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८. कुदरत के वहाँ गेस्ट
१४१ हिलाने लगे तो कैसा कहलाए? घर में दखल करने जाएँ तो आपको कौन खड़ा रखेगा? तुझे बासुंदी थाली में रखें तो खा लेना, वहाँ ऐसा मत कहना कि 'हम मीठा नहीं खाते हैं।' जितना परोसा जाए उतना आराम से खाना। खारा परोसे तो खारा खा लेना। बहुत नहीं भाए तो थोड़ा खाना, परन्तु खाना जरूर! 'गेस्ट' के सभी नियम पालना। 'गेस्ट' को राग-द्वेष नहीं करने होते हैं, 'गेस्ट' राग-द्वेष कर सकते हैं? वे तो विनय में ही रहते हैं न?
हम तो 'गेस्ट' के तौर पर ही रहते हैं, हमारे लिए सभी वस्तुएँ आती हैं। जिनके वहाँ 'गेस्ट' के तौर पर रहे हों, उन्हें परेशान नहीं करना चाहिए। हमें सारी चीजें घर बैठे आती हैं, याद करते ही हाज़िर होती हैं और हाज़िर नहीं हो तो हमें परेशानी भी नहीं। क्योंकि वहाँ 'गेस्ट' हुए हैं। किसके वहाँ? कुदरत के घर पर! कुदरत की मरजी न हो तो हम समझें कि हमारे हित में है और मरजी उसकी हो तो भी हमारे हित में है। हमारे हाथ में करने की सत्ता हो, तो एक तरफ दाढ़ी उगे और दूसरी तरफ दाढ़ी नहीं उगे तो हम क्या करें? हमारे हाथ में करने का होता तो सब घोटाला ही हो जाता। यह तो कुदरत के हाथों में है। उसकी कहीं भी भल नहीं होती, सब पद्धति अनुसार का ही होता है। देखो चबाने के दाँत अलग, छीलने के दाँत अलग, खाने के दाँत अलग। देखो, कितनी सुंदर व्यवस्था है ! जन्म लेते ही पूरा शरीर मिलता है, हाथ, पैर, नाक, कान, आँखें सबकुछ मिलता है, पर मुँह में हाथ डालो तो दाँत नहीं मिलते हैं, तब कोई भूल हो गई होगी कुदरत की? ना, कुदरत समझती है कि जन्म लेकर तुरन्त उसे दूध पीना है, दूसरा आहार पचेगा नहीं, माँ का दूध पीना है, यदि दाँत देंगे तो वह काट लेगा! देखो कितनी सुंदर व्यवस्था की हुई है ! जैसे-जैसे ज़रूरत पड़ती है वैसे दाँत निकल आते हैं। पहले चार आते हैं, फिर धीरे-धीरे दूसरे आते हैं और इन बूढ़ों के दाँत गिर जाते हैं तो फिर वापस नहीं आते
क्लेश रहित जीवन पर दखलंदाजी से दुःख मोल लिए रात को हाँडवा पेट में डालकर सो जाता है न? फिर खर्राटें गरड़गरड़ बुलवाता है ! घनचक्कर, अंदर पता लगा न, क्या चल रहा है? तब कहे कि, "उसमें मी काय करूँ?' और कुदरत का कैसा है? पेट में पाचक रस, 'बाइल' पड़ता है, दूसरी चीजें पड़ती है, सुबह 'ब्लड' 'ब्लड' की जगह, 'युरिन' 'युरिन' की जगह, 'संडास' 'संडास' के स्थान पर पहुँच जाता है। कैसा पद्धति अनुसार सुंदर व्यवस्था की हुई है! कुदरत कितना बड़ा अंदर काम करती है! यदि डॉक्टर को एक दिन यह अंदर का पचाने का काम सौंपा हो तो वह मनुष्य को मार डाले! अंदर में पाचक रस डालना, 'बाइल' डालना, आदि डॉक्टर को सौंपा हो तो डॉक्टर क्या करे? भूख नहीं लगती इसलिए आज जरा पाचक रस ज्यादा डालने दो। अब कुदरत का नियम कैसा है कि पाचक रस ठेठ मरते दम तक चलें उस अनुसार डालती है। अब ये उस दिन, रविवार के दिन पाचकरस ज्यादा डाल देता है, इसलिए बुधवार को अंदर बिलकुल पचेगा ही नहीं, क्योंकि बुधवार के हिस्से का भी रविवार को डाल दिया।
कुदरत के हाथ में कितनी अच्छी बाज़ी है! और एक आपके हाथ में व्यापार आया, और वह भी व्यापार आपके हाथ में तो नहीं ही है। आप खाली मान बैठे हो कि मैं व्यापार करता हूँ, इसलिए झूठी हाय-हाय, हायहाय करते हो। दादर से सेन्ट्रल टेक्सी में जाना हुआ, तब वह मन में टकरा जाएगी-टकरा जाएगी करके डर जाता है। अरे! कोई बाप भी टकरानेवाला नहीं है। तू अपने आप आगे देखकर चल। तेरा फ़र्ज़ कितना? तुझे आगे देखकर चलना है, इतना ही। वास्तव में तो वह भी तेरा फ़र्ज़ नहीं है। कुदरत तेरे पास से वह भी करवाती है। पर आगे देखता नहीं है और दखल करता है। कदरत तो इतनी अच्छी है! यह अंदर इतना बड़ा कारखाना चलता है तो बाहर नहीं चलेगा? बाहर तो कुछ चलाने को है ही नहीं। क्या चलाना
है?
कुदरत सभी तरह से रक्षण करती है। राजा की तरह रखती है। परन्तु अभागे को रहना नहीं आता, तब क्या हो?
प्रश्नकर्ता : कोई जीव उल्टा करें, तो वह भी उसके हाथ में सत्ता नहीं है?