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ज्ञानी पुरुष की पहचान
ज्ञानी पुरुष की पहचान
'आपको ईश्वरप्राप्ति हो गई है?' वो बोलेगा कि नहीं हो गई है, तो आपको दूसरी जगह पर जाने का। ऐसे तीसरी जगह पर, चौथी जगह पर जाने का। कोई जगह पर तो सच्चा मिल जायेगा।
प्रश्नकर्ता : हर साधु बोलता है कि हमको ईश्वरप्राप्ति हो गई है।
दादाश्री : हाँ, मगर उसको ऐसा बोलने का कि हमको ईश्वरप्राप्ति करा दो तो आप सच्चा, नहीं तो तुम्हारी बात गलत है।
प्रश्नकर्ता : गुरु सच्चा मिलना चाहिये।
दादाश्री : हाँ, गाईड सच्चा मिलना चाहिये। गुरु तो बहुत मिलते है मगर वो कैसे है कि जैसे ये साबुन रहता है वो कपडे को लगाओ तो फिर टीनोपाल डालना पडता है। क्योंकि साबुन अपना मेल छोडकर जाता है। वो मेल टीनोपाल से जाता है मगर टीनोपाल अपना मेल रखता है। ऐसा इधर क्या चाहिये? जो शुद्ध है, वह चाहिये। वह दूसरे को मेल ही नहीं डालता है।
पंदरह माईल स्टेशन दूर हो, तो भी नहीं मिलता है। एक बच्चे को गुरु कर लो और उसको पूछ लिया तो स्टेशन मिल जाता है। गुरु तो होना ही चाहिये। कितना बड़ा बड़ा संत लोग बोलते है कि गुरु की जरूरत नहीं। अरे, ऐसी क्या बात करते हो?! गुरु की सभी जगह पर जरूरत है। रास्ते में, स्टेशन तक जाने में, सब जगह में गरु की जरुरत है। मगर सब गुरु पेमेन्ट लेते है। वकील वो भी गुरु है, वो भी पेमेन्ट लेता है।
किसका ये कर लूँ', ऐसा ही सोचता है और लबाड़ी (बदमाशी) करता है, बिना हक्क का किसी का ले लेता है। उससे नया पाप बाँधता है। वो पापानुबंधी पुण्य है। पुण्यानुबंधी पुण्य में अभी पुण्य है और आगे के लिए भी अच्छा विचार करता है, सत्कर्म करता है, साधु पुरुष, संत पुरुष की सेवा करता है, उससे पुण्यानुबंधी पुण्य बाँधता है। पुण्यानुबंधी पुण्य थोडा भी हो तो भी 'ज्ञानी पुरुष' मिल जाते है।
प्रश्नकर्ता : हिन्दुस्तान में कितने साधु-संत हुए है, उसमें किसी का सच्चा मोक्षमार्ग है?
दादाश्री : जिधर हार्ट(हृदय) नहीं है, हार्टीली बात नहीं है, जिधर बुद्धि का भ्रम है, बुद्धि ज्यादा लगती है, वहाँ पर मोक्षमार्ग कभी होता ही नहीं। जिधर हार्ट है, उधर ही धर्म है। हार्ट नहीं उधर धर्म ही नहीं। सच्चा मोक्षमार्ग कौन सा है, वो भेद करने के लिए खोज करो कि बुद्धि है कि हार्टीली मार्ग है। जिधर हार्टीली मार्ग है. वहाँ हार्टीली का ज्यादा प्रयोग है. वहाँ सच्चा मार्ग है। वो मार्ग में जाना। वो सच्चा है मगर रिलेटिव मार्ग है। जो बुद्धिवाला मार्ग है, उसमें कोई फायदा नहीं है। वो मोक्षमार्ग ही नहीं, भ्रमित करने के लिए मार्ग है। वहाँ बद्धि ज्यादा भ्रमित हो जाती है. सफोकेशन हो जाता है।
संत पुरुष की डेफीनेशन कुछ है आपके पास?
प्रश्नकर्ता : आप्तबाणी में लिखा है कि पुण्य के संयोग से पैसा मिलता है, तो ज्ञान प्राप्त करने के लिए वैसे सद्गुरु मिलने के लिए पुण्य की आवश्यकता है क्या?
दादाश्री : हाँ, पुण्यानुबंधी पुण्य की जरूरत है, तो ही 'ज्ञानी' मिलते है। ये बड़े बड़े बंगले है, मोटर है, सब कुछ है, वो पुण्य तो है लेकिन वो पुण्यानुबंधी पुण्य नहीं है, पापानुबंधी पुण्य है। पापानुबंधी पुण्य याने पुण्य तो भुगतता है मगर बाँधता है क्या? पाप! सारा दिन 'किसका ले लँ.
प्रश्नकर्ता : मन में शांति होने के लिए जो कोई मार्ग बताता है, वो ही संत पुरुष हो सकता है।
दादाश्री : शांति दो प्रकार की रहेती है; एक तो जैसे बहुत ठंड पड़ती है, हीम पड़ता है, तो सब लोग सगडी के पास बैठते है, उतने समय ठंड नहीं लगती है और उधर से उठ गया कि फिर ठंड लगती है। वो ऐसी शांति है। टेम्पररी शांति देता है, उसको संत पुरूष बोला जाता है, जो परमेनन्ट शांति देता है, उसको सत् पुरुष बोला जाता है और जो मोक्ष देता है, उसको 'ज्ञानी पुरुष' बोला जाता है।