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चमत्कार
चमत्कार
प्रश्नकर्ता : सिद्धि का यदि उपयोग नहीं होना हो तो फिर वह सिद्धि काम क्या आएगी?
दादाश्री : ऐसा है, सिद्धि मतलब सिद्ध होने के अंश! वे अंश हम सिद्ध होने से पहले ही भुना लें तो सिद्ध हो सकेंगे क्या?! बाक़ी मनुष्य जैसे-जैसे ऊँचा जाता है न, वैसे-वैसे सिद्धि उत्पन्न होती है। अब उस सिद्धि का दुरुपयोग हो तब सिद्धि खतम हो जाती है।
नहीं है चमत्कार दुनिया में कहीं भी? यानी यह तो सिद्धि का उपयोग करते हैं, उसे अपने लोग चमत्कार कहते हैं। तो फिर दूसरा सिद्धि का उपयोग करे वह भी चमत्कार कहलाएगा। पर वह चमत्कार नहीं कहलाता। चमत्कार तो, दूसरा कोई नहीं कर सके, वह चमत्कार कहलाता है। दूसरा करे मतलब उसका अर्थ उतना ही कि आप भी उस डिग्री पर जाओगे, तब आप अपनी सिद्धि भना दोगे तो उसे भी वैसा ही चमत्कार माना जाएगा और नहीं भुनाए उसके पास चमत्कार नहीं है?!
मेरी बराबरी का बैठा हो तो वह मेरे जैसा ही सबकुछ करेगा या नहीं करेगा? अवश्य होगा। इसलिए वह चमत्कार नहीं माने जाते। वह तो बाय प्रोडक्ट हैं सिद्धि के! मेरी इच्छा नहीं है कि ऐसे चमत्कार करूँ, पर फिर भी इतना बाय प्रोडक्ट है, यानी यशनाम कर्म है उसके कारण यह प्राप्त होता है!
किया?!' जो विद्या दूसरों को सिखाई जा सके और फिर दूसरा करे तो फिर उसे चमत्कार नहीं कह सकते। चमत्कार दूसरा कोई व्यक्ति कर ही नहीं सकता! इसलिए यह चमत्कार नहीं कहा जा सकता। इसलिए चमत्कार किसी जगह पर मानना नहीं। कोई चमत्कारी पुरुष दुनिया में हुआ ही नहीं!
छुपी है वहाँ कोई भीख चमत्कार करनेवाला तो कोई अभी तक पैदा ही नहीं हआ है दुनिया में! चमत्कार तो किसे कहा जाता है? इन सूर्यनारायण को यहाँ हाथ में लेकर आए, तो उसे हम बड़े से बड़ा चमत्कार कहेंगे। जब कि ये दूसरे तो चमत्कार माने ही नहीं जाएँगे! कदाचित कोई व्यक्ति सूर्यनारायण को हाथ में लेकर आए तो भी वह चमत्कार नहीं कहलाएगा। क्योंकि उसे कुछ भूख है, भूखा है किसी चीज़ का वह ! हम तो उसे कहें कि, 'किसके भिखारी हो, कि उन्हें वहाँ से हिलाया? वे जहाँ से प्रकाशमान कर रहे हैं, वहाँ से तू किसलिए हिलाता है? वहाँ से यहाँ लाने का कारण क्या था? तू किसी चीज का भिखारी है। इसलिए तू यह लाया है न?' किसी चीज़ का इच्छुक हो, वह लाएगा न? कोई भी इच्छा होगी, विषय की इच्छा होगी, मान की इच्छा होगी या लक्ष्मी की इच्छा होगी। 'यदि तू लक्ष्मी का भिखारी है, तो तुझे हम सारी लक्ष्मी इकट्ठी करके देंगे। अब सूर्यनारायण को हिलाना नहीं। इसलिए जा तू उन्हें वापिस रख दे!' क्या जरूरत है उसकी? सूर्यनारायण वहाँ पर हैं, पर वह यहाँ पर दिखावा करने के लिए लाया है? सच्चा पुरुष तो किसी चीज़ को हिलाता नहीं। फिर उल्टा-सीधा कुछ करें, हम उसकी दानत नहीं समझ जाते कि दानत खराब है उसकी! और उससे हमें क्या फायदा होगा? हमारी एक पहर की भूख भी नहीं मिटेगी! अभी देवताओं को यहाँ बुलाकर दर्शन करवाए, तो भी हमें क्या फायदा? वे भी व्यापारी और हम भी व्यापारी! हाँ, मोक्ष जानेवाले हों ऐसे 'ज्ञानी पुरुष' या तीर्थकर हों तो हमें फायदा होगा। जिनके दर्शन करने से ही अपने भाव प्र-भाव को प्राप्त हों, भाव ऊँचे आएँ तो काम का!
यानी दूसरा कोई न कर सके, वह चमत्कार कहलाता है! यह डेफिनेशन आपको पसंद आए तो स्वीकार करना। और नहीं तो यह डेफिनेशन हमारी स्वतंत्र है। किसी पुस्तक की लिखी हुई नहीं कहता
इस चमत्कार का अर्थ आपको समझ में आया न? कोई कहे, 'मैंने यह चमत्कार किया' तो आप क्या कहोगे? कि 'यह तो दूसरा भी कर सकता है, आपकी डिग्री तक पहुँचा हुआ व्यक्ति, उसमें आपने क्या