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आत्मबोध
आत्मबोध
मेरा है, ये तेरा है, यही चल रहा है।
दादाश्री : वो ठीक बात है लेकिन आप जैसा बोलते हैं, वो तो व्यवहार के लिए बोलने का है, सचमुच नहीं बोलने का है। तो आप तो सचमुच बोलते हैं। इनका नाम पूछेगे तो बोलेंगे कि 'रवीन्द्र'. लेकिन वो अंदर खुद समझता है कि, 'व्यवहार चलाने के लिए मेरा नाम है, मैं खुद ये नहीं हूँ।' वो ड्रामेटिक रहता है और आप तो सच में ही करते
दादाश्री : क्षर ज्ञान तो ये डाक्टर के पास है, वकील के पास है, वो तो सबके पास है। तो अक्षर ज्ञान इनसे बड़ा है और इनसे भी बड़ा अन्-अक्षर ज्ञान है। हम जो ज्ञान देते है, वो अन्-अक्षर ज्ञान है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन अन्-अक्षर तो नेगेटिव हुआ न?
दादाश्री : नहीं, अन्-अक्षर याने जहाँ शब्द भी नहीं है। नि:शब्द। अक्षर याने शब्द, अक्षर जितना है वो शब्द से परमानेन्ट है और वहाँ तो शब्द से परमानेन्ट नहीं चलेगा। ये 'शक्कर मीठा है' वो शब्द से परमानेन्ट है, लेकिन वो बोलने से अपने को मीठा स्वाद आयेगा? अक्षर ऐसा है। और 'ज्ञानी पुरुष' मीठा याने क्या, वह टेस्ट करा देते हैं।
इधर आध्यात्मिक विज्ञान है। आध्यात्मिक विज्ञान पुस्तक में नहीं मिलता है। वो पुस्तक में होता ही नहीं। पुस्तक में तो आध्यात्मिक ज्ञान होता है।
जैसा ड्रामा में भर्तृहरि राजा है, तो वो, 'हम भर्तृहरि राजा है, ये मेरा राज है, ये मेरी रानी है।' ऐसा बात करेगा और फिर 'भिक्षा दे मैया पिंगला' ऐसा भी बोलता है, रोता है। तो सब लोगों को दु:ख होता है, कि ओहोहो, ये कितना दु:खी हो गया। उसको खानगी में (व्यक्तिगत रुप से) पूछेगे तो वो बोलेगा कि, 'नहीं भई, हमको कुछ दुःख नहीं है, ये तो हमको भर्तृहरि का अभिनय करना पड़ता है। अभिनय नहीं करेगा तो पगार में से पैसा काट लेगा। मैं भर्तृहरि नहीं, मैं तो लक्ष्मीचंद हूँ।' तो क्या वो 'मैं लक्ष्मीचंद हूँ' ऐसा कभी भूल जाता है?
प्रश्नकर्ता : ज्ञान और विज्ञान में फर्क क्या है?
दादाश्री : ये जो आम है, वो कैसा लगता है? मीठा लगता है न? तो 'आम मीठा है।' ऐसा ज्ञान पुस्तक से होता है। लेकिन मीठा क्या है? वो पुस्तक में नहीं होता है, वो विज्ञान है। 'मीठा है' वो क्या चीज है, ये मीठा कैसा है, वो पुस्तक में नहीं होता, वो अध्यात्म विज्ञान बोला जाता है।
ड्रामा कभी सच हो सकता है ? दुनिया में इतनी ही बाबत है - वांधा (विरोध), वचका (दखल) और अज्ञान मान्यता।
'मैं रवीन्द्र हूँ, मैं इनका फादर हूँ' ये सब बोलते हैं न, वो अज्ञान मान्यता है, रोंग बिलीफ है। राइट बिलीफ होनी चाहिये।
प्रश्नकर्ता : लेकिन अभी तो सब अज्ञान में ही घूम रहे हैं, ये
प्रश्नकर्ता : नहीं भूलेगा।
दादाश्री : और आप खुद कौन हैं, वो भूल गये हैं। पहले मैं खुद कौन हूँ, वो जानना चाहिए, फिर ड्रामेटिक रहना चाहिए।
व्यवहार का निरीक्षक-परीक्षक कौन ? दादाश्री : आप कौन हैं?
प्रश्नकर्ता : आत्मा।
दादाश्री : हाँ, बराबर है। अभी कोई आदमी आप को गाली दे तो आपको इफेक्ट होती है?
प्रश्नकर्ता : व्यवहार में होती है।