________________
(१४) सच्ची समझ, धर्म की
१२१
ही नहीं हो ऐसा मानकर करता रहता है! हाँ, पाँच सौ, हज़ार वर्षों तक चिता में नहीं जाना हो, तब तो हम समझें कि 'हाय हाय' भले ही करे। अभी तो बेचारे को हज़ार वर्ष निकालने हैं!' यह तो ठिकाना नहीं कि कब चिता में जाना है, कब 'फेल' हो जाए वह कह नहीं सकते! यों स्कूल में सभी पास हुए हैं, पर इसमें फेल हो जाते हैं !
-
सच्चे धर्म की समझ
रोज़-रोज़ धर्म करें, पर पूरे दिन हाय-हाय, हाय-हाय करते रहते हैं! भगवान ने कहा है कि धर्म वह है कि जो धर्म होकर परिणमित हो । इतना ही यदि सारे भक्त समझ गए होते, तो तुरन्त सोच में पड़ जाते कि अरे धर्म होकर परिणमित तो होता नहीं सौ मन साबुन डालें, पर कपड़ा वैसे का वैसा रहे। तब भला वह साबुन गलत है या डालनेवाला गलत या कपड़ा गलत ? उतने का उतना आर्तध्यान और रौद्रध्यान होता रहे, तो नहीं समझ जाएँ कि कुछ भूल रह जाती है।
आर्तध्यान और रौद्रध्यान समझ में आता है न आपको ? प्रश्नकर्ता: नहीं, नहीं समझ में आता, ज़रा समझाइए । दादाश्री : रात को ग्यारह बजे पाँच लोग आपके घर मेहमान बनकर आए, तब अंदर कुछ असर हो जाता है क्या?
प्रश्नकर्ता: वह तो आनेवाले के ऊपर आधारित है। मनचाहे मेहमान हों तो कुछ भी नहीं होता और अनचाहे मेहमान आएँ तो मन में होता है कि ये अभी कहाँ से आए?
दादाश्री : मनचाहे मेहमानों को देखकर अंदर आनंद हो, वह भी आर्तध्यान है और अनचाहे मेहमानों को देखकर अंदर ये कहाँ से आए' ऐसा हो, वह भी आर्तध्यान कहलाता है। मेहमान आएँ तब अंदर उकताहट होती है, परन्तु मुँह पर तो कहता है कि, 'आइए- आइए।' क्योंकि इज्जत जाती है न! यह इज्जतदार अगला जन्म बिगाड़कर इज्जत रखने गया !! इससे तो मुँह पर कह दे न कि कहाँ से आए? जिससे आनेवाला और
१२२
आप्तवाणी-४
बीता हुआ दोनों नहीं बिगड़ें! यह तो मुँह पर 'आइए- आइए' करता है और फिर धीरे से पत्नी से पूछता है कि, 'आपको क्या कह रहे थे कि कब जाएँगे? सामान तो बड़े-बड़े लाए हैं!' तब पत्नी कहे कि, 'मैं क्या जानूँ ? दोस्त तो आपके हैं। मुझे क्या लेना-देना?' यहाँ पर पत्नी नहीं सँभालती पति को कि, 'अरे, अब अभी तो आए हैं और 'कब जाएँगे, कब जाएँगे' क्या कर रहे हों ? थोड़े दिन, दस दिन पंद्रह दिन रहने तो दो।' अब यह दुःख कब मिटे? धर्म किस तरह परिणाम दे? धर्म तो, ग्यारह लोग आएँ, तो भी धीरे से कहेगा, 'आइए, पधारिए।' दूसरा कुछ बखेड़ा नहीं । मन भी नहीं बिगाड़े। मन बिगड़ा हुआ हो तो मेहमान चेहरे पर से ही पहचान जाते हैं। यह आर्तध्यान कहलाता है। आर्तध्यान का फल तिर्यंचगति है ।
रौद्रध्यान अर्थात् क्या? अपमान करें तो पहले लाल-पीला हो जाता है। 'चंदूलाल में अक्कल नहीं है', ऐसा किसीने कहा कि तुरन्त ही 'अक्कल का बोरा' खड़ा हो जाता है ! वह रौद्रध्यान कहलाता है। भीतर गुस्सा हो जाए, वह रौद्रध्यान कहलाता है। रौद्रध्यान का फल नर्कगति है। बोलो, भगवान ने न्याय से कहा है या अन्याय से? भगवान अन्याय से नहीं बोले होंगे न? वीतराग भगवान कभी भी अन्याय करते ही नहीं न!
अब यह अपमान या नुकसान सहन क्यों नहीं होता? तब कहें कि, 'धर्म जाना नहीं, धर्म सुना नहीं, धर्म पर श्रद्धा नहीं।' धर्म सुना ही नहीं है अभी तक। धर्म सुना हो और श्रद्धा बैठी हो तो धर्म उस घड़ी मदद करता है। यह तो धर्म खड़ा ही नहीं रहता न? आपको अकेले को ऐसा है, वैसा नहीं है। सच्चा धर्म तो वह कहलाता है कि सर्व दुःखों से मुक्त करे । दुःख बढ़ाए उसे धर्म कहा ही कैसे जाए ?
मोक्ष का मार्ग तो.....
-
मोक्ष का मार्ग एक ही है, दो मार्ग मोक्ष के नहीं हैं। जब देखो तब मोक्ष का एक ही मार्ग होता है। ज्ञान दर्शन- चारित्र और तप ये चार स्तंभ मोक्ष के हैं। उन्हें जब भी देखो, तब वैसे के वैसे ही होते हैं। फिर रास्ते उसके लिए अलग-अलग होते हैं। कोई क्रमिक मार्ग होता है, जिसमें जप