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आप्तवाणियों के हिन्दी अनुवाद के लिए
परम पूज्य दादाश्री की भावना
'ये आप्तवाणियाँ एक से आठ छप गई हैं। दूसरी चौदह तक तैयार होनेवाली हैं, चौदह भाग। ये आप्तवाणियाँ हिन्दी में छप जाएँ तो सारे हिन्दुस्तान में फैल जाएँगी।'
- दादाश्री परम पूज्य दादा भगवान (दादाश्री) के श्रीमुख से आज से पच्चीस साल पहले निकली इस भावना के फलित होने की यह शुरूआत है और आज आप्तवाणी-४ का हिन्दी अनुवाद आपके हाथों में है। भविष्य में और भी आप्तवाणीयों तथा ग्रंथों का हिन्दी अनुवाद उपलब्ध होगा, उसी भावना के साथ जय सच्चिदानंद।
संपादकीय विश्व निमित्त नैमित्तिक निरंतर प्रवर्तनशील ही है। मूल अविनाशी द्रव्यों के संयोग-संबंध का यह विशेष परिणाम है। विशेष परिणाम का विलय और स्व-स्वभाव का स्थितिकरण हर एक जीव की कामना है। निमित्त द्वारा ही छूट सकता है। और वह आत्यंतिक मुक्ति दिलवानेवाले एकमात्र निमित्त आत्मानुभवी प्रकट'ज्ञानी पुरुष' हैं। जिनके संयोग संबंध से मक्तदशा अनुभवगम्य निश्चित है, ऐसा वर्तमान काल में अनेकों का अनुभव है।
जो ज्ञान सामान्य रूप से ज्ञान कहा जाता है, वह ज्ञानी' की दृष्टि से बुद्धि का आविर्भाव है। यथार्थज्ञान, आत्मज्ञान पारंपरिक ज्ञान से लाखों मील दूर है। आत्मविज्ञान स्वरूप से है। जिसने आत्मविज्ञान जान लिया, वह जीवनमुक्त हुआ। ऐसे ये 'ज्ञानी' अनेकों को मिले और उन्हें जीवनमुक्त दशा मिली। हर एक को यह प्राप्त हो, यही अभिलाषा!
आत्मा निःशब्द है, अवाच्य है, फिर भी प्रकट परमात्मा को स्पर्श करके प्रकट हुए संज्ञासूचक शब्द हृदय बींधकर, अनंत आवरण भेदकर आत्मा को 'केवल' तक प्रकाशमान करते हैं। वैसी अनुपम वाणी को 'आप्तवाणी' में अंकित करके ज्ञानपिपासुओं तक पहुँचाने का अल्प प्रयास हआ है। आप्तवाणी ऐसे तो परोक्ष रूप में ही है, परन्तु वर्तमान में विद्यमान 'ज्ञानी पुरुष' की आभा अवश्य हृदयभेदी बनकर वाचकों के लिए सम्यक दर्शन के द्वार को खोलनेवाली बनेगी। उससे प्रकट होनेवाला दर्शन जीवन में धीरे-धीरे अंगुलिनिर्देश करते-करते अंतिम ध्येय, केवल आत्मानुभूति' के शिखर साध्य करके ही रहेगा।
आप्तवाणी श्रेणी-४ में, जगत् ने कभी जाना नहीं हो, कल्पना नहीं की हो वैसे गहन निराकरणवाले हल को सादी, सीधी, सरल, स्थानीय भाषा में परम पूज्य श्री दादा भगवान के श्रीमुख से प्रवाहित प्रत्यक्ष सरस्वती को संकलित किया गया है।
सामान्य रूप से जगत् जिसे जागृति कहता है, ज्ञानी तो उसे निद्रा कहते हैं ! जिसे दृष्टा मानते हैं, वही दृश्य है। मैं जागृत हूँ' वह भान जिसे बरतता है
पाठकों से... 'आप्तवाणी' में मुद्रित पाठ्यसामग्री मूलत: गुजराती 'आप्तवाणी' श्रेणी-४ का हिन्दी रुपांतर है। इस 'आप्तवाणी' में 'आत्मा' शब्द को संस्कृत और गुजराती भाषा की तरह पुल्लिंग में प्रयोग किया गया है। जहाँ-जहाँ 'चंदूलाल' नाम का प्रयोग किया गया है, वहाँ-वहाँ पाठक स्वयं का नाम समझकर पठन करें। 'आप्तवाणी' में अगर कोई बात आप समझ न पाएँ तो प्रत्यक्ष सत्संग में पधार कर समाधान प्राप्त करें।