैठे हैं। यह तो कुदरत की सब रचना है और वह भगवान की सिर्फ हाजिरी से ही रचा गया है। प्रश्नकर्ता : हम कुदरत के 'गेस्ट' हैं या 'पार्ट ऑफ नेचर' हैं? दादाश्री : 'पार्ट ऑफ नेचर' भी हैं और 'गेस्ट' भी हैं। हम भी 'गेस्ट' के तौर पर रहना पसंद करते हैं। चाहे वहाँ बैठोगे तब भी आपको हवा मिलती रहेगी, पानी मिलता रहेगा और वह भी 'फ्री ऑफ कॉस्ट'! जो अधिक कीमती है वह 'फ्री ऑफ कॉस्ट' मिलता रहता है। कुदरत को जिसकी कीमत है, उसकी इन मनुष्यों को क़ीमत नहीं है। और जिसकी कुदरत के पास क़ीमत नहीं (जैसे कि हीरे), उसकी हमारे लोगों को बहुत क़ीमत है।
SR No.009589
Book TitleKlesh Rahit Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size51 KB
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