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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य
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मन को रोकना नहीं है। मन के कारणों को नियंत्रित करना है। मन तो खुद एक परिणाम है। वह परिणाम दिखाए बगैर रहेगा नहीं। परीक्षा का वह परिणाम है। परिणाम नहीं बदलता, परीक्षा बदलनी है। वह परिणाम जिस कारण से आता है, उन कारणों को बंद करना है। वह किस प्रकार पकड़ में आए ? मन किससे पैदा हुआ है? तब कहे कि विषय में चिपका हुआ है। 'कहाँ चिपका है?' यह खोज निकालना चाहिए। फिर वहाँ काटना है।
प्रश्नकर्ता: वासना छोड़ने का सबसे आसान उपाय क्या है?
दादाश्री : 'मेरे पास आओ' वही उपाय और क्या उपाय? वासना आप खुद छोड़ेंगे तो दूसरी घुस जाएगी। क्योंकि अकेला अवकाश रहता ही नहीं। आप वासना छोड़ेंगे कि अवकाश होगा और वहाँ फिर दूसरी वासना घुस जाएगी।
प्रश्नकर्ता : ये क्रोध - मान-माया-लोभ आपने कहा न, तो विषय किसमें आता है ? 'काम' किसमें आता है?
दादाश्री : विषय अलग और ये कषायें अलग है। विषयों की यदि हम हद पार कर दें, हद से अधिक माँगे, वह लोभ है।
३. माहात्म्य, ब्रह्मचर्य का
प्रश्नकर्ता: जो बाल ब्रह्मचारी हों वह उत्तम कहलाता है या शादी के बाद ब्रह्मचर्य पालें वह उत्तम कहलाता है?
दादाश्री : बाल ब्रह्मचारी की तो बात ही अलग होती है न! पर आज के बालब्रह्मचारी कैसे है? यह जमाना खराब है। उसका आज तक जो जीवन बीता है उस जीवन के बारे में पढ़ो, तो पढ़ते ही आपका सिर दर्द करने लगेगा।
यदि आपको ब्रह्मचर्य पालन करना है तो आपको उपाय बतलाऊँ । वह उपाय आपको करना होगा, वर्ना ब्रह्मचर्य पालन करना चाहिए वह अनिवार्य वस्तु नहीं है। वह तो जिसे भीतर कर्म का उदय हो तो होता
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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य व्रत धारण करना वह तो उसका पूर्वकर्म का उदय होगा तो होगा। पहले भावना की होगी तो सँभलेगा या तो यदि आप सँभालने का निश्चय करें तो सँभलेगा। हम क्या कहते हैं कि आपका निश्चय चाहिए और हमारा वचनबल साथ में है, तो यह रह पाए ऐसा है।
प्रश्नकर्ता: देह के साथ जो कर्म चार्ज होकर आए हैं उनमें तो परिवर्तन नहीं होता न?
दादाश्री : नहीं, कुछ परिवर्तन नहीं होता। फिर भी विषय ऐसी वस्तु है न कि अकेले ज्ञानी पुरुष की आज्ञा से ही परिवर्तन होता है। फिर भी यह व्रत सभी को नहीं दिया जाता। हमने कुछ लोगों को ही यह दिया है। ज्ञानी की आज्ञा से सब कुछ बदल जाता है। सामनेवाले को केवल निश्चय ही करना है कि चाहे कुछ भी हो पर मुझे यह चाहिए ही नहीं। तब फिर हम उसे आज्ञा देते हैं और हमारा वचनबल काम करता है। इसलिए फिर उसका चित्त अन्यत्र नहीं जाता।
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यदि कोई ब्रह्मचर्य पाले और यदि अंत तक पार उतर जाए तो ब्रह्मचर्य तो बहुत बड़ी वस्तु है। यह 'दादाई ज्ञान', 'अक्रम विज्ञान' और साथ में ब्रह्मचर्य हो तो उसे और क्या चाहिए? एक तो यह अक्रम विज्ञान ही ऐसा है कि यदि उसने यह अनुभव, विशेष परिणाम पा लिया, तो वह राजाओं का राजा है। सारी दुनिया के राजाओं को भी वहाँ नमस्कार करने होंगे ! प्रश्नकर्ता : अभी तो पड़ोसी भी नमस्कार नहीं करता ! प्रश्नकर्ता: समझने पर भी संसार के विषयों में मन आकर्षित होता है। समझते हैं कि सच-झूठ क्या है, फिर भी विषयों से छूट नहीं पाते। तो उसका क्या उपाय?
दादाश्री : जो समझ क्रियाकारी हो वही सच्ची समझ है। बाकी सभी बाँझ समझ कहलाती है।
प्रश्नकर्ता: वह समझ क्रियाकारी हो, इसके लिए क्या प्रयत्न करने
चाहिए?