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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य
प्रश्नकर्ता : बिलकुल पसंद ही नहीं है, फिर भी आकर्षण हो जाता है। जिसका बहुत खेद रहा करता है।
दादाश्री : ऐसे खेद रहे तो विषय जाता है। केवल एक आत्मा ही चाहिए, तो फिर विषय कैसे खड़ा हो? अन्य कुछ चाहिए. तो विषय होगा न? तुम्हें विषय का पृथक्करण करना आता है?
प्रश्नकर्ता : आप बताइए।
दादाश्री : पृथक्करण अर्थात् क्या कि विषय आँखों को भाए ऐसे होते हैं? कान सुनें तो अच्छा लगता है? और जीभ से चाटे तो मीठा लगता है? किसी भी इन्द्रिय को पसंद नहीं है। इस नाक को तो सच में ही अच्छा लगता है न? अरे, बहुत सुगंध आती है न? इत्र लगाया होता है न? अतः ऐसे पृथक्करण करें तब पता चलता है। सारा नर्क ही वहाँ पड़ा है, पर ऐसा पृथक्करण नहीं होने से लोग उलझे रहते हैं। वहीं मोह होता है, यह भी अजूबा ही है न!
'एक विषय को जीतते, जीता सब संसार, नृपति जीतते जीतिए, दल, पुर व अधिकार।'
- श्रीमद् राजचंद्र केवल एक राजा को जीत ले तो दल, पुर (नगर) और अधिकार सब हमें मिल जाएँ।
प्रश्नकर्ता : आपके ज्ञान के पश्चात् हम इसी जन्म में विषय बीज से एकदम निग्रंथ हो सकते हैं?
दादाश्री : सब कुछ हो सकता है। अगले जन्म के लिए बीज नहीं पड़ता। ये पुराने बीज हों उन्हें आप धो डालें और नये बीज नहीं पड़ते।
प्रश्नकर्ता : इससे अगले अवतार में विषय संबंधी एक भी विचार नहीं आएगा?
दादाश्री : नहीं आएगा। थोड़ा-बहुत कच्चा रह गया हो तो पहले के थोड़े विचार आएँगे पर वे विचार बहुत छुएँगे नहीं। जहाँ हिसाब नहीं,
उसका जोखिम नहीं।
प्रश्नकर्ता : शीलवान किसे कहते हैं?
दादाश्री : जिसे विषय का विचार न आए। जिसे क्रोध-मान-मायालोभ नहीं हो, वे शीलवान कहलाते हैं।
___ कसौटी के कभी अवसर आएँ, तो उसके लिए दो-तीन उपवास कर लेना। जब (विषय के) कर्मों का जोर बहुत बढ़ जाए तब उपवास किया कि बंद हो जाता है। उपवास से मर नहीं जाते।
२. दृष्टि उखड़े, 'थ्री विज़न' से मैंने जो प्रयोग किया था, वही प्रयोग इस्तेमाल करना। हमें वह प्रयोग निरंतर रहता ही है। ज्ञान होने से पहले भी हमें जागृति रहती थी। किसी स्त्री ने ऐसे सुंदर कपड़े पहने हों, दो हजार की साड़ी पहनी हो तो भी देखते ही तुरंत जागृति आ जाती है, इससे नेकेड (नग्न) दिखता है। फिर दूसरी जागृति उत्पन्न हो तो बिना चमड़ी का दिखता है और तीसरी जागति में फिर पेट काट डालें तो भीतर आँतें नज़र आती हैं, आँतों में क्या परिवर्तन होता है वह दिखता है। खुन की नसें नज़र आती हैं अंदर में, संडास नज़र आती है, इस प्रकार सारी गंदगी दिखती है। फिर विषय होता ही नहीं न! इनमें आत्मा शुद्ध वस्तु है, वहाँ जाकर हमारी दृष्टि रुकती है, फिर मोह किस प्रकार होगा?
श्रीमद् राजचंद्र ने कहा है कि 'देखते ही होनेवाली भूल टले तो सर्व दुःखों का क्षय हो।' शास्त्रों में पढ़ते हैं कि स्त्री पर राग मत करना, लेकिन स्त्री को देखते ही भूल जाते है, उसे 'देखते ही होनेवाली भल' कहते हैं। 'देखते ही होनेवाली भल टले' का अर्थ क्या कि यह मिथ्या दृष्टि है, वह दृष्टि परिवर्तित हो और सम्यक् दृष्टि हो तो सारे दुःखों का क्षय होता है। फिर वह भूल नहीं होने देगी, दृष्टि खिंचती नहीं।
प्रश्नकर्ता : एक स्त्री को देखकर पुरुष को खराब भाव हो, तो उसमें स्त्री का दोष है क्या?