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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य
दादाश्री : मैं आपको सविस्तार समझा दूँ। फिर वह समझ ही काम करती है। आपको कुछ करना नहीं है। आप उलटे दखल करने जाएँ तो बिगड जाता है। जो ज्ञान, जो समझदारी क्रियाकारी हो वह सच्ची समझदारी है और वही सच्चा ज्ञान है।
इस दुनिया में किसी चीज़ की निंदा करने जैसा हो तो वह अब्रह्मचर्य है। अन्य दूसरी सारी चीज़ इतनी निंदा करने जैसी नहीं है।
प्रश्नकर्ता : पर मानसशास्त्री कहते हैं कि विषय बंद होगा ही नहीं, अंत तक रहेगा। इसलिए फिर वीर्य का ऊर्ध्वगमन होगा ही नहीं न?
दादाश्री : मैं क्या कहता हूँ कि विषय का अभिप्राय बदले तो फिर विषय रहता ही नहीं है। जब तक (विषय का) अभिप्राय बदलता नहीं तब तक वीर्य का ऊर्ध्वगमन होगा ही नहीं। हमारे यहाँ तो अब सीधा आत्मपक्ष में ही डाल देना है, उसका नाम ही ऊर्ध्वगमन है। विषय बंद करने से उसे आत्मा का सुख अनुभव में आता है और विषय बंद हुआ तो वीर्य का ऊर्ध्वगमन होगा ही। हमारी आज्ञा ही ऐसी है कि विषय बंद हो जाता है।
प्रश्नकर्ता : आज्ञा में क्या होता है? स्थूल बंद करने का?
दादाश्री : स्थूल को बंद करने के लिए हम कहते ही नहीं हैं। मनबुद्धि-चित्त और अहंकार ब्रह्मचर्य में रहें ऐसा होना चाहिए। और मन-बुद्धिचित्त और अहंकार, ब्रह्मचर्य के पक्ष में आ गए तो स्थल तो अपने आप आएगा ही। तेरे मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार को पलट। हमारी आज्ञा ऐसी है कि ये चारों ही पलट जाएँगे!
खंड : २ 'ब्याहना ही नहीं' वाले निश्चयी के लिए राह
१. विषय से, किस समझदारी से छूटा जाए? प्रश्नकर्ता : मेरी शादी करने की इच्छा नहीं है, परन्तु माता-पिता और अन्य सगे-संबंधी शादी के लिए जोर देते हैं, तो मुझे शादी करनी चाहिए कि नहीं?
दादाश्री : यदि आपकी शादी करने की इच्छा ही न हो और हमारा यह 'ज्ञान' आपने लिया है तो आप कर पाओगे। इस ज्ञान के प्रताप से सब कुछ हो सके ऐसा है। मैं आपको समझाऊँगा कि कैसे बरतना और यदि पार उतर गए तब तो अति उत्तम। आपका कल्याण हो जाएगा!
ब्रह्मचर्य व्रत लेने का विचार आए और यदि उसका निश्चय हो जाए तो उसके जैसी बड़ी वस्तु और क्या कहलाए? वह सभी शास्त्रों को समझ गया! जिसे निश्चय हुआ कि मुझे अब मुक्त ही होना है, वह सारे शास्त्रों को समझ गया। विषय का मोह ऐसा है कि निर्मोही को भी मोही बना दे। अरे, साधु-आचार्यों को भी ठंडा कर दे!
प्रश्नकर्ता : ब्रह्मचर्य का निश्चय किया है, उसे दृढ़ करने के लिए क्या करना चाहिए?
दादाश्री : बार-बार निश्चय दोहराना है और 'हे दादा भगवान ! मैं निश्चय दृढ़ करता हूँ, मुझे निश्चय दृढ़ करने की शक्ति दीजिए।' ऐसा बोलने से शक्ति बढ़ेगी।
प्रश्नकर्ता : विषय के विचार आएँ तो भी देखते रहना है? दादाश्री : देखते ही रहना। तब क्या उसका संग्रह करना? प्रश्नकर्ता : उड़ा नहीं देना चाहिए? दादाश्री : देखते ही रहना, देखने के पश्चात् है तो हम चंद्रेश से
प्रश्नकर्ता : वह वचनबल ज्ञानी को कैसे प्राप्त हुआ होता है?
दादाश्री : खुद निर्विषयी हों तभी वचनबल प्राप्त होता है, वर्ना विषय का विरेचन करवाए ऐसा वचनबल होता ही नहीं न! मन-वचनकाया से पूर्णतया निर्विषयी हों तब उनके शब्द से विषय का विरेचन होता