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(२) ध्यान
आत्मध्यान से ही समाधि खुद के स्वरूप का ध्यान, उसे ध्यान कहते हैं। दूसरे ध्यान जो करने जाते हैं, वे तो कौन-से गाँव ले जाएंगे उसका ठिकाना नहीं। वह तो एकाग्रता है। भगवान ने क्या कहा है कि, 'खिचड़ी का ध्यान रखना, पति का ध्यान रखना, नहीं तो फिर स्वरूप का ध्यान रख।' उसके सिवाय दूसरे ध्यान का क्या करना है? इस समाधि के लिए दूसरे क्या ध्यान करने हैं? आत्मा में आए तो निरंतर समाधि रहे, वैसा है!
ये ध्यान करने का कहते हैं, बैठकर श्वास ऊँचा-नीचा निकले उस पर ध्यान रखने को कहते हैं। तो जब शरीर पर जलन हो तब किया जा सकता है वह ध्यान? नहीं, ध्यान दिखता नहीं है, शब्द या क्रियाएँ दिखती
प्रारब्ध-पुरुषार्थ
पुरुषार्थ किसे कहते हैं? दादाश्री : आप क्या पुरुषार्थ करते हो? प्रश्नकर्ता : व्यवसाय का।
दादाश्री : वह तो पुरुषार्थ नहीं कहलाता। यदि खुद ही पुरुषार्थ करता हो तो फायदा ही लाए, पर यह तो नुकसान भी होता है न? वह पुरुषार्थ नहीं कहलाता। वह तो डोरी लपेटी हुई है वह खुल रही है, उसे पुरुषार्थ कैसे कहा जाए? आप पुरुषार्थ करते हो तब फिर नुकसान क्यों उठाते हो?
प्रश्नकर्ता : वह तो वैसा भी हो जाता है। कभी नुकसान भी होता
राग-द्वेष कम करने के लिए ध्यान किया जाता होगा? राग-द्वेष कम करने के लिए वीतराग विज्ञान जानना है।
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दादाश्री : नहीं। पुरुषार्थ करनेवाले को तो कभी भी नुकसान नहीं होता। यह पुरुषार्थ किया, ऐसा कौन बोलता है? पूरा 'वर्ल्ड' 'टॉप्स' (लटू) हैं। यह तो प्रकृति नचाती है वैसे नाचता है और कहता है 'मैं नाचा।' यह इतना-सा ही 'शॉक' (झटका) दें, तो हड्डी और सब बाहर निकल जाए। ये पुस्तकें पढ़ते हैं, शास्त्र पढ़ते हैं, वह भी पुरुषार्थ नहीं है। वह सब नैमित्तिक पुरुषार्थ है। सच्चे पुरुषार्थ को कोई समझा ही नहीं। 'मैं हूँ, मैं हूँ' करते हैं। अरे, संडास जाने की सत्ता नहीं और तू है लटू! यह तो श्वास नाक से लिया जाता है। श्वास लेने की भी खुद की शक्ति नहीं है। और एक उच्छवास निकालने की भी इस लटू में शक्ति नहीं है। यह तो कहेगा कि, 'मैं श्वास लेता हैं।' फिर रात को तू सो जाता है, तब श्वास कौन लेता है?