________________
चमत्कार
इसलिए जहाँ समझदार लोग होते हैं न, जिनकी फूलिशनेस खतम हो गई है न, वे लोग चमत्कार को मानते ही नहीं। यह चमत्कार तो बुद्धुओं को बुद्ध बनाने का मार्ग है, समझदारों को नहीं !!
इसलिए मैंने इन सभी से कहा हुआ है कि ऊपर से सूर्यनारायण भी कोई लाकर दिखाए तो सबसे पहले पूछना कि 'तू किस चीज़ का भिखारी है, वह तू बता हमें एक बार ? !' अब इतना बड़ा तो कोई कर सके ऐसा नहीं है न? तो दूसरे तो ये चमत्कार कहलाते ही नहीं ! चमत्कार या विज्ञान?
प्रश्नकर्ता: तो यह चमत्कार जैसी जो वस्तु कहते हैं वह मेस्मेरीज़म ( सम्मोहन ) है ? वह वास्तव में क्या है?
दादाश्री : चमत्कार मतलब मूर्ख बनाने का धंधा ! हमें समझ में नहीं आए न, उसे हम चमत्कार कहते हैं। पर वह होता क्या है? वह विज्ञान है। जो विज्ञान हम नहीं जानते हों, उसे चमत्कार के रूप में दिखाते हैं और दूसरा, वे नज़रबंदी करते हैं। बाक़ी, यह चमत्कार जैसा तो होता ही नहीं है, इतना तो आपको पक्का मान लेना है। जहाँ किंचित् मात्र चमत्कार है, वह जादूगरी कहलाता है।
प्रश्नकर्ता: पर दादा, कुछ लोग चमत्कार तो करके बताते हैं न सभी को और सभी को चमत्कार दिखता भी है न!
दादाश्री : वह तो विज्ञान नहीं जानने के कारण चमत्कार लगता है। अपने यहाँ एक महात्मा को चमत्कार करना आता है। मैंने उसे कहा, 'तू चमत्कार करता है, पर चमत्कार तो गलत बात है।' तब उसने कहा, 'दादाजी, वह तो आप ऐसा कह सकते हैं। मुझसे तो ऐसा नहीं कहा जाएगा न!' मैंने कहा, 'तू चमत्कार करता है, वह क्या है, वह मुझे दिखा तो सही!' उसने कहा, 'हाँ, दिखाता हूँ।' फिर उसे प्रयोग करने के लिए बिठाया। उसने दस पैसे का सिक्का एक भाई के हाथ में दिया और मुठ्ठी में बंद रखवाया। फिर उसने क्या किया? एक दियासलाई सुलगाकर दूर रखकर ऐसे-ऐसे, ऐसे दूर से हाथ घूमाकर मंत्र पढ़ने लगा। थोड़ी देर में
१६
चमत्कार
वह सिक्का अंदर मुठ्ठी में गरम होने लगा। इसलिए उसने फिर दूसरी दियासलाई सुलगाई। उससे पहले तो वह सिक्का इतना अधिक गरम हो गया कि उसने सिक्का छोड़ दिया, जल जाए वैसा था ! फिर मैंने उससे कहा, 'दूसरे चमत्कार करने हों तो कर, पर तू इस चमत्कार का मुझे खुलासा कर दे।' तब उसने कहा, 'उसमें ऐसी चीजें आती हैं, केमिकल्स कि हम वह केमिकल्स सिक्के पर ऐसे थोड़ा घिसते हैं और फिर दे देते हैं, उस घड़ी ठंडा बर्फ जैसा होता है। थोड़ा टाइम होने पर गरम गरम हो जाता है।' इसलिए यह साइन्स है, चमत्कार नहीं है! या फिर हम जो जानते नहीं हैं कि वह विज्ञान है या दूसरा कुछ उसकी हाथ की सफाई है । और कोई ऐसा करें, तब हम इतना कह सकते हैं कि 'आपकी चालाकी को धन्य है कि मेरे जैसे को भी उलझन में डाल देते हो आप !' इतना कह सकते हैं पर 'आप चमत्कार करते हो' ऐसा नहीं बोल सकते!
तली पकौड़ियाँ कागज की कढ़ाई में !!!
मैं अट्ठाईस साल का था, तब हमारे दसेक दोस्त बैठे हुए थे, तब चमत्कार की बात निकली। तब तो मुझमें अहंकारी गुण था न, इसलिए अहंकार तुरन्त फूट पड़ता था। अहंकार फूटे बगैर रहता नहीं था। इसलिए मैं बोल उठा कि, 'क्या चमत्कार - चमत्कार करते हो? ले, चमत्कार मैं कर दूँ।' तब सबने कहा, 'आप क्या चमत्कार करते हो?' तब मैंने कहा, 'यह कागज़ है। उसकी कढ़ाई में पकौड़ियाँ तल दूँ, बोलो!' तब सबने कहा, 'अरे, वैसा होता होगा? यह तो कुछ पागल जैसी बात कर रहे हो?" मैंने कहा, 'कागज़ की कढ़ाई बनाकर, अंदर तेल डालकर, स्टोव पर रखकर पकौड़ियाँ बनाकर दूँ और आप सभी को एक-एक खिलाऊँ ।' तब सबने कहा, 'हमारी सौ रुपये की शर्त।' मैंने कहा, 'नहीं। उस शर्त के लिए यह नहीं करना है। हमें घुड़सवारी नहीं करनी है। सौ के बदले दस रुपये निकालना। उसके बाद हम चाय-नाश्ता करेंगे।' और उन दिनों तो दस रुपये में तो बहुत कुछ हो जाता था !
हमारे वहाँ बड़ौदा में न्याय मंदिर है, उसका बड़ा सेन्ट्रल हॉल था । वहाँ एक व्यक्ति की जान पहचान थी। इसलिए वहाँ हॉल में यह प्रयोग