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________________ १०० ५. समझ से सोहे गृहसंसार फिर असर नहीं रहेगा। एडजस्ट ऐवरीव्हेर की हमने खोज की है। सही कह रहा हो उसके साथ और गलत कह रहा हो उसके साथ एडजस्ट हो। हमें कोई कहे, 'आपमें अक्कल नहीं है, तो हम उसके साथ तुरन्त एडजस्ट हो जाएँ और उसे कहें कि यह तो पहले से ही नहीं थी, अभी कहाँ तू खोजने आया है? तुझे तो आज उसका पता चला, पर मैं तो बचपन से ही जानता हूँ।' ऐसा कहें इसलिए झंझट मिट गई न? फिर वह हमारे पास अक्कल ढूंढने ही नहीं आएगा। ऐसा नहीं करें तो 'अपने घर' कब पहुँच पाएँगे? हम यह सरल और सीधा रास्ता बता देते हैं और ये टकराव क्या रोज-रोज होते हैं? वह तो जब अपने कर्म का उदय हो तब होता है, उतना ही हमें एडजस्ट करना है। घर में लीला (पत्नी) के साथ झगड़ा हुआ हो तो झगड़ा होने के बाद लीला को होटल में ले जाकर, खाना खिलाकर खुश करें, अब ताँता नहीं रहना चाहिए। ___एडजस्टमेन्ट को हम न्याय कहते हैं। आग्रह-दुराग्रह, वह कोई न्याय नहीं कहलाता। किसी भी प्रकार का आग्रह न्याय नहीं है। हम किसी का आग्रह नहीं पकड़ते। जिस पानी से मँग गलें उससे गला लें. अंत में गटर के पानी से भी गला लें!! ये डाकू मिल जाएँ उसके साथ डिसएडजस्ट हों तो वे मारेंगे। उसके बदले हम निश्चित करें कि उसके साथ एडजस्ट होकर काम लेना है। फिर उसे पूछे कि भाई तेरी क्या इच्छा है? देख भाई हम तो यात्रा करने निकले हैं। उसे एडजस्ट हो जाते हैं। यह बाँद्रा की खाड़ी बदबू मारे तो उसे क्या लड़ने जाते हैं? वैसे ही ये मनुष्य बदबू मारते हैं, उन्हें कुछ कहने जाना चाहिए? बदबू मारनेवाले सभी खाड़ियाँ कहलाते हैं और सुगंधी आए वे बाग़ कहलाते हैं। जो-जो बदबू मारते हैं, वे सब कहते हैं कि आप हमारे साथ वीतराग रहो। यह एडजस्ट एवरीव्हेर नहीं होगा तो पागल हो जाओगे सब। सामनेवाले को छेड़ते रहोगे, उससे ही वे पागल होते हैं। इस कुत्ते को एक क्लेश रहित जीवन बार छेड़ें, दूसरी बार, तीसरी बार छेड़ें तब तक वह हमारी आबरू रखता है, पर फिर बहुत छेड़छाड़ करें तो वह भी काट लेता है। वह भी समझ जाता है कि यह रोज छेड़ता है, यह नालायक है, बेशर्म है। यह समझने जैसा है। झंझट कुछ भी करनी नहीं है, एडजस्ट एवरीव्हेर। नहीं तो व्यवहार की गुत्थियाँ रोकती हैं पहले यह व्यवहार सीखना है। व्यवहार की समझ के बिना तो लोग तरह-तरह की मार खाते हैं। प्रश्नकर्ता : अध्यात्म में तो आपकी बात के बारे में कुछ कहने का ही नहीं है। परन्तु व्यवहार में भी आपकी बात टॉप की बात है। दादाश्री : ऐसा है न, कि व्यवहार में टोप का समझे बिना कोई मोक्ष में गया नहीं है, चाहे जितना बारह लाख का आत्मज्ञान हो पर व्यवहार समझे बिना कोई मोक्ष में गया नहीं। क्योंकि व्यवहार छुड़वानेवाला है न? वह न छोड़े तो आप क्या करोगे? आप शुद्धात्मा हो ही, परन्तु व्यवहार छोड़े तब न? आप व्यवहार को उलझाते रहते हो। झट-पट निबेड़ा लाओ न! इन भैया से कहा हो कि 'जा, दुकान से आइस्क्रीम ले आ।' पर वह आधे रास्ते से ही वापिस आ जाए। हम कहें, 'क्यों?' तो वह कहे, 'रास्ते में गधा मिल गया इसलिए, अपशुकन हो गया।' अब इसे ऐसा उल्टा ज्ञान हुआ है, वह हमें निकाल बाहर करना चाहिए न? उसे समझाना चाहिए कि भाई, गधे में भगवान रहे हुए हैं, इसलिए अपशुकन कुछ होता नहीं है। तू गधे का तिरस्कार करेगा तो उसमें रहे हुए भगवान को पहुँचता है, उससे तुझे भयंकर दोष लगता है। वापिस ऐसा नहीं होना चाहिए। इस तरह से यह उल्टा ज्ञान हुआ है। इसके आधार पर एडजस्ट नहीं हो सकते हैं। ___ काउन्टरपुली-एडजस्टमेन्ट की रीति हमें पहले अपना मत नहीं रखना चाहिए। सामनेवाले से पूछना चाहिए कि इस बारे में आपका क्या कहना है? सामनेवाला अपना पकड़कर
SR No.009589
Book TitleKlesh Rahit Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size51 KB
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