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________________ (३) प्रारब्ध-पुरुषार्थ आप्तवाणी-४ नहीं और बनावटी लेकर जाएँ तो कौन पैसे देगा? पुरुषार्थ किसे कहते हो आप? ही प्रेरणा से होनेवाला है। प्रश्नकर्ता : प्रारब्ध अर्थात् क्या? दादाश्री : प्रारब्ध यानी पिछले जन्म में भावकर्म बाँधा हुआ होता है। अब वह भावकर्म जाए 'कम्प्यूटर के पास, यानी कि समष्टि में जाता है और समष्टि में फिर कुदरत उसे मिलती है, दूसरे सब कुदरती कारण भी मिल जाते हैं और यहाँ पर हमें रूपक के रूप में प्राप्त हो जाता है। व्यवस्थित' शक्ति हमें रूपक के रूप में देती है। फिर वह उठाए तो हमें उठना है और चलाए वैसे चलना है। खराब विचार भी उसके माध्यम से होते हैं। अच्छे विचार भी उसके माध्यम से होते हैं। यह बहुत सूक्ष्म बात है। प्रश्नकर्ता : अभी जो प्रारब्ध है, वह अपने पूर्वभव के भावों का फल है? दादाश्री : हाँ, वह पूर्वभव के भावों का फल है और अभी जो नये भाव उत्पन्न हो रहे हैं, वे अगले भव का कारण है। प्रश्नकर्ता : नये भाव उत्पन्न होते हैं, वे इसी भव में फल नहीं देंगे? प्रश्नकर्ता : धर्म और मोक्ष के लिए जो क्रियाएँ करें, वह पुरुषार्थ ! दादाश्री : वह पुरुषार्थ नहीं कहलाता। वह तो हितकारी किया कहा जाता है। और उसके अलावा जो-जो करें, वह सारा अहितकारी। यह तो हितकारी और अहितकारी हुआ, पर पुरुषार्थ किसे कहते हैं? हम जो करें, वह सफल हो जाए, वह पुरुषार्थ है। प्रश्नकर्ता : कोई कहे कि हम श्रम करें तो ही प्रारब्ध मिलेगा और कोई कहे कि प्रारब्ध हो तो ही श्रम करने का मौका मिलेगा। इसमें सच्चा क्या है? दादाश्री : इन आँखों से जो-जो दिखता है, कानों से जो-जो सुना जाता है, नाक में जो-जो सुगंध आती है, जीभ से जो-जो चखा जाता है. चमडी से जो-जो स्पर्श होता है, इन पाँच इन्द्रियों के ज्ञान से जो-जो अनुभव में आता है, वह सारा ही प्रारब्ध है। बोलो, अब ऐसी बात किस तरह समझें लोग? प्रश्नकर्ता : तो पुरुषार्थ की ज़रूरत तो है ही न? दादाश्री : नहीं, कुछ नहीं फलेगा। नये भाव हैं, वे कॉजेज़ हैं और कॉज़ेज़ का अगले जन्म में इफेक्ट होता है। इसलिए 'कॉज़ेज़ और इफेक्ट, इफेक्ट और कॉजेज' ऐसे चलता ही रहता है। अनंत जन्मों तक चलता ही रहता है ! जब तक 'ज्ञानी पुरुष' कॉज़ेज़ बंद नहीं कर दें, भावकर्म का कर्ता बंद नहीं हो जाए, तब तक यह चक्र चलता ही रहता है! सफल हो वह पुरुषार्थ प्रश्नकर्ता : दृढ़ पुरुषार्थ से प्रारब्ध को बदला जा सकता है? दादाश्री: सिर्फ पुरुषार्थ ही हो तो उसे बदला जा सकता है. पर पुरुषार्थ किसे कहें, वह जानना पड़ेगा न? जाने बिना क्या काम होगा? इन नोटों में एक सच्चा हो और दूसरा बनावटी हो, उसमें सच्चे को हम पहचानें दादाश्री : वास्तव में यह सब प्रारब्ध ही है। सच्चा पुरुषार्थ लोगों को समझ में नहीं आया, इसलिए भ्रांत पुरुषार्थ ढूंढ निकाला। भ्रांत पुरुषार्थ यानी 'इल्युजन' (भ्रांति) जैसा ! पुरुषार्थ ढूंढी जा सके, वैसी वस्तु नहीं है। पुरुषार्थ यदि ढूंढा जा सके न तो कल सारे ही लोग पुरुषार्थ करके मोक्ष में चले जाएँ! पर ये तो प्रारब्ध को ही बदलते रहते हैं, इसलिए इनकी मेहनत बेकार जाती है। जब कि मैं वह आसानी से बता देता हूँ, इसलिए उनकी मेहनत फलती है। पुरुषार्थ तो वह कहलाता है कि जो सफल हो, नहीं तो अनंत जन्मों तक सिरफोडी करे तो भी कुछ होगा नहीं। क्योंकि अज्ञानी की सिरफोड़ी! अज्ञानी से अज्ञान कभी भी जाता नहीं है।
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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