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________________ १०० आप्तवाणी-४ क़ाबू नहीं है। किसलिए क़ाबू नहीं है? तब कहें कि, 'उसे खुद को रोंग बिलीफ़ बैठी है।' 'मैं चंदूलाल हूँ' वही सबसे बड़ी 'रोंग बिलीफ़' है। प्रश्नकर्ता : व्यवहारिक रूप से ऐसा मानना पड़ता है। (११) आत्मा और अहंकार सनातन चेतन प्रश्नकर्ता : चेतन कहाँ से आया? उसकी उत्पत्ति कहाँ से हुई? दादाश्री : उसकी उत्पत्ति नहीं है और व्यय भी नहीं है। ये तो जीव की अवस्थाएँ हैं। अवस्थाएँ बदलती हैं, वस्तु वैसी की वैसी रहती है। कुदरत अर्थात्... प्रश्नकर्ता : कुदरत अर्थात् क्या? दादाश्री : कुदरत अर्थात् 'साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स' दादाश्री : व्यवहारिक रूप से मानो तो हर्ज नहीं है, पर आपको कोई गाली दे तो उसे आप स्वीकार करते हों या नहीं? उसका आप पर असर नहीं होता है न? प्रश्नकर्ता : होता है। दादाश्री: तो आप व्यवहारिक रूप से 'चंदूलाल नहीं हो', वास्तविक रूप से ही 'चंदूलाल' हो, वैसी 'रोंग बिलीफ़' बैठी है। लोगों ने कहा, 'चंदूलाल', इसलिए आपने भी वैसा मान लिया। फिर 'इस स्त्री का पति हूँ, इस बच्चे का बाप हूँ, मैं ऐसा हूँ, मैं कलेक्टर हूँ, फलाना हूँ।' ऐसी कितनी 'रोंग बिलीफ़' हैं? प्रश्नकर्ता : बहुत सारी। दादाश्री : ये रोंग बिलीफ़ बैठी हैं, इसलिए ही देह का जीव पर कंट्रोल है। यदि रोंग बिलीफें निकल जाएँ तो देह का जीव पर बिल्कुल कंट्रोल नहीं रहता। आत्मा खुद अनंत शक्तिवाला है, पर इन रोंग बिलीफ़ों के कारण फँस गया है। वे रोंग बिलीफें किससे जाएँगी? 'ज्ञानी पुरुष' राइट बिलीफ़ दें, जिसे अपने शास्त्र सम्यक् दर्शन कहते हैं, वह सम्यक् दर्शन मिल जाए तब जाएँगी। नहीं तो 'मैं चंदूलाल हूँ' मानने से कभी भी दिन नहीं बदलेंगे। वास्तव में आप 'खुद' चंदलाल नहीं हो। बाय 'रिलेटिव' व्यू पोइन्ट से आप चंदूलाल हो, बाय 'रियल' व्यू पोइन्ट से आप क्या हो? वह पता लगाना चाहिए न? नहीं लगाना चाहिए? अर्थात् अभी 'आपके' ऊपर देह का ही 'कंट्रोल' है। सिर्फ देह का ही नहीं, मन का भी कंट्रोल' है! मन कम्पलीट फिज़िकल है। इन सभी का 'कंट्रोल' अभी आपके ऊपर है। अरे, देह के जीव पर कंट्रोल की कहाँ बात करते हो। एक फँसी हुई हो, वह दर्द करे, उसका भी कंट्रोल जीव के ऊपर है! प्रश्नकर्ता : ये वैज्ञानिक संयोगिक प्रमाण इकट्ठे हों तो उनके पीछे कोई शक्ति तो है न? दादाश्री : वह जीवंत शक्ति नहीं है, वह जड़ शक्ति है। जड़ और चेतन की मिक्सचर शक्ति है। उसमें जड का विशेष भाव हो गया है। इसमें आत्मा तो अनादि काल से जैसा है वैसा, वैसे का वैसा ही रहा है। किसका किस पर क़ाबू? प्रश्नकर्ता : जीव शरीर पर काबू रखता है या शरीर जीव पर काबू रखता है? दादाश्री : वही प्रश्न है न! अभी जीव का इस शरीर पर बिल्कुल
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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