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समजने की ही है। वस्तु को यथार्थ समजने से सम्यक् दर्शन होता है और यथार्थ जानने से सम्यक् ज्ञान होता है। जो जान गया और समज गया, उससे सम्यक् चारित्र होता है।
__ भगवान ने कहा है कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए कुछ करने की आवश्यकता नहीं है, उसके लिए तो 'ज्ञानी पुरुष' के पीछे पीछे चले जाना। उनका साथ कभी नहीं छोडना।
मोक्ष याने मुक्त भाव, सच्ची आझादी। कोई उपरी नहीं, कोई 'अंडरहेन्ड' भी नहीं ऐसा मोक्ष संसार में रहते हुए भी प्राप्त करके संपूज्य श्री 'दादाजी' गृहस्थीयों के लिए एक मिसाल बन चुके है ताकि गृहस्थीयों को भी हिंमत रहे कि हम भी मोक्ष पा सकते है। और मोक्ष के लिए संसार त्याग की जरूरत नहीं, मगर अज्ञान दूर हो गया तो संसार में मोक्ष सहज प्राप्त हो जाता है। मोक्ष सुलभ है किन्तु मोक्षदाता अति अति दुर्लभ है, क्योंकि मोक्षदाता ऐसे 'ज्ञानी पुरुष' वर्ल्ड में कभी ही प्रगट होते है। यदि ऐसे पुरुष मिल जाये तो उनके चरणों में सर्व भाव अर्पण करके उनके पीछे पीछे चले जाना ही हितकारी है। 'ज्ञानी पुरुष' के सिवा दुनिया में दसरी कोई भी चीज हितकारी नहीं होती। उनके पास माया सदा के लिए बिदा लेती है। संसार की मायाजाल से सिर्फ 'ज्ञानी पुरुष' ही छूड़ा सकते है। जो खुद मुक्त है, वही दूसरों को बंधन से छूड़ा सकते है। खुद बंधन में फंसा है, वह दूसरों को कैसे छुड़ा सकेगा?
जिसे सिर्फ मोक्ष की ही एकमेव कामना है, उसे तो किसी न किसी तरह मोक्ष मिले बिना नहीं रहता। अरे, 'ज्ञानी पुरुष' खुद उसके घर जाकर उसके हाथ में मोक्ष देते है। इतना प्रभाव अपनी मोक्ष की तीव्र कामना में है।
करके तो अनंत अवतार गये, कुछ फल नहीं आया। आपकी शरणागति स्विकार की है, आप हमे बंधन से मुक्ति दो।
ज्ञानी मिले बिना किसी का मोक्ष होना संभवित नहीं है, प्रगट दिये से ही दूसरा दिया जलता है। 'ज्ञानी पुरुष' अहंकार-ममता को छूडाते है
और शुद्धात्मा को ग्रहण कराते है। उनके चरणों में अहंकार पिधलाने का सामर्थ्य होता है।
__ 'ज्ञानी पुरुष' स्वयं शुद्ध होते है, इसलिए उनको देखते ही शुद्ध हो जाते है। नहीं तो 'ज्ञानी पुरुष' बिना 'खुद' का 'स्वरूप' मिले ऐसा नहीं है। अरे. अनंत अवतार जाये तो भी न मिले ऐसा है और 'ज्ञानी पुरुष' मिलते ही मिल जाये ऐसा है।
निज स्वरूप की भ्रांति कोई भी उपाय से जाती नहीं। वह तो 'ज्ञानी पुरुष' ही भ्रांति दूर कर सकते है। इसलिए श्रीमद राजचंद्रजी ने कहा कि प्रत्यक्ष 'ज्ञानी पुरुष' की खोज करो, सजीवन मूर्ति की खोज करो। जो स्वयं मुक्त हुए है, ऐसे मुक्त पुरुष की खोज करना। 'ज्ञानी पुरुष' तरण तारणहार होते है, वे खुद तो तैर गये किन्तु अनेकों को तारने का सामर्थ्य उनमें होता है, ऐसे 'ज्ञानी पुरुष' मिले तो उनके कदमों के पीछे पीछे निर्भय-निःशंक होकर चले जाना। ज्ञान 'ज्ञानी पुरुष' के हृदय में ही होता है और कहीं नहीं! 'ज्ञानी पुरुष' के पास ज्ञानप्राप्ति हो तो ही काम बनेगा।
और 'ज्ञानी' का आश्रित ही स्वच्छंद नाम का संसार रोग निर्मूल कर सकता है। 'ज्ञानी पुरुष' के आश्रय बिना, उनकी आज्ञानुसार चले बिना, जो कुछ भी किया, तप-त्याग, क्रिया या शास्त्र पठन किया, वह सब स्वच्छंद है और स्वच्छंद से की गई तमाम क्रिया बंधन में डालती है।
लौकिक में शास्त्र के ज्ञानी को 'ज्ञानी' कहते है, असल में तो 'ज्ञानी' वही होता है कि जो आत्मज्ञानी हो। वे ज्ञानावतार होते है और ऐसे 'ज्ञानी पुरुष' कभी गुप्त नहीं रहते। वे तो आम लोगों के बीच में ही पर्यटन करते रहते है। खुद को जो ज्ञान प्रगट हुआ है, खुद ने जिस सुख को पाया है, वही ज्ञान, वही सुख दूसरों को लूटाते फिरते है। पूर्ण
'ज्ञानी पुरुष' मिलने के बाद कुछ भी महेनत करनी नहीं पड़ती। महेनत का फल संसार है, मोक्ष नहीं। यदि 'ज्ञानी' के मिलने के बाद कछ महेनत करनी पडे तो 'ज्ञानी' ही नहीं मिले!! 'ज्ञानी' मिलने पर तो ज्ञानी को कहना कि आपके मिलने के बाद अब महेनत क्या करनी? महेनत
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