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५. समझ से सोहे गृहसंसार दोष। उसमें दीवार को क्या? चिकनी मिट्टी आए और आप फिसल जाएँ उसमें भूल आपकी है। चिकनी मिट्टी तो निमित्त है। हमें निमित्त को समझकर अंदर उँगलिया गड़ा देनी पड़ती हैं। चिकनी मिट्टी तो होती ही है, और फिसला देना, वह तो उसका स्वभाव ही है।
प्रश्नकर्ता : पर कलह खड़ा होने का कारण क्या है? स्वभाव नहीं मिलता, इसलिए?
दादाश्री : अज्ञानता है इसलिए। संसार उसका नाम कि कोई किसी का किसी से स्वभाव मिलता ही नहीं। यह 'ज्ञान' मिले उसका एक ही रास्ता है, 'एडजस्ट एवरीव्हेर'। कोई तुझे मारे फिर भी तुझे उसके साथ एडजस्ट हो जाना है।
प्रश्नकर्ता : वाइफ के साथ कई बार टकराव हो जाता है। मुझे ऊब भी होती है।
दादाश्री : ऊब हो उतना ही नहीं, पर कुछ तो जाकर समुद्र में डूब मरते हैं, ब्राँडी पीकर आते हैं।
सबसे बड़ा दुःख किसका है? डिसएडजस्टमेन्ट का, वहाँ एडजस्ट एवरीव्हेर करें, तो क्या हर्ज है?!
प्रश्नकर्ता : उसमें तो पुरुषार्थ चाहिए।
दादाश्री : कुछ भी पुरुषार्थ नहीं, मेरी आज्ञा पालनी है कि 'दादा' ने कहा है कि एडजस्ट एवरीव्हेर। तो एडजस्ट होता रहेगा। बीवी कहे कि 'आप चोर हो।' तो कहना कि 'यु आर करेक्ट।' और थोड़ी देर बाद वह कहे कि 'नहीं, आपने चोरी नहीं की।' तब भी, 'यु आर करेक्ट' कहें।
ऐसा है, ब्रह्मा का एक दिन, उतनी अपनी पूरी ज़िन्दगी है ! ब्रह्मा के एक दिन का जीना, और यह क्या धाँधली? शायद यदि हमें ब्रह्मा के सौ वर्ष जीने के होते तब तो हम समझें कि ठीक है, एडजस्ट क्यों हो? 'दावा कर' कहें। पर यह तो जल्दी पूरा करना हो उसका क्या करना पड़ेगा?
क्लेश रहित जीवन एडजस्ट हो जाएँ या दावा दायर कर, कहें? पर यह तो एक दिन ही है, यह तो जल्दी पूरा करना है। जो काम जल्दी पूरा करना हो उसे क्या करना पड़ता है? एडजस्ट होकर छोटा कर देना चाहिए, नहीं तो खिंचता ही जाता है या नहीं खिंचता?
बीवी के साथ लड़ें तो रात को नींद आएगी क्या? और सुबह नाश्ता भी अच्छा नहीं मिलेगा।
हमने इस संसार की बहुत सूक्ष्म खोज की है। अंतिम प्रकार की खोज करके हम ये सब बातें कर रहे हैं। व्यवहार में किस तरह रहना चाहिए, वह भी देते हैं और मोक्ष में किस तरह जा सकते हैं. वह भी देते हैं। आपकी अड़चनें किस तरह से कम हों, वही हमारा हेतु है।
घर में चलन छोड़ना तो पड़ेगा न? घर में हमें अपना चलन नहीं रखना चाहिए, जो व्यक्ति चलन रखता है उसे भटकना पड़ता है। हमने भी हीराबा से कह दिया था कि हम खोटा सिक्का हैं। हमें भटकने का पुसाता नहीं है न! नहीं चलनेवाला सिक्का हो उसका क्या करें? उसे भगवान के पास बैठा रहना होता है। घर में आपका चलन चलाने जाओ तो टकराव होता है न? हमें तो अब 'समभावे निकाल' करना है। घर में पत्नी के साथ 'फ्रेन्ड' की तरह रहना चाहिए। वे आपकी 'फ्रेन्ड' और आप उनके 'फ्रेन्ड'। और यहाँ कोई नोंध करता नहीं कि चलन तेरा था या उनका था। म्युनिसिपालिटी में नोंध होती नहीं
और भगवान के वहाँ भी नोंध होती नहीं है। हमें नाश्ते के साथ काम है या चलन के साथ काम है? इसलिए कौन-से रास्ते नाश्ता अच्छा मिलेगा वह ढूँढ निकालो। यदि म्युनिसिपालिटीवाले नोंध रख रहे होते कि किसका चलन घर में है, तो मैं भी एडजस्ट नहीं होता। यह तो कोई बाप भी नोंध करता नहीं है।
हमारे पैर दुःखते हों और बीवी पैर दबा रही हो, उस समय कोई आए और यह देखकर कहे कि ओहोहो! आपका तो घर में चलन बहुत अच्छा है। तब हम कहें कि, 'ना, चलन उनका ही चलता है। और यदि