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५. समझ से सोहे गृहसंसार लोहा वह लोहा है। ये सभी धातु हैं।
सरलता से भी सुलझ जाए प्रश्नकर्ता : हमें घर में किसी वस्तु का ध्यान रहता नहीं हो, घरवाले हमें ध्यान रखो, ध्यान रखो कहते हों. फिर भी न रहे तो उस समय क्या करें?
दादाश्री : कुछ भी नहीं, घरवाले कहें, 'ध्यान रखो, ध्यान रखो।' तब हमें कहना कि हाँ, रखुंगा। हमें ध्यान रखने का निश्चित करना है। फिर भी ध्यान न रहा और कुत्ता घुस गया तब कहो कि मुझे ध्यान नहीं रहता। उसका हल तो लाना पड़ेगा न? हमें खद भी किसी ने ध्यान रखने का सौंपा हो और हम ध्यान रखें, फिर भी नहीं रहा तो कह देते हैं कि भाई यह नहीं रह सका हमसे।
ऐसा है न हम बड़ी उम्र के हैं, ऐसा ध्यान न रहे तो काम हो। बालक जैसी अवस्था हो तो 'समभावे निकाल' अच्छा होता है। हम तो बालक जैसे हैं, इसलिए हम जैसा होता है वैसा कह देते हैं, ऐसे भी कह देते हैं और वैसे भी कह देते हैं, बहुत बड़प्पन क्या करना?
कसौटी आए वह पुण्यवान कहलाते हैं ! इसलिए उकेल लाना, झक नहीं पकड़नी है। हमें अपने आप अपना दोष कह देना चाहिए। नहीं तो वे कहते हो तब हमें खुश होना चाहिए कि 'ओहोहो! आप मेरा दोष जान गए! बहुत अच्छा किया! आपकी बुद्धि हम जानते नहीं।
....सामनेवाले का समाधान कराओ न?
कोई भूल होगी. तो सामनेवाला कहता होगा न? इसलिए भूल खतम कर डालो न! इस जगत में कोई जीव किसी को तकलीफ दे सकता नहीं है, ऐसा स्वतंत्र है, और तकलीफ देते हैं वह पर्व की दखल की हुई थी इसलिए। उस भूल को मिटा दो फिर हिसाब रहेगा नहीं।
_ 'लाल झंडी' कोई धरे तो समझ जाना कि इसमें अपनी कोई भूल है। यानी हम लोगों को उसे पूछना चाहिए कि भाई 'लाल झंडी' क्यों
क्लेश रहित जीवन दिखाते हो? तब वह कहे कि, 'आपने ऐसा क्यों किया था?' तब हम उससे माफ़ी माँग लें और कहें कि 'अब तू हरी झंडी दिखाएगा न?' तब वह हाँ कहेगा।
हमें कोई लाल झंडी दिखाता ही नहीं। हम तो सभी की हरी झंडी देखते हैं, उसके बाद आगे चलते हैं। कोई एक व्यक्ति भी लाल झंडी निकलते समय दिखाए तो उसे पूछते हैं कि भाई तू क्यों लाल झंडी दिखाता है? तब वह कहे कि आप तो उस तारीख को जानेवाले थे पर पहले क्यों जा रहे हो? तब हम उसे समझाते हैं कि, 'यह काम आ पड़ा इसीलिए जबरदस्ती जाना पड़ रहा है!' तब वह सामने से कहेगा कि तब तो आप जाओ, जाओ, कोई परेशानी नहीं है।
यह तो तेरी ही भूल के कारण लोग लाल झंडी दिखाते हैं। पर यदि तू उसका खुलासा करे तो जाने देंगे। पर यह तो कोई लाल झंडी दिखाए तब फिर मूर्ख शोर मचा देता है, 'जंगली, जंगली, बेअक्कल, लाल झंडी दिखाता है?' ऐसे डाँटता है। अरे, यह तो तूने नया खड़ा किया। कोई लाल झंडी दिखाता है अर्थात् 'देर इज़ समथिंग रोंग।' कोई ऐसे ही लाल झंडी दिखाता नहीं।
झगड़ा, रोज़ तो कैसे पुसाए? दादाश्री : घर में झगड़े होते हैं? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : माइल्ड होते हैं या वास्तव में होते हैं? प्रश्नकर्ता : वास्तव में भी होते हैं, परन्तु दूसरे दिन भूल जाते हैं।
दादाश्री : भूल नहीं जाओ तो करोगे क्या? भूल जाएँ तो भी वापिस झगड़ा होता है न? भूलें न हों तो वापिस झगड़ा कौन करे? बड़े-बड़े बंगलों में रहते हैं, पाँच जने रहते हैं, फिर भी झगड़ा करते हैं। कुदरत खाने-पीने का देती है, तब लोग झगड़ा करते हैं ! ये लोग झगड़े, क्लेश, कलह करने में सूरमा हैं।