________________
उपोद्घात
[१] जागृति 'खुद' आत्मा है, पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशमान करने की क्षमता रखता है, 'खुद' अनंत शक्ति का धनी है। फिर भी ये सारी लाचारी, वेदना, दुःख, नि:सहायता अनुभव करता है। यह कितना बड़ा आश्चर्य है ! इसका कारण क्या है? खुद के स्वरूप का, खुद की शक्ति का, खुद की सत्ता का ही 'खुद' को भान नहीं है। एक बार 'खुद' जागृत हो जाए तो पूरे ब्रह्मांड के स्वामी जैसा सुख बरते।
पूरा जगत् भावनिद्रा में फंसा हुआ है। इस लोक और परलोक के हिताहित की अभानता, क्रोध-मान-माया-लोभ. मतभेद. चिंताएँ, ये सभी भावनिद्रा के कारण टिके हुए हैं। पौद्गलिक जागृति में पूरा जगत् खोया हुआ है, जब कि ज्ञानी तो आत्मिक जागृति में, केवल आत्मा में ही रमणता करते हैं। संपूर्ण जागृति, वह केवलज्ञान है, जागृति सौ प्रतिशत तक पहुँचे तब केवलज्ञान प्रकट होता है।
जागृति ही मोक्ष की जननी है। संसार-जागृति की वृद्धि होने से संसार असार लगता है, जो अंत में उत्कृष्ट वैराग्य में परिणमित होता है। और जागृति की पराकाष्ठा पर पहुँचा हुआ इन्द्रिय ज्ञान कभी भी मतभेद में नहीं पड़ता, 'एवरीव्हेर एडजेस्टेबल' होता है। बाकी, अजागृति में ही क्रोध-मानमाया-लोभ का उपार्जन होता है। कषाय हुए उसका पता भी नहीं चले - वह महान अजागृत, उसका पता चले - वह कम अजागृत और जो ऐसा होने के बाद प्रतिक्रमण करके धो डाले - वह जागृत कहलाता है। और सच्चा जागृत तो कषाय होने से पहले ही मोड़ ले- वह। कषायों को खुराक दे दे, वह भयंकर अजागृत कहलाता है।
निज के दोषदर्शन जागृति की निशानी है। अन्य के दोषदर्शन जागृति पर भयंकर आवरण लानेवाले होते हैं। 'ज्ञानी' जागृति के 'टॉप' (शिखर) पर बिराजे हुए होते हैं। खुद के सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम भूलों के, जो कि जगत् में किसीको बाधक नहीं होते, उन्हें ज्ञान में देखते हों और धो डालते
हों, खुद निर्दोष होकर पूरे जगत् को निर्दोष देखें, वह जागृति की अंतिम दशा कहलाती है। सर्वोच्च जागृति कौन-सी, कि किसीके साथ बात करें, तब उस लक्ष्य सहित करें कि सामनेवाला व्यक्ति वास्तव में तो शुद्धात्मा ही है।
क्रमिकमार्ग में भावजागृति को सर्वोत्तम माना है, जब कि अक्रम में तो भावाभाव से परे ऐसी स्वभावजागृति, 'ज्ञानी-कृपा' से सहज ही उत्पन्न हो जाती है। ज्ञाता-ज्ञेय रूप में संपूर्ण ज्ञान निरंतर हाज़िर रहे, वह संपूर्ण जागृति कहलाती है। ज्ञानी पुरुष' की आज्ञा में निरंतर रहा जाए, वह ऊँची जागृति कहलाती है। जीव-मात्र के भीतर शद्धात्मा दर्शन का उपयोग रहे, वह भी ऊँची जागृति मानी जाती है।
प्रथम व्यवहार जागृति जगती है। उसके बाद व्यवहार में सोए और अध्यात्म में जागृति जगती है। व्यवहार जागृति में आया कब कहलाता है कि कहीं भी टकराव में नहीं आए, मतभेद नहीं हो। व्यवहार जागति में कषाय खूब होते हैं, जब कि निश्चय जागृति में कषाय निर्मल हो गए होते हैं! अंत:करण की प्रत्येक क्रिया में जागत, वह सच्ची जागति! जागति की शुरूआत में खुद से कोई कभी भी क्लेशित नहीं होता, उसके बाद दूसरों से खुद कभी भी क्लेशित नहीं होता और अंतिम जागृति में तो सहज समाधि रहती है।
कुंडलिनी जागृति या मेडिटेशन, वे जागृति को बढ़ानेवाले नहीं हैं, परन्तु अहंकार को बढ़ानेवाले हैं। मेडिटेशन एक प्रकार की मादकता ही है। जलन में जागृति विकसित होना संभव है, जब कि मेडिटेशन की मादकता से जागृति पर राख फैल जाती है!
खुद के स्वरूप की जागृति में आए, तब से लेकर ठेठ केवलज्ञान तक की जागृति में आ चुके जागृत पुरुषों की भजना से उस दशा तक की जागृति प्राप्त हो ऐसा है! संपूर्ण जागृत, आत्यंतिक कल्याण के परम निमित्त ऐसे वीतराग तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी जो वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र में विद्यमान हैं, उनके साथ ज्ञानी कृपा से तार जोड़कर, उनकी निरंतर