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५. समझ से सोहे गृहसंसार
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हो ?' इसे भी नोर्मेलिटी खो डाली कहलाएगा। नोर्मेलिटी तो सभी के साथ एडजस्ट हो जाए ऐसी है। खाने में भी नोर्मेलिटी चाहिए, यदि पेट में अधिक डाला हो तो नींद आया करती है। हमारी खाने-पीने की सभी ही नोर्मेलिटी आप देखना । सोने की, उठने की, सब ही हमारी नोर्मेलिटी होती है। खाने बैठते हैं और थाली में पीछे से दूसरी मिठाई रख जाएँ तो मैं अब उसमें से थोड़ा-सा लूँ। मैं प्रमाण बदलने नहीं देता। मैं जानता हूँ कि यह दूसरा आया, इसलिए सब्जी निकाल डालो। आपको इतना सब करने की ज़रूरत नहीं है। आपको तो देर से उठा जाता हो तो बोलते रहना कि यह नोर्मेलिटी में नहीं रहा जाता। इसलिए अपने को तो अंदर खुद को ही टोकना है कि 'जल्दी उठना चाहिए।' वह टोकना फायदा करेगा। इसे ही पुरुषार्थ कहा है। रात को रटते रहो कि 'जल्दी उठना है, जल्दी उठना है।' जबरदस्ती जल्दी उठने का प्रयत्न करें, उससे तो दिमाग बिगड़ेगा।
.... शक्तियाँ कितनी 'डाउन' गई?
प्रश्नकर्ता: पति वह ही परमात्मा है' वह क्या गलत है? दादाश्री : आज के पतियों को परमात्मा मानें तो वे पागल होकर घूमें ऐसे हैं !
एक पति अपनी पत्नी से कहता है, 'तेरे सिर पर अँगारे रखकर उस पर रोटियाँ सेक ।' मूल तो बंदर छाप और ऊपर से दारू पिलाए, है तो उसकी क्या दशा होगी ?
पुरुष तो कैसा होता है? ऐसे तेजस्वी पुरुष होते हैं कि जिनसे हज़ारों स्त्रियाँ काँपे । ऐसे देखने के साथ ही काँप उठे। आज तो पति ऐसे हो गए हैं कि सलिया उसकी पत्नी का हाथ पकड़े तो उसे विनती करता है 'अरे सलिया छोड़ दे। मेरी बीवी है, बीवी है।' 'घनचक्कर, इसमें सलिया से तू विनती कर रहा है? किस तरह का घनचक्कर पैदा हुआ है?' उसे तो मार, उसका गला पकड़ और काट खा। ऐसे उसके पैर पड़ा, वह कोई छोड़ देगा, वैसी जात नहीं है। तब वह, 'पुलिस, पुलिस बचाओ, बचाओ।' करता है। 'अरे! तू पति होकर 'पुलिस, पुलिस' क्या कर रहा है? पुलिस
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क्लेश रहित जीवन
का तो क्या करनेवाला है? तू जीवित है या मरा हुआ है? पुलिस की मदद लेनी हो तो तू पति मत बनना ।
घर का मालिक 'हाफ राउन्ड' चलेगा ही नहीं, वह तो 'ऑल राउन्ड' चाहिए। कलम, कड़छी, बरछी, तैरना, तस्करी और विवाद करना ये छहों । छः कलाएँ नहीं आतीं तो वह मनुष्य नहीं। चाहे जितना गया- बीता मनुष्य हो तब भी उसके साथ एडजस्ट होना आए, दिमाग खिसके नहीं, तब काम का! भड़कने से चलेगा नहीं।
जिसे खुद अपने पर विश्वास है उसे इस जगत् में सबकुछ ही मिले ऐसा है, पर यह विश्वास ही नहीं आता न! कुछ लोगों को तो यह भी विश्वास उड़ गया होता है कि 'यह वाइफ साथ में रहेगी या नहीं रहेगी? पाँच साल निभेगा या नहीं निभेगा?' 'अरे, यह भी विश्वास नहीं?' विश्वास टूटा मतलब खतम । विश्वास में तो अनंत शक्ति है। भले ही अज्ञानता में विश्वास हो। 'मेरा क्या होगा?' हुआ कि खतम ! इस काल में लोग हकबका गए हैं और दौड़ता-दौड़ता आ रहा हो और उसे पूछे कि, 'तेरा नाम क्या है?' तो वह हकबका जाता है।
भूल के अनुसार भूलवाला मिले
प्रश्नकर्ता : मैं वाइफ के साथ बहुत एडजस्ट होने जाता हूँ, पर हुआ नहीं जाता।
दादाश्री : सब हिसाबवाला है! टेढ़े पेच और टेढ़ा नट, वहाँ सीधा नट घुमाएँ तो किस तरह चले? आपको ऐसा होता है कि यह स्त्री जाति ऐसी क्यों? पर स्त्री जाति तो आपका 'काउन्टर वेट' है। जितना अपना टेढ़ापन उतनी टेढ़ी। इसलिए तो सब 'व्यवस्थित' है, ऐसा कहा है न?
प्रश्नकर्ता: सभी हमें सीधा करने आए हों ऐसा लगता है।
दादाश्री : तो सीधा करना ही चाहिए आपको। सीधा हुए बिना दुनिया चले नहीं न? सीधे नहीं होंगे तो बाप किस तरह होंगे? सीधा हो, तो बाप होता है।