SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मबोध आत्मबोध विशेष परिणाम का सिद्धान्त ! प्रश्नकर्ता : सिद्धगति की प्राप्ति 'शुद्धात्मा' होने के बाद ही होती दादाश्री : संयोग से ही विशेष परिणाम उत्पन्न होता है, जैसे आरस (मार्बल) के पत्थर सुबह में ठंडे रहते हैं और दोपहर में क्या हो जाते है न? दादाश्री : 'शुद्धात्मा' हुआ याने पूर्णत्व हो जायेगा और पूर्णत्व हो गया कि सिद्धगति होती है। शुद्धात्मा हुए बिना कुछ नहीं होता। प्रश्नकर्ता : तो क्रोध-मान-माया-लोभ जो बाधक हैं, वे गये कि आदमी शुद्धात्मा हुआ? दादाश्री: वो क्रोध-मान-माया-लोभ अज्ञानता से ही है। क्रोधमान-माया-लोभ ही सब को दुःख देता है, नहीं तो आत्मा को दुःख कैसा? अज्ञानता से ही दु:ख होता है। 'मैं कौन हूँ', उसकी अज्ञानता है। अज्ञानता क्यों घुस गई? क्या आत्मा अज्ञानी है? नहीं, आत्मा अज्ञानी नहीं है!! आत्मा खुद ही ज्ञान है। तो ज्ञान है, वो अज्ञान हो जाता है? नहीं, ज्ञान है, वो अज्ञान नहीं होता है। ये तो विशेष परिणाम है !! छ: मूल अविनाशी तत्त्वों में जड़ और चेतन जब सामीप्य में आते हैं, तब विशेष परिणाम उत्पन्न होता है। बाकी के चार तत्वों को एक दूसरे के संयोग में कोई असर नहीं होती। चेतन और जड का संयोग हुआ कि विशेष परिणाम उत्पन्न होता है। इसमें जड़ का और चेतन का, अपना गुणधर्म तो रहता ही है, लेकिन विशेष गुण एकस्ट्रा उत्पन्न हो जाता है। प्रकृति उत्पन्न हो जाती है। इसमें किसी को भी कुछ करने की जरूरत नहीं। विशेष परिणाम उत्पन्न होने से जगत में ये अवस्थायें उत्पन्न होती हैं। अवस्थायें विनाशी हैं और निरंतर परिवर्तनशील हैं। इसमें आत्मा को कुछ करना नहीं पड़ता। उसका विशेष भाव हुआ कि पुद्गल परमाणु खिंचा चला आता है। फिर वो ओटोमेटिक मूर्त हो जाते है और अपना कार्य करते रहते हैं। प्रश्नकर्ता : यह विशेष परिणाम की बात कुछ उदाहरण देकर समझाईए। प्रश्नकर्ता : सूर्य की गरमी से गरम हो जाते हैं। दादाश्री : हाँ। तो गरम होना, वो पत्थर का स्वभाव नहीं है और सूर्य का भी ऐसा स्वभाव नहीं है। दोनों के संयोग से विशेष परिणाम होता है। सूर्य का संयोग होने से पत्थर में गरमी उत्पन्न होती है। उसको व्यतिरेक गुण बोला जाता है। वो खुद का गुण नहीं है, दोनों का साथ हो जाने से तीसरा गुण उत्पन्न होता है। ऐसा ये क्रोध-मान-माया-लोभ है, वो अपना खुद का गुण नहीं है याने चेतन का गुण नहीं है और जड़ का भी गण नहीं है। आपको क्या लगता है? ये क्रोध-मान-माया-लोभ चेतन का गुण है या जड़ का? किसका गुण है? प्रश्नकर्ता : जड़ का गुण है। दादाश्री : तो फिर यह टेपरिकार्डर क्रोध क्यों नहीं करता? ये टेबल को जला दो, तोड़ दो, फिर भी क्रोध क्यों नहीं करता है? प्रश्नकर्ता : तो वो चेतन का गुण हुआ? दादाश्री : क्रोध-मान-माया-लोभ है, वो चेतन का गुण हो तो कोई मोक्ष में जाता ही नहीं। वो चेतन का भी गुण नहीं है और जड़ का भी गुण नहीं है। चेतन और जड़ की मिश्रण स्थिति है. मिश्रस्थिति। चेतन तो शुद्ध ही है, वो जड़ भी शुद्ध है। दोनों का मिश्रण होता है. तो मिश्रचेतन बोला जाता है। वो दरअसल चेतन नहीं है। तो क्रोध-मान-माया-लोभ वो व्यतिरेक गुण है याने आत्मा की हाजरी से उत्पन्न होनेवाला गुण है और मिश्रचेतन का गुण है। वो जड़ का गुण नहीं है और शुद्ध चेतन का भी गुण नहीं है। सब लोग क्या कहते हैं कि क्रोध-मान-माया-लोभ का क्षय करो। लेकिन क्या क्षय कर सकते हैं आप? आप जानते ही नहीं कि कहाँ से
SR No.009577
Book TitleAtmabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size91 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy