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५. समझ से सोहे गृहसंसार आप कहो कि हाँ, हमारा ही चलन है, तो वह पैर दबाने का छोड़ देगी। उससे बेहतर तो हम कहें कि ना, उनका ही चलन है।
प्रश्नकर्ता : उसे मक्खन लगाया नहीं कहा जाएगा?
दादाश्री : ना, वह स्ट्रेट वे कहलाता है, और दूसरे सब टेढ़े-मेढ़े रास्ते कहलाते हैं। इस दूषमकाल में सुखी होने का, यह मैं कहता हूँ वह, अलग रास्ता है। मैं इस काल के लिए कह रहा हूँ। हम अपना नाश्ता किसलिए बिगाड़ें? सुबह में नाश्ता बिगड़े, दोपहर में नाश्ता बिगड़े, सारा दिन बिगड़े।
रिएक्शनरी प्रयत्न नहीं ही किए जाएँ प्रश्नकर्ता : दोपहर को वापिस सुबह का टकराव भूल भी जाते हैं और शाम को वापिस नया हो जाता है।
दादाश्री : वह हम जानते हैं, टकराव किस शक्ति से होता है, वह टेढ़ा बोलती है उसमें कौन-सी शक्ति काम कर रही है। बोलकर वापिस एडजस्ट हो जाते हैं। वह सब ज्ञान से समझ में आए ऐसा है, फिर भी एडजस्ट होना चाहिए जगत् में। क्योंकि हरएक वस्तु एन्डवाली होती है। और शायद वह लम्बे समय तक चले, फिर भी आप उसे हेल्प नहीं करते, अधिक नुकसान करते हो। अपने आपको नुकसान करते हो और सामनेवाले का भी नुकसान होता है! उसे कौन सुधार सकेगा? जो सुधरा हुआ हो वही सुधार सकेगा। खुद का ही ठिकाना नहीं हो वह सामनेवाले को किस तरह सुधार सकेगा?
प्रश्नकर्ता : हम सुधरे हुए हों तो सुधार सकेंगे न? दादाश्री : हाँ, सुधार सकोगे। प्रश्नकर्ता : सुधरे हुए की परिभाषा क्या है?
दादाश्री : सामनेवाले मनुष्य को आप डाँट रहे हों तब भी उसे उसमें प्रेम दिखे। आप उलाहना दे, तब भी उसे आपमें प्रेम ही दिखे की
क्लेश रहित जीवन अहोहो! मेरे फादर का मुझ पर कितना प्रेम है! उलाहना दो, परन्तु प्रेम से दो तो सुधरेंगे। ये कॉलेज में यदि प्रोफेसर उलाहना देने जाएँ तो प्रोफेसरों को सब मारेंगे।
सामनेवाला सुधरे, उसके लिए हमारे प्रयत्न रहने चाहिए। पर यदि प्रयत्न रिएक्शनरी हों, वैसे प्रयत्नो में नहीं पड़ना चाहिए। हम उसे झिड़कें
और उसे खराब लगे वह प्रयत्न नहीं कहलाता। प्रयत्न अंदर करने चाहिए, सूक्ष्म प्रकार से! स्थूल तरह से यदि हमें नहीं करना आता हो तो सूक्ष्म प्रकार से प्रयत्न करने चाहिए। अधिक उलाहना नहीं देना हो तो थोड़े में ही कह देना चाहिए कि हमें यह शोभा नहीं देता है। बस इतना ही कहकर बंद रखना चाहिए। कहना तो पड़ता है पर कहने का तरीका होता है।
...नहीं तो प्रार्थना का एडजस्टमेन्ट प्रश्नकर्ता : सामनेवाले को समझाने मैंने अपना पुरुषार्थ किया, फिर वह समझे या नहीं समझे वह उसका पुरुषार्थ?
दादाश्री : इतनी ही जिम्मेदारी हमारी है कि हम उसे समझा सकते हैं। फिर वह नहीं समझे तो उसका उपाय नहीं है। फिर हमें इतना कहना है कि दादा भगवान ! इनको सद्बुद्धि देना। इतना कहना पड़ेगा। कुछ उसे ऊपर नहीं लटका सकते, गप्प नहीं है। यह 'दादा' का एडजस्टमेन्ट का विज्ञान है, आश्चर्यकारी एडजस्टमेन्ट है यह। और जहाँ एडजस्ट नहीं हो पाए, वहाँ उसका स्वाद तो आता ही रहेगा न आपको? यह डिसएडजस्टमेन्ट यही मूर्खता है। क्योंकि वह जाने कि अपना स्वामित्व मैं छोडूंगा नहीं, और मेरा ही चलन रहना चाहिए। तो सारी ज़िन्दगी भूखा मरेगा
और एक दिन 'पोइजन' पड़ेगा थाली में। सहज चलता है, उसे चलने दो न! यह तो कलियुग है ! वातावरण ही कैसा है? इसलिए बीवी कहे कि आप नालायक हो, तो कहना 'बहुत अच्छा।'
प्रश्नकर्ता : हमें बीवी 'नालायक' कहे, वह तो उकसाया हो ऐसा लगता है।