SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२) ध्यान आप्तवाणी-४ बन जाए तब ध्यान उत्पन्न होता है, उसमें अहंकार की ज़रूरत नहीं है न? है क्या? दादाश्री : शुक्लध्यान हो न तो क्रमिक मार्ग में कर्म नहीं होते, यह तो अक्रम मार्ग है इसलिए होते हैं। वह भी उसे खुद को कर्त्तापन से नहीं होते, निकाली भाव से होते है। ये तो कर्म खपाए बिना 'ज्ञान' प्राप्त हुआ है न! दादाश्री: उसमें अहंकार हो या नहीं हो। निरअहंकारी ध्याता हो न तो शुक्लध्यान उत्पन्न होता है और नहीं तो धर्मध्यान होता है अथवा आर्त या रौद्रध्यान होता है। प्रश्नकर्ता : यानी ध्यातापद अहंकारी होता है या निअहंकारी होता है, पर उसके परिणाम स्वरूप जो ध्यान उत्पन्न होता है, उसमें अहंकार नहीं है! दादाश्री : हाँ और शुक्लध्यान परिणाम आएगा तब मोक्ष होगा। प्रश्नकर्ता : ध्येय नक्की होता है, उसमें अहंकार का भाग है क्या? दादाश्री : ध्येय अहंकार ही नक्की करता है और मोक्ष का ध्येय और ध्याता निअहंकारी है, इसलिए शुक्लध्यान कहलाता है। प्रश्नकर्ता : धर्मध्यान के ध्येय में अहंकार की सूक्ष्म हाजिरी है? दादाश्री : है। अहंकार की हाज़िरी के बिना धर्मध्यान होता नहीं है न! ध्यान के परिणाम ध्यान का फल आता है। रौद्रध्यान का फल क्या है? तब कहे. भीतर राक्षसी वृत्तियाँ उत्पन्न होती है। प्रश्नकर्ता : वृत्ति के अनुसार कर्म होंगे न? दादाश्री : वह ठीक है, परन्तु पहले वृत्तियाँ कहाँ से होती हैं? ध्यान में से। आर्तध्यान और रौद्रध्यान, वे सभी जानवर में या नर्कगति में जाएँ, वैसे ध्यान हैं। फिर वहाँ पर उसे वे कर्म भोगने पड़ते हैं। प्रश्नकर्ता : 'शूट एट साइट' प्रतिक्रमण करते हैं, वह भी एक प्रकार का ध्यान का परिवर्तन ही है न? दादाश्री : हाँ। वह ध्यान का ही परिवर्तन है। प्रश्नकर्ता : 'शूट' किया यानी उसने पुद्गल को नष्ट किया। जो 'व्यवस्थित' में था उसमें दखल किया। तो दूसरा जन्म हो वह कैसा आएगा? दादाश्री : वह भी, बिल्कुल उसके जैसा ही आता है। जो लिंक है, वह वैसी की वैसी ही आती है। प्रश्नकर्ता : जो 'शूट' करके बदल डालता है, उसका इतना ही आयुष्य होता है या कम हो जाता है? दादाश्री : वह आयुष्य उसका यहाँ पर टूट जानेवाला था, इसलिए उस घड़ी टूटने के सारे 'सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स' मिल जाते हैं और आयुष्य पूरा हो जाता है, लटू झटपट घूम जाता है! प्रश्नकर्ता : आर्त, रौद्र और धर्मध्यान, वह पुद्गल परिणति कहलाती है क्या? दादाश्री : हाँ। वह पुद्गल परिणति कहलाती है और शुक्लध्यान वह स्वाभाविक परिणति है। प्रश्नकर्ता : यानी शुक्लध्यान, वह आत्मा का परिणाम कहलाता है क्या? दादाश्री : हाँ। प्रश्नकर्ता : शुक्लध्यान हो तो उसमें से जो कर्म होंगे वे अच्छे होंगे और धर्मध्यान में हो तो उससे थोड़ी निचली कक्षा के होंगे, वह बात ठीक
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy