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आप्तवाणी-४
(१) जागृति
भावनिद्रा टालो इसलिए 'ज्ञानी पुरुष' पूरे जगत् को, भावनिद्रा में है, ऐसा कहते हैं। यह काम-रोज़गार करते हैं, उसमें पैसे कमाने में पड़ गए, वह एक तरफ की निद्रा उड़ी और दूसरी सब ओर भावनिद्रा ! इसलिए धर्म की एक बूंद भी प्राप्त नहीं की। धर्म तो, रात को एक क्षण भी भावनिद्रा नहीं होने देता। सर्व प्रकार के भाव उत्पन्न हों, वैसा यह लोक है, उसमें भावनिद्रा नहीं आनी चाहिए। देहनिद्रा आएगी तो चलेगा।
प्रश्नकर्ता : भावनिद्रा ही आती है, दादा!
दादाश्री : ऐसा कैसे चलेगा? यह ट्रेन आए तब कुछ भावनिद्रा नहीं आती। यह ट्रेन तो एक जन्म का मरण लाती है, लेकिन भावनिद्रा तो अनंत जन्मों का मरण लाएगी। चित्र-विचित्र भाव उत्पन्न हों, वैसा यह जगत् है। उसमें तुझे तेरा समझ लेना है। यदि तुझे भावनिद्रा होगी तो जगत् तुझे चिपटेगा। जहाँ भावनिद्रा आए, वहाँ पर ही प्रतिक्रमण करना है।
सच्ची समाधि, जागृति सहित इस धर्म में बड़े-बड़े वाक्य लिखें, वह भी भावनिद्रा। किसीको देह की समाधि बरतती है, वे तो मन की परतों में पड़े रहते हैं। वर्ना समाधि तो वह है कि हर एक प्रकार की जागृति रहे, मन-वचन-काया से एकएक बाल की जागृति रहे।
प्रश्नकर्ता : मन की समाधि में आनंद कहाँ से आया?
दादाश्री : वह तो मानसिक समाधि है, वर्ना सच्ची समाधि तो संपूर्ण जागृति सहित होती है। संपूर्ण जागृत का आचार वर्ल्ड में उच्चतम होता है। जैसे-जैसे जागृति बढ़ती जाए वैसे-वैसे जगत् विस्मृत रहता है, उसके बावजूद भी वह जगत् में अच्छे से अच्छा काम कर बताता है, जितनी जागति उतना आपको सुख बरतेगा। जितनी जागृति उतनी आपको मुक्ति बरतेगी। जितनी जागृति उतना आपको मोक्ष बरतेगा। जागति, वही मोक्ष है। यह स्थल जागृत होने के लिए ही है। यहाँ हम जगाते ही हैं। जैसे प्रेमभग्न मनुष्य मन के किसी
कोने में उतर जाए वैसे ही ये समाधिवाले मन के किसी कोने में गहरे उतर जाते हैं और उसीमें आनंद उठाते हैं। सच्ची समाधि किसे कहा जाता है? कि बाहर संपूर्ण जागृत और अंदर भी संपूर्ण जागृत हो। एवरीव्हेर जागृत हो। उसे उठते, बैठते, खाते, पीते, हुए भी सच्ची समाधि नहीं जाती। आधि-व्याधिउपाधि (बाहर से आनेवाले दुःख) में भी निरंतर रहे वह सच्ची समाधि है। उसे सहज समाधि कहा जाता है, निर्विकल्प समाधि कहा जाता है।
___ 'मैं' कौन? जानने से, जागृति खुलती है प्रश्नकर्ता : सामान्य रूप से जागृति किसे कहा जाता है?
दादाश्री : दिन तो पूरा निकल जाता है। उसमें खाना, पीना, चायपानी वगैरह का हिसाब मिल आता है। पूरा दिन, जागृति नहीं होने से वह किसी न किसीमें, किसी भी विषय में उलझा हुआ रहता है। आप जिसे जागृति समझते हो, वह जगत् संबंधी किसी एक विषय में पड़ा हो, उसे कहते हो। वह तो 'सब्जेक्ट' जागृति कहलाती है। जगत् के लोगों को तो विषय और लक्ष्मी में ही जागृति होती है। जब कि यथार्थ जागृति तो हर एक जगह पर होती है, सर्वग्राही होती है।
पूरे जगत् की तमाम प्रकार की क्रियाएँ एकाग्रता करने के लिए हैं और जो क्रिया से व्यग्रता हो तो उसे हमने उल्टा उपचार किया कहलाएगा। जप-तप वगैरह एकाग्रता के लिए हैं। जिसे एकाग्रता नहीं रहती हो, उसे जपयोग करना चाहिए. दुसरा करना चाहिए, तीसरा करना चाहिए। जैसे-जैसे एकाग्रता बढ़ती जाए. वैसे-वैसे भावनिद्रा हल्की होती जाती है। किसीको भावनिद्रा हल्की होती है, किसीको गाढ़ होती है। पानी डालें, ऐसे हिलाएँ तो भी नहीं जगे, वैसी गाढ भावनिद्रा में लोग पड़े हैं। हम जब स्वरूप का ज्ञान देते हैं, तब जरा आँख खुलती है। तब उसे दिखता है कि मैं तो इन सबसे जुदा हूँ। फिर जैसे-जैसे हमारे साथ बैठता है, वैसे-वैसे आँख खुलती जाती है। फिर संपूर्ण जागति हो जाती है। इसलिए आत्मा को जानना पड़ेगा। आत्मा जाने बिना तो वहाँ पर कोई जाने ही नहीं दे।