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________________ (१) जागृति १६ आप्तवाणी-४ अकर्त्तापद, वहाँ संपूर्ण जागृति प्रश्नकर्ता : आत्मा को जान लिया, ऐसा कब कहलाएगा? कर्त्तापन छूट जाए तब? दादाश्री : 'मैं यह कर रहा हूँ' वह भान टूट जाए तब आत्मा जान लिया कहलाएगा। पूरा दिन भूलें दिखाता रहे, वह आत्मानुभव। 'मैं यह संसार चलाता हूँ।' वह भान नहीं है आपको? प्रश्नकर्ता : वह तो अपने आप चलता है! दादाश्री : वह तो जब अच्छा होता है, कोई तारीफ करे कि 'अरे, इन्होंने यह कितना अच्छा किया।' तब कहता है, 'मैंने किया था।' और गलत हो जाए तब कहेगा, 'यह मेरे कर्मों के उदय ने घेर लिया है।' पुरा जगत् ऐसे बोलता है। कर्त्तापद किसी काल में छूटता नहीं। सब छूटता है पर कर्त्तापद नहीं छूटता। कर्त्तापद का भान नहीं टूटे, तब तक अहंकारी कहलाता है और अहंकार अर्थात् भ्रांति। संपूर्ण भ्रांतिवाले को 'वहाँ' प्रवेश नहीं करने देते। कर्त्तापद का भान टूट जाना चाहिए या नहीं टूट जाना चाहिए? शुद्धात्मा बोलते ज़रूर हैं, पर उससे कुछ होता नहीं है। वह तो कर्त्तापद का भान टूटे और कर्ता कौन है, वह समझ में आए फिर काम आगे चलेगा। नहीं तो कैसे चलेगा? जब तक कर्त्तापद है, तब तक अध्यात्म की जागृति ही नहीं मानी जाती। कर्त्तापद छूटे बिना कोई बाप भी मोक्ष के दरवाज़े में पैठने दे, ऐसा नहीं है। 'मैं चंदूलाल हूँ' वह भ्रांति टूट जानी चाहिए और कर्त्तापद छूट जाना चाहिए। फिर नाटकीय कर्तापद रहता है। ड्रामेटिक कर्त्तापद यानी क्या? 'मैंने किया', ऐसे कहता है। जैसे भ्रर्तहरि राजा नाटक में बोलता है कि 'मैं राजा हूँ।' पर साथ ही 'मैं लक्ष्मीचंद हैं और घर जाकर खिचडी खानी है' वह भूल नहीं जाता। उसी तरह आप 'मैं शुद्धात्मा हूँ' वह भूल नहीं जाते। और 'यह मैंने किया ऐसा बोलते हों, वह 'डामेटिक' कहलाता है। कर्तापद का भान टूट जाना चाहिए। नहीं तो लोग शुद्धात्मा तो गाते ही रहते हैं न? शास्त्रों में तो स्पष्ट लिखा ही है, उस तरह से वह शास्त्र गाता रहता है, पर उससे उसके दिन बदलें ऐसा नहीं है। वैसा तो अनंत जन्मों से गाया है। उपयोग क्या? जागृति क्या? प्रश्नकर्ता : उपयोग और जागृति, वे दोनों समझाइए। दादाश्री : जागृति को किसी खास जगह पर केन्द्रित करना, वह उपयोग कहलाता है। जागृति किसी और में न चली जाए, जैसे कि संसार के फायदे-नुकसान में। एक ही जगह पर जागृति को केन्द्रित रखें, वह उपयोग! जहाँ जागृति बरते वह उपयोग, पर वह उपयोग शुभाशुभ का उपयोग कहलाता है। और शुद्ध उपयोग किसे कहा जाता है? कि जो उपयोग शुद्धात्मा के लिए ही सेट किया हो। 'ज्ञानी परुष' की आज्ञा में उपयोग रहा, 'रियल'-'रिलेटिव' देखते-देखते चले तो समझना कि अंतिम दशा आ गई। यह तो रास्ते में बगलें झाँकता है कि 'स्टील ट्रेडिंग कंपनी, फलानी कंपनी, देखो यह कैसा है!' इस तरह से दूसरे उपयोग में रहे, वह अशुभ उपयोग कहलाता है और उपयोग धर्म के लिए हो तो अच्छा। और शुद्ध उपयोग की तो बात ही अलग है न! अक्रमविज्ञान के कारण जागृति इस जगत् की जागृति, वह पौद्गलिक जागृति कहलाती है। इस संसार की जागृति जिसे हो, वह बहुत होशियार मनुष्य होता है। पूरा दिन जागृत और जागृत । उस जागृति में थोड़ा भी प्रमाद नहीं हो, फिर भी वह पौद्गलिक जागृति कहलाती है, उसका फल संसार आएगा। और अपनी 'यह' जागृति है उसका फल केवलज्ञान है। यहाँ की क्रियाओं को देखकर ललचाना नहीं। यहाँ की क्रियाएँ सभी यहीं की यहीं खर्च हो जानेवाली है। यहाँ की क्रियाएँ 'केश' फलवाली हैं। इसलिए हमने किसीसे त्याग नहीं करवाया न! और 'इस' विज्ञान ने खोज की है कि जगत् क्या है और क्या नहीं? किसके आधार पर यह सब चलता है?' अनंत जन्मों की हमारी वह खोज हम अनावृत कर रहे हैं। नहीं तो भला घंटेभर में मोक्ष होते हुए सुना है किसीका भी? करोड़ों जन्मों में जिसका ठिकाना नहीं पड़े, हम घंटेभर में ही आपको उस स्वरूप का भान
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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