________________
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य
२५
जितना तू सिन्सियर (निष्ठावान) उतनी तेरी जागृति। यह तुझे सूत्र के रूप में हम देते हैं और छोटा बच्चा भी समझ सके ऐसे स्पष्ट रूप में देते हैं। जो जितना सिन्सियर उसकी उतनी जागृति। यह तो विज्ञान है। इसमें जितनी सिन्सियारिटी उतना ही हमारा खुद का (काम) होता है और यह सिन्सियारिटी तो ठेठ मोक्ष की ओर ले जाए। सिन्सियारिटी का फल मोरालिटी (नैतिकता) में आता है।
प्रश्नकर्ता: उस दिन आप कुछ बता रहे थे कि जवानी में भी 'रीज पोइन्ट' होता है, तो वह 'रीज पोइन्ट' क्या है?
दादाश्री : 'रीज पोइन्ट' अर्थात् यह छप्पर होता है न, उसमें 'रीज पोइन्ट' कहाँ पर आया? चोटी पर ।
जवानी जब 'रीज पोइन्ट' पर जाती है उस समय ही सब तहसनहस कर डालती है। उसमें से जो 'पास' हो गया, गुज़र गया, वह जीता। हम तो सब कुछ सँभाल लेते हैं, पर यदि उसका खुद का मन परिवर्तन हो जाए तो फिर उपाय नहीं है। इसलिए हम उसे अभी उदय होने से पहले सिखा देते हैं कि भैया, नीचे देखकर चलना । स्त्री को मत देखना, बाकी पकौड़े- जलेबियाँ सब देखना। इस बारे में आपके लिए गारन्टी नहीं दे सकते, क्योंकि अभी जवानी है।
४. विषय विचार, परेशान करें तब ...
कभी भीतर कोई खराब विचार आए और निकालने में देर हो गई तो फिर उसका भारी प्रतिक्रमण करना पड़ता है। विचार उदय होते ही तुरंत निकाल देना है, उसे फेंक देना है।
५. नहीं चलते, मन के कहने के अनुसार
मन के कहने के अनुसार चलना ही नहीं। मन का कहना यदि हमारे ज्ञान के अनुसार हो तो उतना एडजस्ट कर लेना। हमारे ज्ञान से विरुद्ध चले तो बंद कर देना ।
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य देखिए न, चार सौ साल पहले कबीरजी ने कहा, कितने समझदार मनुष्य थे वह ! कहते हैं, 'मन का चलता तन चले, ताका सर्वस्व जाय। ' सयाने नहीं कबीरजी ? और यह तो मन के कहने के अनुसार चलता रहता है। मन कहे कि 'इससे शादी कर लो तो क्या शादी कर लेनी ?
प्रश्नकर्ता: नहीं, ऐसा नहीं कर सकते।
२६
दादाश्री : मन अभी तो बोलेगा। ऐसा बोलेगा तो उस वक्त क्या करेंगे आप? ब्रह्मचर्य व्रत पालन करना हो तो स्ट्रोंग रहना होगा। मन तो ऐसा भी बोलेगा और आपसे भी बुलवाएगा। इसी कारण से मैं कहता था न कि कल सवेरे आप भाग भी जाएँगे। उसका क्या कारण? मन के कहे अनुसार चलनेवाले का भरोसा ही क्या?
प्रश्नकर्ता : अब हम यहाँ से कहीं भी भाग नहीं जाएँगे ।
दादाश्री : मगर मन के कहने के अनुसार चलनेवाला मनुष्य यहाँ से नहीं जाएगा, यह किस गारन्टी के आधार पर ? अरे! मैं तुझे दो दिन हिलाऊँ, अरे, ज़रा-सा हिलाऊँ न, तो परसों ही तू चला जाए! यह तो तुझे पता ही नहीं । तुम्हारे मन का क्या ठिकाना ?
अभी तो तुम्हारा मन तुम्हें 'शादी करने योग्य नहीं है, शादी करने में बहुत दु:ख है' (ऐसा विचार करके) सहाय करता है। यह सिद्धांत दिखलानेवाला तुम्हारा मन पहला है। तुमने यह सिद्धांत ज्ञान से निश्चित नहीं किया है, यह तुम्हारे मन से निश्चित किया है, 'मन' ने तुम्हें सिद्धांत दिखलाया कि 'ऐसा करो।'
प्रश्नकर्ता: ज्ञान से निश्चय किया हो तो फिर उसका मन विरोध ही नहीं करे न?
दादाश्री : नहीं, नहीं करेगा। ज्ञान के आधार पर निश्चय किया हो तो उसका फाउन्डेशन (नींव) ही अलग तरह का होगा न! उसका सारा फाउन्डेशन आर. सी. सी. जैसा होगा। और यह तो रोड़ा का, भीतर क्रोंक्रीट किया हुआ, फिर दरार ही पड़ जाएगी न?