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________________ ५. समझ से सोहे गृहसंसार ६३ दादाश्री : तो फिर हमें क्या उपाय करना चाहिए? तू दो बार नालायक है, ऐसा उसे कहना है ? और उससे कुछ हमारा नालायकपन मिट गया? हम पर मुहर लगी, मतलब हम दो बार मुहर लगाएँ? फिर नाश्ता बिगड़े, सारा दिन बिगड़े। प्रश्नकर्ता: एडजस्टमेन्ट की बात है, उसके पीछे भाव क्या है फिर कहाँ पहुँचना है? दादाश्री : भाव शांति का है, शांति का हेतु है। अशांति पैदा नहीं करने का कीमिया है । 'ज्ञानी' के पास से एडजस्टमेन्ट सीखें एक भाई थे। वे रात को दो बजे न जाने क्या-क्या करके घर आते होंगे, उसका वर्णन करने जैसा नहीं है। आप समझ जाओ। तब फिर घर में सबने निश्चय किया कि इनको डाँटें या घर में नहीं घुसने दें? क्या उपाय करें? वे उसका अनुभव कर आए। बड़े भाई कहने गए तो उसने बड़े भाई से कहा कि, 'आपको मारे बगैर छोडूंगा नहीं।' फिर घरवाले सभी मुझे पूछने आए कि, 'इसका क्या करें? यह तो ऐसा बोलता है।' तब मैंने घरवालों को कह दिया कि किसी को उसे एक अक्षर भी कहना नहीं है। आप बोलोगे तो वह ज्यादा उद्दंड हो जाएगा, और घर में घुसने नहीं दोगे तो वह विद्रोह करेगा। उसे जब आना हो, तब आए और जब जाना हो, तब जाए। हमें राइट भी नहीं बोलना है और रोंग भी नहीं बोलना है, राग भी नहीं रखना है और द्वेष भी नहीं रखना है, समता रखनी है, करुणा रखनी है। तब तीन-चार वर्षों बाद वो भाई अच्छे हो गए। आज वो भाई में बहुत मदद करता है। जगत् निकम्मा नहीं है, परन्तु काम लेना आना चाहिए। सभी भगवान हैं, और हरएक अलग-अलग काम लेकर बैठे हैं, इसलिए नापसंद जैसा रखना मत। आश्रित को कुचलना, घोर अन्याय प्रश्नकर्ता : मेरी पत्नी के साथ मेरा बिलकुल बनता नहीं है। चाहे ६४ क्लेश रहित जीवन जितनी निर्दोष बात करूँ, मेरा सच हो फिर भी वह उल्टा समझती है। बाहर का जीवन संघर्ष चलता है, पर यह व्यक्ति संघर्ष क्या होगा? दादाश्री : ऐसा है, मनुष्य खुद के हाथ के नीचेवाले मनुष्यों को इतना अधिक कुचलता है, इतना अधिक कुचलता है कि कुछ बाकी ही नहीं रखता। खुद के हाथ के नीचे कोई मनुष्य आया हो, फिर वह स्त्री के रूप में हो या पुरुष के रूप में हो, खुद की सत्ता में आया उसे कुचलने में कुछ बाकी ही नहीं रखते। घर के लोगों के साथ कलह कभी भी नहीं करनी चाहिए। उसी कमरे में पड़े रहना है वहाँ कलह किस काम की? किसी को परेशान करके खुद सुखी हो जाएँ, ऐसा कभी भी नहीं होता, और हमें तो सुख देकर सुख लेना है। हम घर में सुख दें तो ही सुख मिलेगा और चाय-पानी भी ठीक से बनाकर देंगे, नहीं तो चाय-पानी भी बिगाड़कर देंगे। कमज़ोर पति पत्नी पर सूरमा । जो अपने संरक्षण में हों, उनका भक्षण किस तरह किया जाए? जो खुद के हाथ के नीचे आया हो उसका रक्षण करना, वही सबसे बड़ा ध्येय होना चाहिए। उससे गुनाह हुआ हो तो भी उसका रक्षण करना चाहिए। ये पाकिस्तानी सैनिक अभी सब यहाँ कैदी हैं, फिर भी उन्हें कैसा रक्षण देते हैं ! तब ये तो घर के ही है न! ये तो बाहरवालों के सामने म्याऊँ हो जाते हैं, वहाँ झगड़ा नहीं करते और घर पर ही सब करते हैं। खुद की सत्ता के नीचे हो, उसे कुचलते रहते हैं और ऊपरी को साहब - साहब करते हैं। अभी यह पुलिसवाला डाँटे तो साहब - साहब कहेगा और घर पर वाइफ सच्ची बात कहती हो, तब उसे सहन नहीं होता और उसे डाँटता है, 'मेरे चाय के कप में चींटी कहाँ से आई?' ऐसा करके घरवालों को डराता है। उसके बदले तो शांति से चींटी निकाल ले न ! घरवालों को डराता है और पुलिसवाले के सामने काँपता है ! अब यह घोर अन्याय कहलाता है। हमें यह शोभा नहीं देता। स्त्री तो खुद की साझेदार कहलाती है। साझेदार के साथ क्लेश? यह तो क्लेश होता हो वहाँ कोई रास्ता निकालना पड़ता है, समझाना पड़ता है। घर में रहना है तो क्लेश किसलिए?
SR No.009589
Book TitleKlesh Rahit Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size51 KB
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