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(३५) कर्म की थियरी
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आप्तवाणी-४
दूसरे को ऐसा भाव है कि 'हिंसा करनी है तो उसे इतना बड़ा पत्थर लगेगा। हिंसा दोनों की एक-सी होती है, परन्तु भाव बदलने के कारण कर्मफल में बदलाव हो जाता है।
प्रश्नकर्ता : शरीर के धर्म पूरे करते हैं तो उसका प्रायश्चित करना पड़ता है?
दादाश्री : हाँ। और जब तक 'मैं आत्मा हूँ' ऐसा भान नहीं हो, तब तक प्रायश्चित नहीं होगा तो कर्म अधिक चिपकेंगे। प्रायश्चित करने से कर्म की गाँठें हल्की हो जाती हैं। नहीं तो उस पाप का फल बहत खराब आता है। मनुष्यत्व भी चला जाता है और मनुष्य जन्म मिले तो उसे हर प्रकार की अड़चनें आती हैं। खाने की, पीने की, मान-तान तो कभी दिखते ही नहीं, हमेशा अपमान। इसलिए यह प्रायश्चित या दूसरी सभी क्रियाएँ करनी पड़ती हैं। इसे परोक्ष भक्ति कहा जाता है। जब तक आत्मज्ञान नहीं होता, तब तक परोक्ष भक्ति करने की जरूरत है।
कर्मबंधन, मनुष्यगति में ही प्रश्नकर्ता : यह यदि रोज़ की क्रियाओं का प्रायश्चित नहीं करें तो लम्बे अंतराल में उसका ढेर हो जाएगा न? ।
दादाश्री : नहीं, ढेर नहीं होता। कर्म बंध गए इसलिए वे खप जाते हैं। उदाहरण के तौर पर पाशवता के कर्म बंधे हों तो वह पशुयोनि में जाता है और वहाँ से खपाकर आ जाता है। कर्मों का ढेर नहीं होता। एक जन्म की कमाई जानवर के पाँच-सात जन्म लेकर पूरी करके आता है।
प्रश्नकर्ता : जानवर के जन्म में वापिस कर्म बंधते हैं न?
दादाश्री : नहीं, वहाँ कर्म नहीं बंधते। सिर्फ मनुष्य ही कर्म बाँध सकता है। देवी-देवता भी कर्म नहीं बाँधते। दूसरी सभी गतियाँ तो सिर्फ छूटने के लिए ही होती हैं।
प्रश्नकर्ता : ये तिर्यंचगति के जीव हैं - वे हिंसक हैं, उनमें कषाय हैं, फिर भी वे कर्म नहीं बाँधते?
दादाश्री : नहीं, कोई जानवर कर्म नहीं बाँधता, सिवाय मनुष्य के।
प्रश्नकर्ता : मनुष्य में जो कर्म बाँधे, वे तिर्यंचगति में भोगने पड़ते हैं?
दादाश्री : हाँ, यहाँ किसीका अणहक्क का ले लिया हो, अणहक्क का भोग लिया हो, तो वे सभी पाशवता के कर्म कहलाते हैं, वे पशयोनि में जाकर भुगतने पड़ते हैं।
प्रश्नकर्ता : फिर वापिस मनुष्य में आता है, भोगने के बाद?
दादाश्री : हाँ, मनुष्य में ही आता है। देवगति में जाए, फिर भी भुगतकर वापिस मनुष्य में आता है। सिर्फ मनुष्यगति में से ही सब जगह जाने का अधिकार है। मनुष्यगति में चार्ज और डिस्चार्ज दोनों हो रहे हैं, जब कि दूसरी गतियाँ सिर्फ डिस्चार्ज स्वरूप हैं। यह मनुष्यगति ही टेस्ट एक्जामिनेशन है। यदि फेल हो गए तो तिर्यंच में जाओगे, नर्कगति में जाओगे
और पास हुए तो मनुष्य में रहोगे और बहुत अच्छे नंबर लाए तो देवगति में जाओगे। और पाँचवी गति, मोक्ष भी मनुष्य देह से ही होती है।
प्रश्नकर्ता : तिर्यंच में से तिर्यंचगति में या दूसरी गति में जाते हुए बीच में मनुष्य के स्टेशन पर रुकना पड़ता है?
दादाश्री : नहीं, तिर्यंच में से तिर्यंच, ऐसे आठ जन्मों से अधिक नहीं होते। फिर वापिस मनुष्य का स्टेशन आता है।
प्रश्नकर्ता : मनुष्य में जो समझ है वह तिर्यंचगति में भी है, फिर भी वे कर्म क्यों नहीं बाँधते?
दादाश्री : तिर्यचों की समझ लिमिटेड है और ये मनुष्य अन्लिमिटेड समझवाले हैं। तिर्यंचों का माइन्ड भी लिमिटेड होता है, इसलिए वे कर्म नहीं बाँध सकते।
कर्म, कितने ही जन्मों की सिलक प्रश्नकर्ता : अभी जो कर्म हैं वे अनंत जन्मों के हैं?