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________________ ५. समझ से सोहे गृहसंसार प्रयत्न करते थे और उसका इतना प्रभाव पड़ा है! पच्चीस सौ साल होने पर भी उनका प्रभाव जाता नहीं है। हम किसी को सुधारते नहीं हैं। किसे सुधारने का अधिकार? आपको सुधारने का अधिकार कितना है? जिसमें चैतन्य है, उसे सुधारने का आपको क्या अधिकार है? यह कपड़ा मैला हो गया हो तो उसे हमें साफ करने का अधिकार है। क्योंकि वहाँ सामने से किसी भी तरह का रिएक्शन नहीं है। और जिसमें चैतन्य है, वह तो रिएक्शनवाला है, उसे आप क्या सुधारोगे? यह प्रकृति खुद की ही सुधरती नहीं है, वहाँ दूसरे की क्या सुधारनी? खुद ही लटू है। ये सब टोप्स हैं। क्योंकि वे प्रकृति के अधीन है। पुरुष हुआ नहीं। पुरुष होने के बाद ही पुरुषार्थ उत्पन्न होता है। यह तो पुरुषार्थ देखा ही नहीं है। व्यवहार निभाना, एडजस्ट होकर प्रश्नकर्ता : व्यवहार में रहना है तो एडजस्ट एकपक्षीय तो नहीं होना चाहिए न? दादाश्री : व्यवहार तो उसका नाम कहलाता है कि 'एडजस्ट' हो जाएँ यानी कि पड़ोसी भी कहें कि, 'सब घर में झगड़े हैं, परन्तु इस घर में झगड़ा नहीं है।' उसका व्यवहार सबसे अच्छा माना जाता है। जिसके साथ रास नहीं आए, वहीं पर शक्ति विकसित करनी है, रास आए वहाँ तो शक्ति है ही। नहीं रास आए वह तो कमज़ोरी है। मुझे सबके साथ कैसे रास आ जाता है? जितने एडजस्टमेन्ट्स लेंगे उतनी शक्तियाँ बढ़ेगी और अशक्तियाँ टूटती जाएँगी। सच्ची समझ तो दूसरी सभी समझ को ताले लगेंगे तब ही होगी। क्लेश रहित जीवन पड़ती है। इस व्यवहार में एकपक्षीय, नि:स्पृह हो गए हों तो टेढ़े कहलाएँगे। हमें ज़रूरत हो, तब सामनेवाला टेढ़ा हो फिर भी उसे मना लेना पड़ता है। ये स्टेशन पर मजदूर चाहिए तो वह आनाकानी कर रहा हो, तब भी उसे चार आने कम-ज्यादा करके भी मना लेना पड़ता है, और न मनाएँ तो वह बैग अपने सिर पर ही डालेगा न? 'डोन्ट सी लॉज, प्लीज सेटल' (कानून मत देखना, कृपया समाधान करो). सामनेवाले को 'सेटलमेन्ट' लेने के लिए कहना, 'आप ऐसा करो, वैसा करो', ऐसा कहने के लिए टाइम ही कहाँ होता है? सामनेवाले की सौ भूलें हों, तब भी हमें तो खुद की ही भूल कहकर आगे निकल जाना है। इस काल में लॉ (कानून) तो देखा जाता होगा? यह तो अंतिम स्तर पर आ गया है। जहाँ देखो वहाँ दौडादौड़ और भागम्भाग। लोग उलझ गए हैं। घर जाए तो वाइफ चिल्लाती है, बच्चे चिल्लाते हैं, नौकरी पर जाए तो सेठ चिल्लाता है, गाड़ी में जाए तो भीड़ में धक्के खाता है, कहीं भी चैन नहीं है। चैन तो चाहिए न? कोई लडने लगे तो हमें उसके ऊपर दया रखनी चाहिए कि अहोहो! इसे कितनी अधिक बेचैनी होगी कि वह लड़ पड़ता है! बेचैन हो जाते हैं, वे सब कमजोर हैं। प्रश्नकर्ता : बहुत बार ऐसा होता है कि एक समय में दो लोगों के साथ एक ही बात पर 'एडजस्टमेन्ट' लेना होता है, तो उसी समय सब ओर किस तरह ले सकते हैं? दादाश्री : दोनों के साथ लिया जा सकता है। अरे, सात लोगों के साथ भी लेना हो, तब भी लिया जा सकता है। एक पूछे, 'मेरा क्या किया?' तब कहें, 'हाँ भाई, तेरे कहे अनुसार करूँगा। दूसरे को भी ऐसा कहेंगे, 'आप कहोगे वैसा करूँगा।' 'व्यवस्थित' के बाहर होनेवाला नहीं है, इसलिए चाहे जैसे झगड़ा खड़ा मत करना।' यह तो सही-गलत कहने से भूत परेशान करते हैं। हमें तो दोनों को एक जैसा कर देना है। इसे अच्छा कहा इसलिए दूसरा गलत हो गया, इसलिए फिर वह परेशान करता है। पर दोनों का मिक्सचर कर डालें इससे 'ज्ञानी' तो सामनेवाला टेढ़ा हो तब भी उसके साथ 'एडजस्ट' हो जाते हैं। 'ज्ञानी पुरुष' को देखकर चले तो सभी तरह के 'एडजस्टमेन्ट्स' करने आ जाएँ। उसके पीछे साइन्स क्या कहता है कि वीतराग हो जाओ, राग-द्वेष मत करो। यह तो अंदर कुछ आसक्ति रह जाती है, इसलिए मार
SR No.009589
Book TitleKlesh Rahit Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size51 KB
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