________________
ज्ञानी पुरुष की पहचान
१७
प्रभु को पहचाना?
प्रश्नकर्ता: हम अभी परमेश्वर की भक्ति करते है और किसी को दुःख हो ऐसा भी नहीं करते है तो फिर ऐसे लोगों को परमेश्वर ज्यादा त्रास पीड़ा क्यों करता है?
दादाश्री : भगवान की कोई भक्ति करते ही नहीं। भगवान को पहचानता है? भगवान को कभी देखा था ?
प्रश्नकर्ता: नहीं।
दादाश्री : भगवान को पहचानता नहीं है, देखा भी नहीं है तो फिर किस की भक्ति करते हो?
प्रश्नकर्ता : लेकिन हमारा आचरण तो शुद्ध है न?
दादाश्री : आपका आचरण किधर शुद्ध है? आपको तो औरत चाहिये, पैसा चाहिये, लडका चाहिये। जिसको भगवान चाहिये, उसका आचरण शुद्ध होता है। उसे भगवान को नहीं पहचाने तो भी भगवान की भक्ति तो है ।
प्रश्नकर्ता: तो क्या सब छोड़ देना चाहिये?
दादाश्री : छोड़ देने की जरूरत नहीं है।
प्रश्नकर्ता: पूजा से भगवान प्राप्त हो सकते है?
दादाश्री : पूजा किसकी करते हो? औरत की करते हो?
प्रश्नकर्ता: नहीं, भगवान की करता हूँ।
दादाश्री सारा दिन औरत लड़के की और पैसे की, दोनों की पूजा करते हो और हम, हम' की पूजा करते हो। भगवान की पूजा ही कौन करता है? ! कुछ करते हो, वो तो खाली तुम्हारी सेफसाईड हो जाये इसलिए करते हो ।
१८
ज्ञानी पुरुष की पहचान
प्रश्नकर्ता: तो सच्ची पूजा किस तरह करने की?
दादाश्री : उसकी पूजा ही नहीं करनी पड़ती। भगवान को पहचानने के बाद भगवान की पूजा करने की जरूरत ही नहीं। फिर सारा दिन भगवान आपके पास से दूर जायेंगे ही नहीं। ओफिस में भी आपके पास ही रहेंगे।
प्रश्नकर्ता : राग, लोभ, मोह, मत्सर ये सब त्यागने से सच्ची पूजा हो सकती है क्या?
दादाश्री : वो सब त्याग कर सकते ही नहीं। कोई आदमी ऐसा नहीं हो गया है कि त्याग कर सके। आप खुद त्याग क्या करेंगे? आप खुद को तो पहचानते नहीं, तो फिर क्या करोगे? खुद को पहचानते है, वो ही त्याग कर सकते है। हम आपको खुद की पहचान करा देंगे। आप 'मैं हूँ' ऐसा जानते है मगर 'मैं क्या हूँ' वो नहीं जानते। फिर ये क्रोध, मान, माया, लोभ कैसे निकालेगा?
प्रश्नकर्ता: क्रोध, मान, माया, लोभ जाने के लिए सद्गुरू की कृपा ही चाहिये न?
दादाश्री : सद्गुरू को ही क्रोध, मान, माया, लोभ जाते नहीं न? तो वो क्या करेंगे? सब लोग ऐसा ही बोलते है कि सद्गुरू की कृपा ! मगर वो लौकिक के लिए ठीक बात है। 'ज्ञानी पुरुष' चाहिये तो वो एक घंटे में आत्मज्ञान करा देते है। फिर एक घंटे में सब क्रोध, मान, माया, लोभ निकल जायेंगे ।
जिधर समकित नहीं, उधर दर्शन करने से क्या फायदा? मूर्ति को नमन करो। वो वीतराग की है न? नहीं तो उस आदमी को नमन करो, जिसको सम्यक्त्व, सम्यक् द्रष्टि हो गयी हो। तो फिर आपको फायदा मिलेगा। जिधर सम्यक्त्व है, वहाँ कषाय बिलकुल मंद रहेते है। मंद कषाय याने क्या कि ये कषाय खुद को ही हैरान करते है, दूसरे किसी भी आदमी को हैरान नहीं करते। और ये तो कषाय ऐसे है कि खुद को हैरान करते है और दूसरों को भी हैरान करते है ।