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(३४) लगाम छोड़ दो
२४१ बोल सकते क्योंकि कर्त्तापन हम लोगों में है ही नहीं। आत्मा अकर्ता है।
संयम, चरम दशा का प्रश्नकर्ता : परन्तु व्यवहार के जो कर्म करने होते हैं वे कर्म तो आएँगे न?
दादाश्री : वह तो सब चलता ही रहेगा अपने आप। हमें' चंदूभाई से कहना चाहिए कि, 'चंदूभाई, ऑफिस का टाइम हो गया। क्यों नहीं जाते हो?' बस, इतनी ही चेतावनी देनी है। वह होता ही रहेगा। डिस्चार्ज अर्थात् जो होता ही रहता है। किसीके साथ उल्टा बोल लिया जाए तो आपको चंदूभाई से कहने में हर्ज नहीं है कि सामनेवाले को दुःख हो वैसा नहीं बोलो तो अच्छा। फिर भी उल्टा बोल लिया जाए तो हमें चंदूभाई से कहना चाहिए, 'आपने अतिक्रमण क्यों किया? बेटे को दु:ख हो ऐसा बोले इसलिए आप प्रतिक्रमण करो।' फिर बेटे के नाम से प्रतिक्रमण करना। बस, इतना ही समझना है।
'क्या हो रहा है' वह देखना चूक जाएँ उसे असंयम कहा है और संयम किसे कहा जाता है कि, 'क्या हो रहा है उसे देखता ही रहे!
यह अंतिम संयम, यह ज्ञानियों का संयम कहलाता है और इस जगत् के लोग तो देह के संयम को संयम कहते हैं। ये सभी स्थूल बाते हैं और 'ये' तो संयम की अंतिम बातें हैं। 'यह' संयम आ गया, उसका देह तो नियम से ही धीरे-धीरे संयमित होता ही जाता है। इसलिए इस चरम संयम में ही आ जाने जैसा है।
(३५)
कर्म की थियरी व्यवहार में, कर्म क्या? धर्म क्या? आमने-सामने समाधानपूर्वक हिसाब करना, वह धर्म कहलाता है। आमने-सामने समाधानपूर्वक हिसाब नहीं करना, वह कर्म कहलाता
सब्जी में नमक अधिक डल गया हो, वहाँ पर खा लें, वह धर्म है और 'खारा बनाया (नमक ज्यादा हो गया). ऐसा क्यों किया' कहें - वह कर्म है।
जगत् ने कर्ता थियरी ही जानी प्रश्नकर्ता : कर्म की थियरी जैनिज़म में नहीं है और गीता में है, तो ऐसा क्यों?
दादाश्री : कर्म की थियरी जैनिज़म में और दूसरे धर्मों ने भी एक्सेप्ट की है। जितने लोग पुनर्जन्म में मानते हैं वे सभी कर्म की थियरी को मानते हैं।
कर्म की थियरी को समझो। आत्मा की कर्ता थियरी सब देखते हैं। इन्होंने मेरा अपमान किया, वह कर्ता है ऐसी थियरी देखी है, परन्तु ये मेरे कर्म का उदय कर रहे हैं वह थियरी देखी नहीं है। कई लोग बोलते हैं कि, 'मेरे कर्म बाधक हैं', परन्तु वह थियरी उन्होंने नहीं देखी है। 'कर्म क्या हैं' वह यदि समझ गया होता तो सामनेवाले पर आरोप करने को रहता ही नहीं कि, 'इसने मुझे ऐसा क्यों किया!'