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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य
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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य
बस! देवों में भी ज्यों ज्यों ऊपर उठते हैं, त्यों त्यों विषय कम होता जाता है। कुछ तो बातचीत करें कि विषय पूर्ण हो जाता है। जिन्हें स्त्री सहवास पसंद है ऐसे भी देव हैं और जिन्हें केवल यों ही एक घंटा स्त्री से मिले तब भी बहुत आनंद होता है ऐसे भी देव हैं और कितने ही ऐसे भी देवता हैं कि जिन्हें स्त्री की ज़रूरत ही नहीं होती। अतः हर तरह के देव होते हैं।
इस काल में एक पत्नीव्रत को हम ब्रह्मचर्य कहते हैं और तीर्थकर भगवान के समय में ब्रह्मचर्य का जो फल प्राप्त होता था, वही फल उन्हें प्राप्त होगा, उसकी हम गारन्टी देते हैं।
प्रश्नकर्ता : एक पत्नीव्रत जो कहा, वह सूक्ष्म में या मात्र स्थूल ही? मन तो जाए ऐसा है न?
दादाश्री : सूक्ष्म से भी होना चाहिए। कभी मन जाए तो मन से अलग रहना चाहिए और उसके प्रतिक्रमण करते रहना चाहिए। मोक्ष में जाने की लिमिट (मर्यादा) क्या? एक पत्नीव्रत और एक पतिव्रत। एक पत्नीव्रत या एक पतिव्रत का कानून हो, वह लिमिट कहलाता है।
जितने श्वासोच्छवास अधिक खर्च हों, उतना आयुष्य कम होता है। श्वासोच्छवास किसमें अधिक खर्च होते हैं? भय में, क्रोध में, लोभ में. कपट में और उनसे भी ज्यादा स्त्री संग में। उचित स्त्री संग में तो बहुत अधिक खर्च हो जाते हैं मगर उससे भी कहीं अधिक अनुचित स्त्री संग में खर्च हो जाते हैं। मानो कि सारी फिरकी ही एकदम से खुल जाए!
प्रश्नकर्ता : देवों में एक पत्नीव्रत होता होगा?
दादाश्री : एक पत्नीव्रत यानी कैसा कि सारी ज़िन्दगी एक ही देवी के साथ बितानी। पर जब दूसरे की देवी देखें तब मन में ऐसे भाव होते हैं कि, ये तो मेरी है उससे भी अच्छी है।' ऐसा होता है ज़रूर, किन्तु जो है उसमें कोई परिवर्तन नहीं होगा।
प्रश्नकर्ता : देवगति में पुत्र का प्रश्न नहीं है फिर भी वहाँ विषय तो भोगते ही हैं न?
दादाश्री : वहाँ ऐसा विषय नहीं होता। यह तो निपट गंदगी ही है। देव तो यहाँ खड़े भी न रहें। वहाँ उनका विषय कैसा होता है? केवल देवी आए कि उन्हें देखा, कि उनका विषय पूरा हो गया, बस! कुछ देवीदेवता को तो ऐसा होता हैं कि दोनों यों ही हस्त स्पर्श करें अथवा आमनेसामने दोनों एक दूसरे के हाथ दबा रखें तो उनका विषय पूर्ण हो गया,
५. बिना हक़ का विषयभोग, नर्क का कारण
परस्त्री और परपुरुष प्रत्यक्ष नर्क का कारण है। नर्क में जाना हो तो वहाँ जाने की सोचो। हमें उसमें हर्ज नहीं है। तम्हें ठीक लगे तो नर्क के उन दु:खों का वर्णन करूँ। जिसे सुनते ही बुखार चढ़ जाएगा, तब वहाँ उनको भुगतते तेरी क्या दशा होगी? मगर खुद की स्त्री हो तो कोई आपत्ति नहीं है।
पति-पत्नी के संबंध को कुदरत ने स्वीकार किया है। उसमें यदि कभी विशेषभाव न हो तो आपत्ति नहीं है। कुदरत ने उतना स्वीकार किया है। उतना परिणाम पापरहित कहलाए। मगर इसमें अन्य पाप बहुत समाए हैं। एक ही बार विषय भोगने में करोड़ों जीव मर जाते हैं, वह क्या कम पाप है? फिर भी वह परस्त्री जैसा बड़ा पाप नहीं कहलाता।
प्रश्नकर्ता : नर्क में अधिकतर कौन जाता है?
दादाश्री : शील के लुटेरों के लिए सातवाँ नर्क है। जितनी मिठास आई होगी, उससे अनेक गुना कड़वाहट का अनुभव हो, तब वह तय करता है कि अब वहाँ नर्क में नहीं जाना। अत: इस संसार में यदि कोई नहीं करने योग्य कार्य हो तो, किसी के शील को मत लूटना। कभी भी दृष्टि मत बिगड़ने देना। शील लूटे तो फिर नर्क में जाए और मार खाता ही रहे। इस संसार में शील जैसी कोई उत्तम चीज़ नहीं है।
हमारे यहाँ इस सत्संग में ऐसा छल-कपट का विचार आए तो मैं कहँ कि यह अर्थहीन बात है। यहाँ ऐसा व्यवहार किंचित् मात्र नहीं चलेगा और ऐसा व्यवहार चल रहा है ऐसा मेरे लक्ष्य में आया तो मैं निकाल बाहर करूँगा।