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५. समझ से सोहे गृहसंसार
क्लेश रहित जीवन
वह सुधरा हुआ कब तक टिके?
ये हम किसी को कभी भी डाँटते नहीं हैं, फिर भी हमारा ताप बहुत लगता
हर एक बात में हम सामनेवाले के साथ एडजस्ट हो जाएँ तो कितना आसान हो जाए। हमें साथ में क्या ले जाना है? कोई कहेगा कि भाई उसे सीधा करो। अरे, उसे सीधा करने जाएगा तो तू टेढ़ा हो जाएगा। इसलिए वाइफ को सीधा करने जाना मत, जैसी हो उसे करेक्ट कहें। हमें उसके साथ कायम का साथ हो तो अलग बात है। यह तो एक जन्म के बाद जाने कहाँ बिखर पड़ेंगे। दोनों के मरणकाल अलग, दोनों के कर्म अलग। कुछ भी लेना भी नहीं और देना भी नहीं! यहाँ से तो किसके यहाँ जाएगी उसकी क्या खबर? हम सीधी करें तो अगले जन्म में जाएगी किसी और के भाग्य में!
प्रश्नकर्ता : उसके साथ कर्म बंधे हों तो दूसरे जन्म में मिलेंगे तो सही न?
दादाश्री : मिलेंगे, पर दूसरी तरह से मिलेंगे। किसी की औरत बनकर हमारे यहाँ बात करने आए। कर्म के नियम हैं न! यह तो ठौर नहीं और ठिकाना भी नहीं। कोई ही पुण्यशाली मनुष्य ऐसे होते हैं कि जो कुछ भव साथ में रहें। देखो न, नेमिनाथ भगवान, राजुल के साथ नौ भव से साथ ही साथ थे न ! ऐसा हो तो बात अलग है। यह तो दूसरे भव का ही ठिकाना नहीं है। अरे, इस भव में ही चले जाते हैं न! उसे डायवोर्स कहते हैं न? इसी भव में दो पति करती है, तीन पति करती है!
एडजस्ट हो जाएँ, तब भी सुधरे इसलिए आपको उन्हें सीधा करना नहीं है। वे आपको सीधा करे नहीं। जैसा मिला वैसा सोने का। प्रकृति किसी की, कभी भी सीधी होती नहीं है। कुत्ते की दुम टेढ़ी की टेढ़ी ही रहती है, इसलिए हम सँभलकर चलें। जैसी हो वैसी भले ही हो, 'एडजस्ट एवरीव्हेर'।
धमकाने की जगह पर आपने नहीं धमकाया, उससे वाइफ अधिक सीधी रहती है। जो गुस्सा नहीं करता उसका ताप बहुत सख्त होता है।
प्रश्नकर्ता : तो फिर वह सीधी हो जाएगी?
दादाश्री : सीधा होने का मार्ग ही पहले से यह है। वह कलियुग के लोगों को पुसाता नहीं हैं, पर उसके बगैर छुटकारा भी नहीं है।
प्रश्नकर्ता : मगर वह मुश्किल बहुत है।
दादाश्री : ना, ना वह मुश्किल नहीं है, वही आसान है। गाय के सींग गाय को भारी।
प्रश्नकर्ता : हमें भी वह मारती है न?
दादाश्री : किसी दिन हमें लग जाता है। सींग मारने आए तो हम ऐसे खिसक जाते हैं, वैसे यहाँ पर भी खिसक जाना है ! यह तो मुश्किल कहाँ आती है? मेरी शादी की हुई और मेरी वाइफ। अरे, नहीं है वाइफ और ये हसबैन्ड ही नहीं तो फिर वाइफ होती होगी? यह तो अनाड़ी के खेल हैं! आर्यप्रजा कहाँ रही है आजकल?
सुधारने के बदले सुधरने की ज़रूरत प्रश्नकर्ता : 'खुद की भूल है' ऐसा स्वीकारकर पत्नी को सुधार नहीं सकते?
दादाश्री : सुधारने के लिए खुद ही सुधरने की जरूरत है। किसी को सुधारा ही नहीं जा सकता है। जो सुधारने के प्रयत्नवाले हैं, वे सब अहंकारी है। खुद सुधरा मतलब सामनेवाला सुधर ही जाएगा। मैंने ऐसे भी देखे हैं कि जो बाहर सब सुधारने निकले होते हैं और घर में उनकी वाइफ के सामने आबरू नहीं होती। मदर के सामने आबरू नहीं होती। ये किस तरह के मनुष्य हैं? पहले तू सुधर। मैं सुधारूँ, मैं सुधारूँ वह गलत इगोइज़म है। अरे! तेरा ही तो ठिकाना नहीं, फिर तू क्या सुधारनेवाला है? पहले खुद समझदार होने की ज़रूरत है। 'महावीर' महावीर होने का ही