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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य २२ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य तो भी हम उसके वश नहीं हों! भीतर कैसे भी समझानेवाले मिलें फिर भी हम उनकी एक न सुनें! निश्चय किया, फिर वह फिरे नहीं, उसका नाम निश्चय। दादाश्री : नहीं, उसमें स्त्री का कोई दोष नहीं है। भगवान महावीर का लावण्य देखकर कई स्त्रियों को मोह उत्पन्न होता था, पर इससे भगवान को कुछ नहीं छूता था। अर्थात् ज्ञान क्या कहता है कि आपकी क्रियाएँ सहेतुक होनी चाहिए। आपको बाल ऐसे नहीं सँवारने चाहिए अथवा वस्त्र ऐसे नहीं पहनने चाहिए कि जिससे सामनेवाले को मोह उत्पन्न हो। हमारा भाव शुद्ध हो तो कुछ भी बिगड़े ऐसा नहीं है। भगवान केश लोचन किस लिए करते थे कि 'मेरे ऊपर किसी स्त्री का इन बालों के कारण भाव बिगड़े तो? इसलिए ये बाल ही निकाल दो ताकि भाव नहीं बिगड़ें।' क्योंकि भगवान तो बहुत स्वरूपवान थे, भगवान महावीर का रूप, सारे संसार में अनुपम था! प्रश्नकर्ता : स्त्री पर से मोह और राग चले जाएँ तो रुचि खतम होने लगती है? दादाश्री : रुचि की गाँठ तो अनंत जन्मों से पड़ी हुई है, कब फूटे यह नहीं कह सकते। इसलिए इस सत्संग में ही रहना। इस संग से बाहर निकले कि फिर से उस रुचि के आधार पर सब कुछ फिर से उग जाएगा। इसलिए इन ब्रह्मचारियों के संग में ही रहना होगा। अभी यह रुचि गई नहीं है, इसलिए अन्य कुसंगों में घुसते ही वह तुरंत शुरू हो जाएगा। क्योंकि कुसंग का स्वभाव ही ऐसा है। पर जिसकी रुचि उड़ गई है, उसे फिर कुसंग नहीं छूता। हमारी आज्ञा पालोगे तो आपका मोह चला जाएगा। मोह को आप खुद निकालने जाएँगे तो वह आपको निकाल बाहर करे ऐसा है। इसलिए उसे निकालने के बजाय उससे कहो कि 'बैठिए साहिब, हम आपकी पूजा करेंगे!' फिर उससे अलग होकर हमने उस पर उपयोग केन्द्रित किया और दादाजी की आज्ञा में आए कि मोह को तुरंत अपने आप जाना ही पड़ेगा। ३. दृढ़ निश्चय, पहुँचाए पार निश्चय किसका नाम कि कैसा भी (विषय का) लश्कर हमला करे निश्चय अर्थात् सभी विचारों को बंद करके एक ही विचार पर आ जाना कि हमें यहाँ से स्टेशन पर ही जाना है। स्टेशन से गाड़ी में ही बैठना है। हमें बस में नहीं जाना है। तब फिर ऐसे गाड़ी के ही सभी संयोग आ मिलते हैं, आपका निश्चय पक्का हो तो। निश्चय कच्चा हो तो गाड़ी के संयोग प्राप्त नहीं होते। प्रश्नकर्ता : निश्चय के सामने टाइमिंग बदल जाता है? दादाश्री : निश्चय के आगे सारे टाइमिंग बदल जाते हैं। ये सज्जन बता रहे थे कि 'हो सका तो मैं वहाँ आ जाऊँगा, पर शायद न आ पाऊँ तो आप निकल जाना।' इस पर हम समझ गए कि इसका निश्चय ढुलमुल है, इसलिए आगे एविडन्स ऐसे प्राप्त होंगे कि हमारी धारणा अनुसार नहीं होगा। प्रश्नकर्ता : हमारे निश्चय को डिगाता कौन है? दादाश्री : हमारा ही अहंकार। मोहवाला अहंकार है न! मूर्छित अहंकार! प्रश्नकर्ता : नियत चोर होनी वह निश्चय की कमी कहलाती है? दादाश्री : कमी नहीं कहलाती, वह निश्चय ही नहीं है। कमी तो निकल जाती है सारी, पर वह तो निश्चय ही नहीं है। प्रश्नकर्ता : नियत चोर न हो, तो विचार बिलकुल आना बंद हो जाता है? दादाश्री : नहीं, विचार को आने दो। विचार आएँ उसमें हमें क्या हर्ज है? विचार बंद नहीं हो जाते। नियत चोर नहीं होनी चाहिए। भीतर किसी भी लालच को वश नहीं हों ऐसे स्ट्रोंग ! विचार ही क्यों आएँ?
SR No.009580
Book TitleBrahamacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages55
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size47 KB
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