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क्लेश रहित जीवन नहीं। ऊपर से उस पर अपना अच्छा असर होता है। अपने साथ द्वेषभाव नहीं होता है, वह तो समझो कि पहला स्टेप, पर फिर उसे खबर भी पहुँचती
५. समझ से सोहे गृहसंसार
१२५ शक्तियाँ खिलानेवाला चाहिए यानी स्त्रियों का दोष नहीं है, स्त्रियाँ तो देवियों जैसी हैं। स्त्रियों और पुरुषों में, वे तो आत्मा ही है, केवल पेकिंग का फर्क है। डिफरन्स ऑफ पेकिंग। स्त्री, वह एक प्रकार का 'इफेक्ट' है, इसलिए आत्मा पर स्त्री का 'इफेक्ट' बरतता है। उसका 'इफेक्ट' अपने ऊपर नहीं पड़े तब सही है। स्त्री, वह तो शक्ति है। इस देश में कैसी-कैसी स्त्रियाँ राजनीति में हो चुकी है! और इस धर्मक्षेत्र में जो स्त्री पड़ी वह तो कैसी होती है? इस क्षेत्र से जगत् का कल्याण ही कर डाले। स्त्री में तो जगत् कल्याण की शक्ति भरी पड़ी है। उसमें खुद का कल्याण करके और दूसरों का कल्याण करने की शक्ति है।
प्रतिक्रमण से, हिसाब सब छूटें
पतिका
प्रश्नकर्ता : कुछ लोग स्त्री से ऊबकर घर से भाग छूटते हैं, वह कैसा है?
दादाश्री : ना, भगोड़े किसलिए बनें? हम परमात्मा हैं। हमें भगोड़ा होने की क्या ज़रूरत है? हमें उसका समभावे निकाल कर देना है।
प्रश्नकर्ता : निकाल करना है, तो किस तरह से होता है? मन में भाव करना कि यह पूर्व का आया है?
प्रश्नकर्ता : उसके आत्मा को पहुँचता है?
दादाश्री : हाँ, ज़रूर पहुँचता है। फिर वह आत्मा उसके पुद्गल को भी धकेलती है कि, 'भाई, फोन आया तेरा।' अपना यह प्रतिक्रमण है वह अतिक्रमण के ऊपर है, क्रमण पर नहीं।
प्रश्नकर्ता : बहुत प्रतिक्रमण करने पड़ते हैं?
दादाश्री : जितनी स्पीड में हमें मकान बनाना हो उतने कारीगर हमें बढ़ाने चाहिए। ऐसा है न, कि ये बाहर के लोगों के साथ हमें प्रतिक्रमण नहीं होंगे तो चलेगा, पर अपने आसपास के और नज़दीक के, घर के लोग हैं, उनके प्रतिक्रमण अधिक करने हैं। घरवालों के लिए मन में भाव रखना है कि मेरे साथ जन्म लिया है, साथ में रहते हैं तो किसी दिन ये मोक्षमार्ग पर आएँ।
...तो संसार अस्त हो जिसे 'एडजस्ट' होने की कला आ गई, वह दुनिया में से मोक्ष की ओर मुड़ा। एडजस्टमेन्ट' हुआ उसका नाम ज्ञान । जो 'एडजस्टमेन्ट' सीख गया वह तर गया। भुगतना है वह तो भुगतना ही है, पर 'एडजस्टमेन्ट' आए उसे परेशानी नहीं आती, हिसाब साफ हो जाता है। सीधे के साथ तो हरकोई एडजस्ट हो जाता है, पर टेढ़े-कठिन-कड़क के साथ में, सबके ही साथ एडजस्ट होना आया तो काम हो गया। मुख्य वस्तु एडजस्टमेन्ट है। 'हाँ' से मुक्ति है। हमने 'हाँ' कहा फिर भी 'व्यवस्थित' के बाहर कुछ होनेवाला है? पर 'ना' कहा तो महा उपाधी।
घर में पति-पत्नी दोनों निश्चय करें कि मुझे 'एडजस्ट' होना है तो दोनों का हल आए। वे ज्यादा खींचे तो 'हमें' एडजस्ट हो जाना है, तो हल आए। एक व्यक्ति का हाथ दु:खता था, पर वह दूसरे को नहीं बताता
दादाश्री : इतने से निकाल नहीं होता। निकाल मतलब तो सामनेवाले के साथ फोन करना पड़ता है, उसके आत्मा को खबर देनी पड़ती है। उस आत्मा के पास, हमने भूल की है ऐसा कबूल-एक्सेप्ट करना पड़ता है। मतलब प्रतिक्रमण बड़ा करना पड़ता है।
प्रश्नकर्ता : सामनेवाला मनुष्य अपना अपमान करे तब भी हमें उसका प्रतिक्रमण करना चाहिए?
दादाश्री : अपमान करे तो ही प्रतिक्रमण करना है, हमें मान दे तब नहीं करना है। प्रतिक्रमण करें इसलिए सामनेवाले पर द्वेषभाव तो होता ही