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५. समझ से सोहे गृहसंसार
१०९ जहाँ लड़ाई-झगड़े हैं, वह अंडरडेवलप्ड प्रजा है। सार निकालना आता नहीं इसलिए लड़ाई-झगड़े होते हैं।
जितने मनुष्य हैं उतने धर्म अलग-अलग हैं। पर खुद के धर्म का मंदिर बनाए किस तरह? बाकी धर्म तो हरएक के अलग हैं। उपाश्रय में सामायिक करते हैं, वह भी हरएक की अलग-अलग होती हैं। अरे, कितने तो पीछे बैठे-बैठे कंकड़ मारा करते हैं, वह भी उनकी सामायिक करते हैं न? इसमें धर्म रहा नहीं, मर्म रहा नहीं। यदि धर्म भी रहा होता तो घर में झगड़े नहीं होते। होते तो वह महीने में एकाध बार होते। अमावस महीने में एक दिन ही आती है न?
प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : ये तो तीसों दिन अमावस। झगड़े में क्या मिलता होगा? प्रश्नकर्ता : नुकसान मिलता है।
दादाश्री : घाटे का व्यापार तो कोई करे ही नहीं न! कोई कहता नहीं कि नुकसान का व्यापार करो! कुछ नफा कमाते तो होंगे न?
प्रश्नकर्ता : झगड़े में आनंद आता होगा!
दादाश्री : यह दूषमकाल है इसलिए शांति रहती नहीं है, वह जला हुआ दूसरे को जलाए तब उसे शांति होती है। कोई आनंद में हो, वह उसे अच्छा नहीं लगता, इसलिए पलीता दागकर वह जाए, तब उसे शांति होती है। ऐसा जगत् का स्वभाव है। बाकी, जानवर भी विवेकवाले होते हैं, वे झगड़ते नहीं हैं। कुत्ते भी हैं, वे खुद के मुहल्लेवाले हों उनके साथ अंदर-अंदर नहीं झगड़ते हैं। बाहर के मुहल्लेवाले आएँ तब सब साथ मिलकर उनके साथ लड़ते हैं। जब कि ये मूर्ख अंदर-अंदर लड़ते हैं। ये लोग विवेकशून्य हो गए हैं।
'झगड़ाप्रूफ' हो जाने जैसा है प्रश्नकर्ता : हमें झगड़ा नहीं करना हो, हम कभी भी झगड़ा ही
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क्लेश रहित जीवन नहीं करते हों फिर भी घर में सब सामने से रोज़ झगड़े करते रहें तो वहाँ क्या करना चाहिए?
दादाश्री : हमें झगड़ाप्रूफ हो जाना चाहिए। झगड़ाप्रूफ होंगे तभी इस संसार में रह पाएँगे। हम आपको झगडाप्रफ बना देंगे। झगडा करनेवाला भी ऊब जाए ऐसा हमारा स्वरूप होना चाहिए। वर्ल्ड में कोई भी हमें डिप्रेस न कर सके ऐसा चाहिए। हमारे झगड़ाप्रूफ हो जाने के बाद झंझट ही नहीं न? लोगों को झगडे करने हों, गालियाँ देनी हो तब भी हर्ज नहीं और फिर भी बेशर्म नहीं कहलाएँ, उल्टे जागृति बहुत बढ़ेगी।
बैरबीज में से झगड़ों का उद्भव ___ पहले जो झगड़े किए थे उनके बैर बँधते हैं और वे आज झगड़े के रूप में चुकाए जाते हैं। झगड़ा हो, उसी घडी बैर का बीज पड़ जाता है, वह अगले भव में उगेगा।
प्रश्नकर्ता : तो वह बीज किस तरह से दूर हो?
दादाश्री : धीरे-धीरे 'समभावे निकाल' करते रहो तो दूर होगा। बहुत भारी बीज पड़ा हो तो देर लगेगी, शांति रखनी पडेगी। अपना कुछ भी कोई ले लेता नहीं है। खाने का दो टाइम मिलता है, कपड़े मिलते हैं, फिर क्या चाहिए?
कमरे को ताला लगाकर जाए, पर हमें दो टाइम खाने का मिलता है या नहीं मिलता, उतना ही देखना है। हमें बंद करके जाए तब भी कुछ नहीं, हम सो जाएँ। पूर्वभव के बैर ऐसे बँधे हुए होते हैं कि हमें ताले में बंद करके जाएँ। बैर और फिर नासमझी से बँधा हुआ। समझवाला हो तो हम समझ जाएँ कि यह समझवाला है, तब भी हल आ जाए। अब नासमझीवाला हो वहाँ किस तरह हल आए। इसलिए वहाँ बात को छोड़ देनी चाहिए।
ज्ञान से, बैरबीज छूटे अब बैर सब छोड़ देने हैं। इसीलिए कभी हमारे पास से स्वरूपज्ञान