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चिंत्ता
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चिंत्ता
और हमारे घर नहीं। अबे, जीवन यापन के लिए कितना चाहिए? तू एक बार तय कर ले कि इतनी मेरी जरुरतें हैं। जैसे घर में खाने-पीने को पर्याप्त चाहिए, रहने को घर चाहिए, घर चलाने के लिए पर्याप्त लक्ष्मी चाहिए। तो इतना तुझे अवश्य प्राप्त होगा ही। पर यदि पड़ौसी के दस हजार बैंक में पड़े हों, तो तुझे मन में खटकता रहे। ऐसे तो दुःख पैदा होते हैं। दुःख को खुद ही बुलाता है।
जीने का आधार, अहंकार । जब पैसे बहुत आने लगे न, तो व्याकुल होगा, चिंतित होगा। यह अहमदाबाद के मिलवाले सेठों की तफ़सील कहूँ तो आपको लगेगा कि हे भगवान, यह दशा एक दिन के लिए भी मत देना। सारा दिन शकरकंद भट्ठी में रखा हो, उस तरह भुनाते रहते हैं। किस आधार पर जी रहे हैं? मैं ने एक सेठजी से पूछा, 'किस आधार पर आप जीते हैं?।' तब कहें, 'यह तो मैं भी नहीं जानता।' तब मैं ने कहा, 'बता दूँ? सबसे बड़ा तो मैं ही हूँ न, बस इस आधार पर जीते हैं। बाकी कुछ भी सुख नहीं मिलता।
___ न करो अप्राप्त की चिंता अहमदाबाद के कुछ सेठ मिले थे। मेरे साथ भोजन लेने बैठे थे। तब सेठानी सामने आकर बैठीं। मैं ने पूछा, 'सेठानीजी, आप क्यों सामने
आकर बैठी?' तो बोली, 'सेठजी ठीक से भोजन नहीं करते हैं , एक दिन भी।' भोजन करते समय मिल में गये होते हैं, इससे मैं समझ गया। जब मैं ने सेठजी को टोका तो बोले, 'मेरा चित्त सारा वहाँ (मिल में) चला जाता है।' मैं ने कहा, 'ऐसा मत करना। वर्तमान में थाली आई उसे पहले, अर्थात प्राप्त को भुगतो, अप्राप्त की चिंता मत करो। जो प्राप्त वर्तमान है उसे भुगतो।
चिंता होती हो तो फिर भोजन लेने रसोईघर में जाना पड़े? फिर बेडरुम में सोने जाना पड़े? और ऑफिस में काम पर...
प्रश्नकर्ता : वो भी जाते हैं।
दादाश्री : वे सारे डिपार्टमेन्ट है। तो इस एक ही डिपार्टमेन्ट की उपाधि हो, उसे दूसरे डिपार्टमेन्ट में मत ले जाना। एक डिवीजन में जायें तो वहाँ जो हो वह सब काम पूर्णतया कर लेना। पर दूसरे डिविजन में भोजन करने गये, तो पहले डिविजन की उपाधि वहीं छोडकर, वहाँ भोजन लेने बैठे तो स्वाद से भोजन करना। बेडरुम में जाने पर भी पहलेवाली उपाधि वहीं की वहीं रखना। ऐसा आयोजन नहीं होगा, वह मनुष्य मारा जायेगा। खाने बैठा हो तब चिंता करे कि ऑफिस में साहब डाँटेंगे तब क्या करेंगे? अरे, डाँटेंगे तब देख लेंगे, अभी चैन से भोजन ले न!
भगवान ने क्या कहा था कि, 'प्राप्त को भुगतो, अप्राप्त की चिंता मत करो।' अर्थात क्या कि, 'जो प्राप्त है उसे भुगतो!'
एयरकंडिशन में भी चिंता प्रश्नकर्ता : और भी चिंताएँ होगी न दिमाग़ में।
दादाश्री : खाना खाते हो तो भी साथ में चिंता होती है। अर्थात वो घंटा सिर के ऊपर लटकता ही होगा तब, 'अब गिरा, अब गिरा, अब गिरा!!' अब बोलिए! ऐसे भय के संग्रहस्थान के नीचे यह सभी भोगना है। अर्थात यह सब किस हद तक पुसायेगा? फिर भी लोग निर्लज्ज होकर भोगते भी हैं। जो होना होगा, वह होगा, मगर भुगतो। इस संसार में भोगने योग्य है कुछ?
विदेश में ऐसा-वैसा नहीं होता। किसी देश में ऐसा नहीं होता। यह सब तो यहीं पर है। बुद्धि का भंडार, थोक बुद्धि, चिंता भी थोक, कारखाने निकाले है सभी। ये बड़े बड़े कारखाने, जबरदस्त पंखे फिरे उपर से, सब फिरे। चिंता भी करते हैं और उपाय भी करते हैं। फिर वह ठंडा करता हैं, क्या कहते हैं उसे?