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५. समझ से सोहे गृहसंसार
१२७ था, पर दूसरे हाथ से हाथ दबाकर, दूसरे हाथ से एडजस्ट किया। ऐसा एडजस्ट हो जाएँ तो हल आए। मतभेद से तो हल नहीं आता। मतभेद पसंद नहीं, फिर भी मतभेद पड़ जाते हैं न? सामनेवाला अधिक खींचातानी करे तो हम छोड़ दें और ओढ़कर सो जाएँ, यदि छोड़ें नहीं, दोनों खींचते रहें तो दोनों को ही नींद नहीं आएगी और सारी रात बिगड़ेगी। व्यवहार में, व्यापार में, हिस्से में कैसा सँभालते हैं, तो इस संसार के हिस्से में हमें नहीं सँभाल लेना चाहिए? संसार तो झगड़े का संग्रहस्थान है। किसी के यहाँ दो अन्नी, किसी के यहाँ चवन्नी और किसे के यहाँ सवा रुपये तक पहुँच जाता है।
यहाँ घर पर 'एडजस्ट' होना आता नहीं और आत्मज्ञान के शास्त्र पढ़ने बैठे होते हैं! अरे रख न एक तरफ! पहले यह सीख ले। घर में 'एडजस्ट' होना तो कुछ आता नहीं है। ऐसा है यह जगत् ! इसलिए काम निकाल लेने जैसा है।
'ज्ञानी' छुड़वाएँ, संसारजाल से प्रश्नकर्ता : इस संसार के सभी खाते खोटवाले लगते हैं, फिर भी किसी समय नफेवाले क्यों लगते हैं?
दादाश्री : जो खाते खोटवाले लगते हैं, उनमें से कभी यदि नफेवाला लगे तो बाकी कर लेना। यह संसार दूसरे किसी से खड़ा नहीं हुआ है। गुणा ही हुए हैं। मैं जो रकम आपको दिखाऊँ उससे भाग कर डालना, इससे फिर कुछ बाकी नहीं रहेगा। इस तरह से पढ़ाई की जाए तो पढो. नहीं तो 'दादा की आज्ञा मुझे पालनी ही है, संसार का भाग लगाना ही है।' ऐसा निश्चित किया कि तबसे भाग हुआ ही समझो।
बाकी ये दिन किस तरह गुजारने वह भी मुश्किल हो गया है। पति आए और कहेगा कि 'मेरे हार्ट में दुःखता है।' बच्चे आएँ और कहेंगे कि 'मैं नापास हआ हँ।' पति को हार्ट में द:खता है ऐसा कहें तो उसे विचार आता है कि 'हार्ट फेल' हो गया तो क्या होगा? चारों ओर से विचार घेर लेते हैं, चैन नहीं लेने देते।
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क्लेश रहित जीवन 'ज्ञानी पुरुष' इस संसारजाल से छूटने का रास्ता दिखाते हैं, मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं और रास्ते पर चढ़ा देते हैं और हमें लगता है कि हम इस उपाधी में से छूट गए!
ऐसी भावना से छुड़वानेवाले मिलते ही हैं। यह सब परसत्ता है। खाते हैं, पीते हैं, बच्चों की शादियाँ करवाते हैं वह सब परसत्ता है। अपनी सत्ता नहीं है। ये सभी कषाय अंदर बैठे हैं। उनकी सत्ता है। 'ज्ञानी पुरुष' 'मैं कौन हूँ?' उसका ज्ञान देते हैं तब इन कषायों से, इस जंजाल में से छुटकारा होता है। यह संसार छोड़ने से या धक्के मारने से छूटे ऐसा नहीं है, इसलिए ऐसी कोई भावना करो कि इस संसार में से छूटा जाए तो अच्छा। अनंत जन्मों से छूटने की भावना हुई है, पर मार्ग का जानकार चाहिए या नहीं चाहिए? मार्ग दिखानेवाले 'ज्ञानी पुरुष' चाहिए।
जैसे चिकनी पट्टी शरीर पर चिपकाई हो, तो उसे उखाड़ें फिर भी वह उखड़ती नहीं। बाल को साथ में खींचकर उखड़ती है, उसी तह यह संसार चिकना है। 'ज्ञानी पुरुष' दवाई दिखाएँ तब वह उखड़ता है। यह संसार छोड़ने से छूटे ऐसा नहीं है। जिसने संसार छोड़ा है, त्याग लिया है, वह उसके कर्म के उदय ने छुड़वाया है। हर किसी को उसके उदयकर्म के आधार पर त्यागधर्म या गृहस्थधर्म मिला होता है। समकित प्राप्त हो, तब से सिद्धदशा प्राप्त होती है।
यह सब आप चलाते नहीं हैं। क्रोध-मान-माया-लोभ कषाय चलाते हैं। कषायों का ही राज है। 'खुद कौन है?' उसका भान हो तब कषाय जाते हैं। क्रोध हो तब पछतावा होता है, लेकिन भगवान का बताया हुआ प्रतिक्रमण नहीं आए तो क्या फायदा होगा? प्रतिक्रमण आएँ तो छुटकारा होगा।
ये कषाय चैन से घड़ीभर भी बैठने नहीं देते। बेटे की शादी के समय मोह ने घेर लिया हुआ होता है। तब मूर्छा होती है। बाकी कलेजा तो सारा दिन चाय की तरह उबल रहा होता है ! तब भी मन में होता है