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________________ १०६ क्लेश रहित जीवन दादाश्री : नरम नहीं पड़ें तो हमें क्या करना है? हमें तो कहकर छूट जाना है, फिर क्या उपाय? कभी न कभी किसी दिन नरम पड़ेगा। डाँटकर नरम करो तो वह उससे कुछ नरम होगा नहीं। आज नरम दिखेगा, पर वह मन में नोंध रख छोड़ेगा और हम जब नरम होंगे उस दिन वह सब वापिस निकालेगा। यानी जगत् बैरवाला है। नियम ऐसा है कि बैर रखे, अंदर परमाणु संग्रह करके रखे, इसलिए हमें पूरा केस ही हल कर देना प्रकृति के अनुसार एडजस्टमेन्ट... प्रश्नकर्ता : हम सामनेवाले को अबोला तोड़ने का कहें कि मेरी भूल हो गई, अब माफ़ी माँगता हूँ। तब भी उसका दिमाग़ अधिक चढ़ें तो क्या करें? ५. समझ से सोहे गृहसंसार १०५ पड़ती है। उससे उसे दुःख होता है, तो किस तरह उसका निकाल करें? दादाश्री : व्यवहार में टकोर करनी पड़ती है, परन्तु उसमें अहंकार सहित होता है, इसलिए उसका प्रतिक्रमण करना चाहिए। प्रश्नकर्ता : टकोर नहीं करें तो वह सिर पर चढ़ता है? दादाश्री : टोकना तो पड़ता है, पर कहना आना चाहिए। कहना नहीं आए, व्यवहार नहीं आए, तब अहंकार सहित टकोर होती है। इसलिए बाद में उसका प्रतिक्रमण करना चाहिए। आप सामनेवाले को टोको तब सामनेवाले को बुरा तो लगेगा, परन्तु उसका प्रतिक्रमण करते रहोगे तब फिर छह महीने, बारह महीने में वाणी ऐसी निकलेगी कि सामनेवाले को मीठी लगेगी। अभी तो टेस्टेड वाणी चाहिए, अन्टेस्टेड वाणी बोलने का अधिकार नहीं है। इस तरह से प्रतिक्रमण करोगे तो चाहे जैसा होगा, फिर भी सीधा हो जाएगा। यह अबोला तो बोझा बढ़ाए प्रश्नकर्ता : अबोला रखकर, बात को टालने से उसका निकाल हो सकता है? दादाश्री : नहीं हो सकता। हमें तो सामनेवाला मिले तो कैसे हो? कैसे नहीं? ऐसे कहना चाहिए। सामनेवाला जरा शोर मचाए तो हमें ज़रा धीरे रहकर समभाव से निकाल करना चाहिए। उसका निकाल तो करना ही पड़ेगा न, जब-तब? बोलना बंद करोगे उससे क्या निकाल हो गया? उससे निकाल होता नहीं है, इसलिए तो अबोला खड़ा होता है। अबोला मतलब बोझा, जिसका निकाल नहीं हुआ उसका बोझा। हम तो तुरन्त उसे खड़ा रखकर कहें, 'खड़े रहो न, हमारी कोई भूल हो तो मुझे कहो।' मेरी बहुत भूलें होती हैं। आप तो बहुत होशियार, पढ़े-लिखे, इसलिए आपकी नहीं होती, पर मैं पढ़ा-लिखा कम हूँ इसलिए मेरी बहुत भूलें होती हैं। ऐसा कहें तब फिर वह खुश हो जाता है। प्रश्नकर्ता : ऐसा करने से वह नरम नहीं पड़े तो क्या करें? दादाश्री : तब हम कहना बंद कर दें। उसे ऐसा कोई उल्टा ज्ञान हो गया होता है कि 'बहुत नमे नादान'। वहाँ फिर दूर रहना चाहिए। फिर जो हिसाब होए वह खरा। परन्तु जितने सरल हो न वहाँ तो हल ला देना चाहिए। हम, घर में कौन-कौन सरल हैं और कौन-कौन टेढ़े हैं, ऐसा नहीं समझते? प्रश्नकर्ता : सामनेवाला सरल नहीं हो तो उसके साथ हमें व्यवहार तोड़ डालना चाहिए? दादाश्री : नहीं तोड़ना चाहिए। व्यवहार तोड़ने से टूटता नहीं है। व्यवहार तोड़ने से टूटे ऐसा है भी नहीं। इसलिए हमें वहाँ मौन रहना चाहिए कि किसी दिन चिढ़ेगा तब फिर अपना हिसाब पूरा हो जाएगा। हम मौन रखें तब किसी दिन वह चिढ़े और खुद ही बोले कि आप बोलते नहीं, कितने दिनों से चुपचाप फिरते हो! ऐसे चिढ़े यानी हमारा काम हो जाएगा। तब क्या करें फिर? यह तो तरह-तरह का लोहा होता है, हमें सब पहचान में आते हैं। कुछ को बहुत गरम करें तो मुड़ जाता है। कुछ को भट्ठी में रखना पड़ता है फिर जल्दी से दो हथौडे मारे कि सीधा हो गया। ये तो तरह-तरह के लोहे हैं ! इसमें आत्मा वह आत्मा है, परमात्मा है और
SR No.009589
Book TitleKlesh Rahit Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size51 KB
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