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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य
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६. 'खुद' खुद को डाँटना
इस भाई को देखिए न, खुद ने खुद को डाँटा था, धमका दिया था। वह रोता भी था और खुद को धमकाता भी था, दोनों देखने योग्य चीजें थी।
प्रश्नकर्ता: एक बार दो-तीन दफ़ा चंद्रेश को डाँटा था, तब बहुत रोया भी था। पर मुझे ऐसा भी कहता था कि अब ऐसा नहीं होगा, फिर भी दुबारा होता है।
दादाश्री : हाँ, वह होगा तो सही, पर हर बार फिर से कहते रहना। हमें कहते रहना हैं और वह होता रहेगा। कहने से हमारा जुदापन रहता है, तन्मयाकार नहीं हो जाते। वह पड़ोसी (फाइल नं. १) को डाँटते हैं, इस प्रकार से चलता रहता है। ऐसा करते-करते पूरा हो जाएगा और सभी फाइलें पूरी हो जाएँगी। विषय का विचार आए तब 'यह मैं नहीं हूँ, अलग है' ऐसा रखना और उसे डाँटना होगा।
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प्रश्नकर्ता: आप जो शीशे में सामायिक करने का प्रयोग बतलाते हैं न, फिर प्रकृति के साथ बातचीत, वे सभी प्रयोग अच्छे लगते हैं मगर दो-तीन दिन ठीक से होते हैं, फिर उसमें ढीलापन आ जाता है।
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दादाश्री ढीलापन आए तो फिर से नये सिरे से करना। पुराना हो जाए तब ढीलापन आ जाता है। पुद्गल का स्वभाव, पुराना हो तब बिगड़ने लगता है। उसे फिर से ठीक करके रख देना ।
प्रश्नकर्ता: उस प्रयोग के द्वारा ही कार्य सिद्ध हो जाना चाहिए। लेकिन वह हो नहीं पाता और बीच में ही प्रयोग पूरा हो जाता है। दादाश्री : ऐसा करते-करते सिद्ध होगा, तुरंत नहीं हो जाता ।
७. पश्चाताप सहित के प्रतिक्रमण
प्रश्नकर्ता: कभी कभी तो प्रतिक्रमण करने से ऊब जाते हैं, एक साथ इतने सारे करने पड़ते है।
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य दादाश्री : हाँ, यह अप्रतिक्रमण का दोष है। उस वक्त प्रतिक्रमण नहीं किए, उसको लेकर यह हुआ। अब प्रतिक्रमण करने से फिर से दोष नहीं होगा।
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प्रश्नकर्ता: कपड़ा (दोष) धुल गया कब कहलाता है? दादाश्री : प्रतिक्रमण करें तब ! हमें खुद को ही पता चले कि मैंने धो डाला।
प्रश्नकर्ता भीतर खेद रहना चाहिए?
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दादाश्री : खेद तो रहना ही चाहिए। जब तक यह निबटारा नहीं होता तब तक खेद तो रहना ही चाहिए। हमें तो देखते रहना है कि वह खेद रहता है या नहीं। हमें अपना काम करना हैं, वह उसका काम करे। प्रश्नकर्ता : यह सब चिकना बहुत है। उसमें थोड़ा-थोड़ा फर्क पड़ता जाता है।
दादाश्री : जैसा दोष भरा था, वैसा निकलता है। पर वह पाँच साल या दस साल में, बारह साल में सब खाली हो जाएगा। टँकियाँ सभी साफ़ कर देगा। फिर शुद्ध ! फिर आनंद करना !
प्रश्नकर्ता: एक बार बीज पड़ गया हो फिर रूपक में तो आएगा ही न?
दादाश्री : जो बीज पड़ ही जाए न, वह रूपक में आएगा। मगर जब तक वह जम नहीं गया, तब तक कम-ज्यादा हो सकता है। इसलिए मरने से पहले वह शुद्ध हो सकता है।
विषय के दोष हुए हों, अन्य दोष हुए हों, उसे हम कहते हैं कि रविवार को तू उपवास करना और सारा दिन उन दोषों का बार-बार विचार करके उन्हें धोते रहना । ऐसे आज्ञापूर्वक करें तो कम हो जाते हैं।
प्रश्नकर्ता: विषय-विकार संबंधी सामायिक प्रतिक्रमण कैसे करें? किस प्रकार ?